
अश्विन माह की पूर्णिमा यानी कि शरद पूर्णिमा इस साल 16 अक्टूबर, दिन बुधवार को पड़ रही है। यूं तो हर पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी की ही आराधना की जाती है लेकिन शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी की पूजा का विशेष विधान है। ऐसा इसलिए क्योंकि शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी समुद्र मंथन से प्रकट हुई थीं। ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिम के दिन मां लक्ष्मी की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और घर की आर्थिक स्थिति हमेशा संपन्न रहती है। ऐसे में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि शरद पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी स्तोत्र और कवच का पाठ भी अवश्य करना चाहिए। इन दोनों के पाठ से धन बाधित करने वाले दोष दूर होते हैं और घर में पसरी दरिद्रता नष्ट हो जाती है।

गृहाण कवचं शक्र सर्वदुःखविनाशनम्। परमैश्वर्यजनकं सर्वशत्रुविमर्दनम्॥
ब्रह्मणे च पुरा दत्तं संसारे च जलप्लुते। यद् धृत्वा जगतां श्रेष्ठः सर्वैश्वर्ययुतो विधिः॥
बभूवुर्मनवः सर्वे सर्वैश्वर्ययुतो यतः। सर्वैश्वर्यप्रदस्यास्य कवचस्य ऋषिर्विधि॥
पङ्क्तिश्छन्दश्च सा देवी स्वयं पद्मालया सुर। सिद्धैश्वर्यजपेष्वेव विनियोगः प्रकीर्तित॥
यद् धृत्वा कवचं लोकः सर्वत्र विजयी भवेत्॥
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मस्तकं पातु मे पद्मा कण्ठं पातु हरिप्रिया। नासिकां पातु मे लक्ष्मीः कमला पातु लोचनम्॥
केशान् केशवकान्ता च कपालं कमलालया। जगत्प्रसूर्गण्डयुग्मं स्कन्धं सम्पत्प्रदा सदा॥
ओम श्रीं कमलवासिन्यै स्वाहा पृष्ठं सदावतु। ओम श्रीं पद्मालयायै स्वाहा वक्षः सदावतु॥
पातु श्रीर्मम कंकालं बाहुयुग्मं च ते नमः॥
ओम ह्रीं श्रीं लक्ष्म्यै नमः पादौ पातु मे संततं चिरम्। ओम ह्रीं श्रीं नमः पद्मायै स्वाहा पातु नितम्बकम्॥
ओम श्रीं महालक्ष्म्यै स्वाहा सर्वांगं पातु मे सदा। ओम ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै स्वाहा मां पातु सर्वतः॥
इति ते कथितं वत्स सर्वसम्पत्करं परम्। सर्वैश्वर्यप्रदं नाम कवचं परमाद्भुतम्॥
गुरुमभ्यर्च्य विधिवत् कवचं शरयेत्तु यः। कण्ठे वा दक्षिणे बांहौ स सर्वविजयी भवेत्॥
महालक्ष्मीर्गृहं तस्य न जहाति कदाचन। तस्य छायेव सततं सा च जन्मनि जन्मनि॥
इदं कवचमज्ञात्वा भजेल्लक्ष्मीं सुमन्दधीः। शतलक्षप्रजप्तोऽपि न मन्त्रः सिद्धिदायकः॥
॥इति श्रीब्रह्मवैवर्ते इन्द्रं प्रति हरिणोपदिष्टं लक्ष्मीकवचं॥
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते। शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते॥
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि। सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते॥
सर्वज्ञे सर्ववरदे देवी सर्वदुष्टभयंकरि। सर्वदु:खहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते॥
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि। मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते॥
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि। योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते॥
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे। महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते॥
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पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणी। परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते॥
श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते। जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते॥
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर:। सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा॥
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्। द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन्यधान्यसमन्वित:॥
त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्। महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा॥
आप भी इस लेख में दी गई जानकारी के माध्यम से यह जान सकते हैं कि आखिर शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी के स्तोत्र और कवच का पाठ करने से क्या लाभ मिलते हैं।
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