नवरात्रि के नौ दिनों में अलग-अलग माता की पूजा होती है। ऐसे में नवरात्रि के नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना होती है। इस दिन लोग व्रत करते हैं और कन्या पूजन के बाद व्रत का पारण करते हैं। आप भी इस दिन के व्रत में मा के नौवें रूप की कथा का वर्णन जरूर करें। ऐसा कहा जाता है कि मां सिद्धिदात्री की कथा करने से आपको कई सारी सिद्धियों की प्राप्ति होती है। साथ ही आपके रुके हुए कार्य भी अच्छे से हो जाते हैं। इस व्रत कथा को करने से माता का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। आइए इसकी कथा के बारे में आपको आर्टिकल में बताते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सृष्टि के आरंभ में, जब ब्रह्मांड पूरी तरह से अंधकारमय और ऊर्जा-विहीन था, तब चारों ओर केवल शून्य ही था। उस समय, आदि-पराशक्ति मां दुर्गा ने अपनी शक्ति से एक प्रकाश पुंज के रूप में जन्म लिया। इस आदि-शक्ति ने अपने तेज से भगवान शिव को सृष्टि की रचना करने के लिए प्रेरित किया। शिवजी के अनुरोध पर, मां दुर्गा ने ब्रह्मांड को ऊर्जावान बनाने के लिए खुद को सिद्धियों से परिपुण स्वरूप में प्रकट किया। यही स्वरूप मां सिद्धिदात्री कहलाया।
कथा के अनुसार, जब कोई भी देवी-देवता सृष्टि की रचना और संचालन का भार नहीं उठा पा रहे थे, तब सभी ने मिलकर आदिशक्ति की आराधना की। आदिशक्ति ने अपनी शक्ति को तीन मुख्य रूपों महासरस्वती, महालक्ष्मी, और महाकाली में विभाजित किया। बाद में, शिव ने सृष्टि के पूर्ण अंधकार को दूर करने के लिए अपनी तपस्या से एक ज्योति उत्पन्न की।
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इस ज्योति ने ही आदि-पराशक्ति को सिद्धिदात्री स्वरूप धारण करने के लिए प्रेरित किया। मां सिद्धिदात्री ने उस समय भगवान शिव को सभी आठ सिद्धियां अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व प्रदान कीं। यह माना जाता है कि मां सिद्धिदात्री की कृपा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी के रूप में विलीन हो गया, और वे स्वयं 'अर्धनारीश्वर' कहलाए। इसलिए, मां सिद्धिदात्री को संपूर्णता और समावेशन की देवी माना जाता है। ब्रह्मांड में मौजूद सभी देवी-देवता, यहां तक कि स्वयं शिव, ब्रह्मा और विष्णु भी इन्हीं से शक्तियां प्राप्त करते हैं।
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मां सिद्धिदात्री की इस कथा का वर्णन करके आप भी माता का आशीर्वाद पा सकते हैं। साथ ही पूजा विधि का ध्यान रखकर कई सारी सिद्धियों के बारे में जान सकते हैं।
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