दशहरा या विजयादशमी का पर्व असत्य पर सत्य की और बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था और मां दुर्गा ने महिषासुर का संहार किया था। इसलिए इस दिन घर पर पूजा करना बहुत शुभ माना जाता है। इस पूजा से साल भर घर में सुख-समृद्धि और शत्रुओं पर विजय बनी रहती है। दशहरे के दिन मुख्य रूप से देवी अपराजिता और शमी वृक्ष की पूजा का विधान है जिसे आप घर पर ही सरल विधि से कर सकते हैं। ऐसे में वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं कि दशहरे की पूजा सामग्री और संपूर्ण पूजा विधि।
दशहरे की पूजा के लिए आपको ज्यादा सामग्री की आवश्यकता नहीं है बल्कि कुछ ही मुख्य रूप से अनिवार्य सामग्री का इस्तेमाल कर सकते हैं।
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सबसे पहले घर के ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व दिशा या पूजा के स्थान को अच्छी तरह साफ कर लें। जमीन को स्वच्छ करके उस पर लाल रंग के फूल, रोली या कुमकुम से अष्टदल चक्र यानी आठ पंखुड़ियों वाला कमल बनाएं।
इस अष्टदल के बीच में देवी अपराजिता की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें। आप इस स्थान पर भगवान राम और मां दुर्गा की प्रतिमा भी रख सकते हैं। पूजा स्थल पर गाय के गोबर से बनी 10 छोटी थेपड़ियों को रावण के 10 सिरों के प्रतीक के रूप में रखें।
इन थेपड़ियों के सामने 10 छोटे मिट्टी के बर्तन जैसे कि कुल्हड़ या दीये में रखें और उन्हें खील-बताशे या भोग से भर दें। अब इन 10 प्रतीकों पर रोली, अक्षत और हल्दी से तिलक करें। घी का दीपक जलाएं और धूप करें।
इन्हें वस्त्र स्वरूप कलावा अर्पित करें और फूल चढ़ाएं। देवी अपराजिता, भगवान राम और मां दुर्गा की प्रतिमा पर भी रोली, चंदन और अक्षत से तिलक करें। उन्हें लाल पुष्प और नैवेद्य अर्पित करें।
'ॐ अपराजितायै नमः' मंत्र का जाप करते हुए परिवार की सुख-समृद्धि और शत्रुओं पर विजय की प्रार्थना करें। अगर घर के पास शमी का वृक्ष है, तो वहां जाकर पूजा करें। अगर नहीं है, तो घर में ही एक चौकी पर साफ कपड़ा बिछाकर शमी के कुछ पत्ते रखें।
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इस दिन घर में रखे शस्त्रों, औजारों, या अपने कार्य के उपकरणों को भी साफ करके पूजा स्थान पर रखें। शमी के पत्तों और उपकरणों पर रोली-अक्षत से तिलक करें और मौली बांधें। 'शमी शमयते पापं' का जाप करते हुए शमी से प्रार्थना करें।
पूजा के बाद शमी के कुछ पत्ते घर की तिजोरी में रखना शुभ माना जाता है। पूजन के बाद, नवरात्रि के दौरान बोए गए जवारों को कानों पर लगाने की परंपरा है। घर के बड़े-बुजुर्ग इन जवारों को छोटों को देते हैं। यह सुख-समृद्धि और दीर्घायु का प्रतीक माना जाता है।
पूजा समाप्त होने पर आरती करें और सभी में भोग बांट दें। रावण के प्रतीक रूप में पूजी गई गोबर की थेपड़ियों और भोग सामग्री को किसी बहते जल में विसर्जित करें या किसी साफ जगह पर रख दें।
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