
छठ महापर्व के चार दिनों में सबसे कठिन और महत्वपूर्ण होता है व्रत का पारण। व्रत पारण वह क्रिया है जिसके द्वारा व्रती 36 घंटे के कठोर उपवास का समापन करते हैं। यह क्रिया छठ पूजा के चौथे और अंतिम दिन, उषा अर्घ्य यानी उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद की जाती है। यह पल न केवल व्रत की समाप्ति,बल्कि छठी मैया और सूर्य देव को उनके आशीर्वाद के लिए धन्यवाद देने का भी प्रतीक है। पारण विधि पूरी शुद्धता, श्रद्धा और पारंपरिक नियमों का पालन करते हुए की जाती है, जिसका अपना एक विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। ऐसे में वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं छठ पूजा के चौथे दिन व्रत पारण मुहूर्त, विधि और नियम

इस साल छठ पूजा का उषा अर्घ्य 28 अक्टूबर, मंगलवार के दिन किया जाएगा। पंचाग के अनुसार, सूर्योदय का समय और उषा अर्घ्य का शुभ मुहूर्त सुबह लगभग 06 बजकर 30 मिनट से 06 बजकर 37 मिनट तक रहेगा। इसके बाद व्रत पारण का मुहूर्त सुबह 11 बजकर 14 मिनट तक रहेगा।
छठ पूजा का चौथा दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी तिथि होता है और इसे पारण का दिन भी कहा जाता है। व्रत करने वाली महिलाएं इस दिन पूरे विधि-विधान से अपना व्रत खोलते हैं।
उषा अर्घ्य और घाट पर अंतिम अनुष्ठानव्रती सूर्योदय से पहले नदी, तालाब या घाट पर पहुंच जाती हैं। इसके बाद वे संध्या अर्घ्य की तरह ही पानी में खड़े होकर, पूजन सामग्री के साथ उगते हुए सूर्य का इंतजार करते हैं। जैसे ही सूर्य की पहली किरणें दिखाई देती हैं, व्रती सूर्य देव को दूध और जल से अंतिम अर्घ्य देते हैं, जिसे उषा अर्घ्य कहा जाता है। अर्घ्य देने के बाद, व्रती छठी मैया और सूर्य देव से परिवार की सुख-समृद्धि, बच्चों की लंबी आयु और मंगल कामना करते हैं। इस अनुष्ठान के बाद, कई व्रती घाट पर ही 7 या 11 बार परिक्रमा करती हैं।
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घाट से घर लौटने के बाद, व्रत रखने वाली महिला अपना कठिन निर्जला व्रत खोलती हैं, जिसे पारण या परना कहा जाता है। पारण से पहले वह छठ पूजा के प्रसाद को पहले परिवार के सदस्यों और फिर आस-पास के लोगों के बीच बांटती हैं। इसके बाद बड़े-बुजुर्गों के पैर छूकर आशीर्वाद लेती हैं और अन्य लोग व्रती से आशीर्वाद ग्रहण करती हैं।
फिर व्रत का पारण करने के लिए व्रती सबसे पहले जल या दूध का शरबत जैसे कि सादा जल या गंगाजल, या कच्चा दूध/गंगाजल मिला हुआ शरबत पीकर व्रत की शुरुआत करते हैं। इसके तुरंत बाद, वे छठी मैया को चढ़ाए गए प्रसाद, खासकर ठेकुआ और फलों को ग्रहण करते हैं।
व्रत पारण के बाद भी पूरे दिन घर में सात्विक भोजन ही बनाया और खाया जाता है। लहसुन, प्याज या किसी भी प्रकार के तामसिक भोजन का प्रयोग उस दिन भी पूरी तरह वर्जित होता है। यह एक महत्वपूर्ण नियम है कि व्रती जब प्रसाद ग्रहण कर व्रत खोल लेती हैं, तभी परिवार के अन्य सदस्य उस प्रसाद या भोजन को पूर्ण रूप से ग्रहण कर सकते हैं।

यह व्रत संतान के स्वास्थ्य, दीर्घायु और पूरे परिवार की सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। सही विधि से व्रत पारण करने से व्रती को उनकी तपस्या का पूर्ण फल प्राप्त होता है। पारण की क्रिया 36 घंटे के उपवास के बाद शरीर को धीरे-धीरे सामान्य अवस्था में वापस लाने के लिए भी आवश्यक होती है।
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