अहोई अष्टमी का व्रत हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र, उत्तम स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए रखती हैं। इस व्रत को अहोई आठे के नाम से भी जाना जाता है और इसकी पूजा विधि करवा चौथ के व्रत से थोड़ी अलग होती है। जहां करवा चौथ में चंद्रमा को देखकर व्रत खोला जाता है, वहीं अहोई अष्टमी पर तारों को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है। यह व्रत अत्यंत कठिन माना जाता है जिसमें माताएं अपने बच्चों की सलामती के लिए दिन भर निर्जला उपवास रखती हैं। इस साल अहोई अष्टमी का व्रत 13 अक्टूबर को रखा जाएगा। ऐसे में वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं अहोई अष्टमी की संपूर्ण पूजा विधि के बारे में।
व्रत के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें। हाथ में जल, फूल और चावल लेकर संतान की दीर्घायु और कल्याण के लिए निर्जला व्रत का संकल्प लें।
शाम की पूजा के लिए घर की उत्तर दिशा की दीवार पर गेरू या कुमकुम से अहोई माता की आकृति बनाई जाती है। इस आकृति में आठ कोष्ठक यानि आठ कोने या खाने होने चाहिए क्योंकि यह व्रत अष्टमी तिथि से जुड़ा है।
माता की छवि के साथ सेही यानि कांटेदार मूषक और उसके सात बच्चों का चित्र भी बनाया जाता है। यदि चित्र बनाना संभव न हो, तो बाजार से अहोई माता का कैलेंडर या तस्वीर भी लगा सकते हैं।
शाम के समय पूजा स्थल पर एक चौकी या पट रखें। इस पर लाल कपड़ा बिछाकर गेहूं या चावल की एक छोटी ढेरी बनाएं। इस ढेरी पर पानी से भरा एक कलश स्थापित करें। कलश के मुख पर स्वस्तिक बनाकर मौली बांधें।
इसके बाद, कलश पर एक मिट्टी का ढक्कन रखें। ढक्कन पर सिंघाड़ा या खील रखें। माता अहोई की तस्वीर को कुमकुम, रोली और हल्दी लगाएं। उन्हें पुष्प माला और लाल चुनरी अर्पित करें। शुद्ध देसी घी का एक दीपक जलाएं और उसे पूरी पूजा के दौरान जलाए रखें।
माता को पूरी, हलवा, पुए या मीठे चावल का भोग लगाएं। इसके साथ ही कच्चा दूध, सिंघाड़ा, मूली और फल भी अर्पित करें। सभी माताएं एक साथ बैठकर अहोई माता की व्रत कथा को सुनें या पढ़ें।
कथा पूरी होने के बाद अहोई माता की आरती गाएं। शाम को जब तारे आसमान में दिखाई देने लगें, तब व्रत रखने वाली महिलाएं पूजा स्थल से बाहर आकर तारों का दर्शन करती हैं। कलश में रखे हुए जल को तारों को अर्घ्य के रूप में अर्पित किया जाता है।
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अर्घ्य देते समय अपनी संतान की सुरक्षा और दीर्घायु की प्रार्थना करें। तारों को अर्घ्य देने के बाद मां अपनी संतान के हाथ से या पति के हाथ से जल पीकर व्रत का पारण करती हैं और प्रसाद ग्रहण करती हैं।
पूजा के बाद अहोई माता की माला और एक करवा किसी ब्राह्मण को या अपनी सास को भेंट करना शुभ माना जाता है। यह व्रत विधि संतान के प्रति मां के गहरे प्रेम और समर्पण को दर्शाती है। आप भी इसी विधि से अहोई अष्टमी का व्रत संपन्न कर सकती हैं।
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