हर साल ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है, जिसमें शामिल होने के लिए देश-विदेश से लाखों भक्त उमड़ते हैं। यह रथ यात्रा पंचांग के हिसाब से आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को आयोजित होती है। जो इस वर्ष 27 जून 2025 को पड़ने वाली है। इसी दिन गुजरात के अहमदाबाद में भी ऐसी ही एक रथ यात्रा का आयोजन होता है। लेकिन अहमदाबाद और पुरी की रथ यात्रा भिन्न मानी जाती है। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
अहमदाबाद की रथ यात्रा कैसी होती है?
अहमदाबाद की रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को समर्पित एक भव्य और महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सव है। यह पुरी की रथ यात्रा के बाद भारत की दूसरी सबसे बड़ी रथ यात्रा मानी जाती है। यह आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकाली जाती है। रथ यात्रा से लगभग 15 दिन पहले, ज्येष्ठ पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ का जल अभिषेक किया जाता है। इस 'जल यात्रा' में साबरमती नदी से 108 कलशों में पवित्र जल लाया जाता है और उससे भगवान को स्नान कराया जाता है। माना जाता है कि इस स्नान के बाद भगवान बीमार पड़ जाते हैं और 15 दिनों के लिए 'अनासर' यानी कि एकांतवास में चले जाते हैं।
15 दिनों के अनासर के बाद भगवान के ठीक होने पर 'नैनासर उत्सव' मनाया जाता है, जिसके बाद रथ यात्रा निकाली जाती है। उसके बाद भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा तीन अलग-अलग रथों पर सवार होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं। इस दौरान वे अपने मामा के घर सरसपुर भी जाते हैं। रथ यात्रा की खास बात यह होती है कि इस यात्रा के दौरान हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग मिलकर भगवान का स्वागत करते हैं।
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जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा क्यों अलग है?
यह यात्रा एकमात्र ऐसी है जहां भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा, अपने भव्य रथों पर सवार होकर मंदिर से बाहर निकलते हैं और नगर भ्रमण करते हैं। यह भक्तों को अपने आराध्य के करीब आने और उनके दर्शन करने का एक दुर्लभ अवसर प्रदान करती है। ऐसा कहा जाता है कि जो भक्त रथ यात्रा में शामिल होता है। उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। हर साल रथ यात्रा के लिए तीन विशालकाय, लकड़ी के रथों का निर्माण किया जाता है। इन रथों को बनाने में कोई कील या धातु का उपयोग नहीं किया जाता है, बल्कि केवल नीम की लकड़ी का इस्तेमाल होता है। पुरी के गजपति राजा स्वयं सोने की झाड़ू से रथों और रथ यात्रा के रास्ते को साफ करते हैं। यह अनुष्ठान दर्शाता है कि भगवान के सामने कोई छोटा या बड़ा नहीं होता, और सभी समान हैं।
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