छठ पूजा 2025 का इंतजार पूरे देश, खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में रहने वाले लोगों को कई महीने पहले से ही होता है। यह पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से आरंभ होकर सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है और सूर्य देव तथा छठी माई की आराधना के लिए जाना जाता है। यह एक पर्व नहीं बल्कि महापर्व के रूप में प्रचलित है जिसे बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस पूजा से हर मनोकामना पूरी होने का विश्वास होता है और यह भक्तों के जीवन में समृद्धि, स्वास्थ्य और सुख-शांति लाने का माध्यम मानी जाती है। अगर आप भी छठ पूजा का इंतजार कर रही हैं और इसकी सही तिथि की जानकारी लेना चाहती हैं तो आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें कब से शुरू हो रहा है छठ महापर्व और इसकी पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है।
इस साल छठ महापर्व 25 अक्टूबर 2025, शनिवार से शुरू हो रहा है और इसका समापन 28 अक्टूबर 2025, मंगलवार को संपन्न होगा। पूरे चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व श्रद्धा, संयम और आस्था का प्रतीक माना जाता है।
छठ पूजा का पहला दिन नहाय-खाय कहलाता है। इस दिन वर्ती, यानी व्रती, पवित्र नदी या तालाब में स्नान कर शुद्धता का संकल्प लेते हैं। यह दिन मानसिक, शारीरिक और आत्मिक शुद्धि का प्रतीक माना जाता है। इस दिन घर को साफ-सुथरा कर, सात्विक भोजन तैयार किया जाता है। इसमें अरवा, चावल, चना, दाल और लौकी की सब्जी शामिल होती है। यह भोजन कुलदेवता और सूर्य देव को अर्पित किया जाता है। इस दिन व्रती महिलाएं संयम का पालन करते हुए व्रत के लिए खुद को तैयार करती हैं।
छठ पूजा का दूसरा दिन खरना के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रती महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं, यानी पूरे दिन पानी भी नहीं पीती हैं। शाम के समय सूर्यास्त के बाद व्रती महिलाऐं गुड़ की खीर, रोटी और फलों का पवित्र प्रसाद बनाकर भोग लगाती हैं। खरना का दिन व्रती परिवार की भक्ति और एकजुटता को दर्शाता है। इस दिन व्रत खोलने के बाद शुरू होता है 36 घंटे का कठोर निर्जला उपवास, जिसमें व्रती पूर्ण महिलाएं संयम और श्रद्धा के साथ सूर्य और छठी माई की पूजा में लीन रहती हैं। इस साल खरना 26 अक्टूबर को पड़ेगा।
छठ पूजा का तीसरा दिन संध्या अर्घ्य का होता है। यह छठ महापर्व का सबसे भव्य और मनमोहक क्षण माना जाता है। व्रती महिलाएं इस दिन नदी या तालाब में कमर तक जल में खड़े होकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं। इस दिन ठेकुआ, गन्ना, नारियल, फल और चावल के लड्डू बांस की सूप में सजाए जाते हैं। भजनों और कीर्तन की मधुर ध्वनियों के बीच यह दृश्य प्रकृति के प्रति आभार और आस्था का प्रतीक बनता है। सूर्यास्त लगभग 5:40 बजे होता है, हालांकि यह समय स्थान के अनुसार अलग-अलग हो सकता है। संध्या अर्घ्य व्रत का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।
छठ पूजा का अंतिम दिन उषा अर्घ्य होता है। इस दिन सुबह करीब 6:30 बजे उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर व्रत का पारण किया जाता है। इस दिन व्रती महिलाएं प्रसाद बांटकर पर्व को संपन्न करती हैं। व्रत के पारण के दौरान भक्ति, संयम और परिवारिक एकजुटता का अनुभव मिलता है। इस दिन सूर्य और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता प्रकट की जाती है और सामुदायिक भावना को भी मजबूती मिलती है।
छठ महापर्व केवल सूर्य देव और छठी माई की पूजा ही नहीं है। यह पर्व जीवन में स्वास्थ्य, सुख-शांति और समृद्धि लाने के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। साथ ही, यह एकता और परिवारिक रिश्तों को मजबूत करने का संदेश देता है। सूर्य की किरणें जीवन का आधार मानी जाती हैं और उनका सम्मान करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है। इसी वजह से इस पर्व को सिर्फ एक पर्व न मानकर महापर्व का दर्जा दिया गया है। यह पर्व भक्तों को आस्था, संतुलन और प्राकृतिक नियमों के साथ जीवन जीने की सीख देता है।
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