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Ahoi Ashtami Vrat Katha 2025: संतान की दीर्घायु और सुरक्षा के लिए रखा जाता है अहोई अष्टमी व्रत, जरूर पढ़ें ये कथा

Ahoi Ashtami Vrat Katha or Kahani: अहोई अष्टमी का व्रत संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है। यह सबसे अहम त्योहार माना जाता है। इस दिन माताएं निर्जला व्रत रखती हैं और अहोई माता की कथा सुनने के बाद ही तारों को देखकर जल देती हैं। आइए आर्टिकल में बताते हैं आपको कौन सी कहानी का वर्णन इस व्रत में जरूर करना चाहिए।
Editorial
Updated:- 2025-10-13, 12:15 IST

Ahoi Astami Vrat Katha: अहोई अष्टमी व्रत हिंदू धर्म में संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाने वाला एक पवित्र व्रत है। यह व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इस दिन माताएं सूर्योदय से पहले उठकर संकल्प लेती हैं और पूरे दिन निर्जला व्रत रखकर संतान की सुरक्षा और लंबी आयु की कामना करती हैं। यह व्रत संतान के लिए सबसे ज्यादा अहम होता है। इस दिन तारों को देखकर जल दिया जाता है, तभी यह पूजा पूरी मानी जाती है। इसके साथ-साथ सबसे ज्यादा अहम होती है अहोई अष्टमी की व्रत कथा। आइए आर्टिकल में इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।

अहोई अष्टमी व्रत कथा (Ahoi Ashtami Vrat Katha 2025)

प्राचीन काल में एक नगर में एक साहूकार रहता था, जिसके सात बेटे थे। दिवाली से कुछ दिन पहले, साहूकार की पत्नी (साहूकारनी) घर की पुताई के लिए मिट्टी लेने जंगल में गई।

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जब वह कुदाल से मिट्टी खोद रही थी, तभी अनजाने में उसकी कुदाल साही (स्याही) के बच्चेदानी पर जा लगी और साही का एक बच्चा मर गया। इस अनजाने पाप से साहूकारनी को बहुत दुःख हुआ, लेकिन वह मिट्टी लेकर घर लौट आई। एक साल के भीतर ही, साहूकारनी के सातों बेटे एक-एक करके मर गए। इस भयानक दुःख से साहूकारनी टूट गई। एक दिन उसने अपनी दुःखभरी कहानी अपने आस-पड़ोस की वृद्ध महिलाओं को बताई। उसने बताया कि उसने अनजाने में साही के बच्चे को मार दिया था, और उसी पाप के कारण उसके सभी बेटों की मृत्यु हो गई है।

वृद्ध महिलाओं ने साहूकारनी की बात सुनी और कहा कि यह सब उसी पाप के कारण हुआ है, लेकिन यदि वह पश्चाताप करती है तो उसे मुक्ति मिल सकती है। उन्होंने साहूकारनी को अहोई माता की शरण में जाने और अहोई अष्टमी का व्रत करने की सलाह दी। उन्होंने कहा, तुम कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को व्रत रखना। अहोई माता का चित्र बनाना, जिसमें साही और उसके सात बच्चों का चित्र भी बनाना। तुम इस चित्र के सामने सच्चे मन से क्षमा मांगना और व्रत के दौरान हर दिन साही के सात बच्चों की कथा सुनना और उनकी पूजा करना।

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साहूकार की पत्नी ने भी रखा अहोई अष्टमी का व्रत

साहूकार की पत्नी ने वृद्ध महिलाओं की बात मानकर पूरी श्रद्धा और नियम से अहोई अष्टमी का व्रत रखा। उसने साही के बच्चों का चित्र बनाया और व्रत के दिन खूब रो-रोकर अपने पापों के लिए अहोई माता से क्षमा मांगी। उसके सच्चे मन के पश्चाताप और भक्ति से प्रसन्न होकर अहोई माता ने उसे आशीर्वाद दिया। अहोई माता के आशीर्वाद से साहूकारनी को कुछ ही दिनों बाद फिर से सात बेटे प्राप्त हुए और उसका घर फिर से खुशियों से भर गया। तभी से संतान की लंबी उम्र, सुख और कल्याण के लिए अहोई अष्टमी का व्रत रखने की परंपरा चली आ रही है। इस व्रत में माताएं अपनी संतानों के लिए अहोई माता से सुख-समृद्धि और दीर्घायु का वरदान मांगती हैं।

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Image Credit-Freepik

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FAQ
अहोई अष्टमी की कथा किस समय पढ़ी जाती है?
अहोई अष्टमी की कथा गोधूलि बेला में पढ़नी चाहिए। तारों को देखने के बाद पूजा करते समय आपको व्रत कथा का पाठ करना चाहिए। 
अहोई अष्टमी के दिन कथा करने के बाद क्या करना चाहिए?
कथा का पाठ करने के बाद आपको अहोई माता के सामने सरसों के तेल का दीपक प्रज्वलित करना चाहिए। 
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