Hariyali Teej Sinjara: 27 जुलाई, 2025 को हरियाली तीज का पर्व मनाया जाएगा। हरियाली तीज का त्योहार, जिसे श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। यह पर्व भगवान शिव और देवी पार्वती के पुनर्मिलन का प्रतीक है और मुख्य रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए मनाया जाता है। इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं विशेष रूप से सोलह श्रृंगार करती हैं और झूला झूलने की परंपरा भी निभाती हैं। हरियाली तीज से पहले एक खास रस्म होती है जिसे सिंजारा कहा जाता है। इस रस्म में बेटी के ससुराल से उसके मायके विभिन्न प्रकार के उपहार भेजे जाते हैं। इन उपहारों में सबसे महत्वपूर्ण होता है सुहाग का सामान जैसे मेहंदी,चूड़ियां,सिंदूर, बिंदी और कपड़े है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसमें परिवार के प्यार, सम्मान और बेटी के नए घर में खुशहाली की कामना निहित है। लेकिन क्या आपने सोचा है कि आखिर सिंजारा में सुहाग का सामान क्यों दिया जाता है। पंडित उदित नारायण त्रिपाठी से जानिए इसके पीछे का कारण-
सिंजारा विशेषकर सुहाग का सामान, बेटी और उसके पति के अखंड सुहाग की कामना का प्रतीक है। यह देते समय कामना की जाती है कि बेटी का वैवाहिक जीवन हमेशा समृद्ध और सुखमय भरा रहे। यह ससुराल पक्ष की ओर से बहू को यह संदेश है कि वे उसके सुहाग की मंगल कामना करते हैं और उसे अपने परिवार का अभिन्न अंग मानते हैं।
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हरियाली तीज देवी पार्वती और भगवान शिव के प्रेम और उनके पुर्नमिलन का प्रतीक है। मान्यता है कि इस दिन जो महिला सोलह श्रृंगार करती है। उसे देवी पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है। सिंजारे में मिले सुहाग के सामान से विवाहित महिला खुद को सजाती है, जिससे माना जाता है कि देवी पार्वती प्रसन्न होती हैं और उन्हें सौभाग्यवती रहने का आशीर्वाद देती हैं।
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सिंजारा मायके और ससुराल के बीच के रिश्ते को मजबूत करने का एक जरिया है। यह ससुराल पक्ष की ओर से बेटी के मायके वालों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता का भी प्रतीक है,क्योंकि उन्होंने अपनी बेटी को उनके घर की बहू बनाया है। यह परंपरा दोनों परिवारों के बीच स्नेह और जुड़ाव को दर्शाती है।
हरियाली तीज महिलाओं के लिए उत्साह और उमंग का त्योहार है। सिंजारे में मिलने वाले नए कपड़े और सुहाग का सामान महिलाओं में खुशी भर देता है। यह उन्हें त्योहार की तैयारियों और सोलह श्रृंगार करने के लिए प्रेरित करता है,जिससे वे पूरे हर्षोल्लास के साथ इस पर्व को मना सकें।
यह एक प्राचीन परंपरा है जो पीढ़ियों से चली आ रही है। यह भारतीय संस्कृति में विवाह और वैवाहिक जीवन को दिए जाने वाले महत्व को दर्शाती है। यह रस्म परिवार के बड़े-बुजुर्गों द्वारा छोटी बहुओं को परंपराओं से जोड़ने और उन्हें अपने सांस्कृतिक मूल्यों से परिचित कराने का भी एक तरीका है।
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