8th Day of Navratri Vrat Katha 2025: 9 दिनों तक चलने वाले नवरात्रि के मौके पर माता के अलग-अलग स्वरूपों की आराधना की जाती है। नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा-अर्चना की जाती है। मां का यह रूप सौंदर्य, शांति और शुभ्रता की प्रतीक माना जाता है। मां महागौरी का अर्थ अत्यंत उज्ज्वल होता है, जिन्हें उनकी पवित्रता, शांति और अनुग्रह के लिए जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि मां महागौरी की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि और शांति का आगमन होता है। मां महागौरी पवित्रता की प्रतीक मानी जाती हैं, ऐसे में इस दिन इनकी पूजा करने से जीवन में पवित्रता का स्तर बढ़ता है। हालांकि, वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि मां महागौरी की पूजा बिना उनकी व्रत कथा पढ़े पूर्ण नहीं मानी जाती है। ऐसे में आइये पढ़ते हैं नवरात्रि की महाष्टमी की व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए वर्षों तक बहुत ही कठोर तपस्या की थी। यह तपस्या इतनी कठिन थी कि उन्होंने अन्न और जल का त्याग कर दिया था। इस तपस्या के दौरान, धूप, गर्मी, वर्षा और सर्दी सब सहन करते हुए, वे एक ही स्थान पर ध्यान में लीन रहीं।
इस कठोर तपस्या के कारण उनका शरीर काला पड़ गया और धूल-मिट्टी से ढक गया, जिससे वे बहुत कृशकाय और दुर्बल दिखाई देने लगीं। जब उनकी तपस्या पूरी हुई, तो भगवान शिव उनकी भक्ति और समर्पण से अत्यंत प्रसन्न हुए।
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भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। इसके बाद, उन्होंने गंगाजल से मां पार्वती के शरीर को स्नान कराया। गंगा के पवित्र जल से स्नान करते ही मां का शरीर फिर से दिव्य, अत्यंत उज्ज्वल और गौर वर्ण का हो गया। उनका रूप बिजली के समान कांतिमान और सुंदर हो गया।
इस प्रकार अपने गौर वर्ण यानी गोरे रंग को पुनः प्राप्त करने के कारण मां पार्वती का यह स्वरूप महागौरी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उनका यह रूप अत्यंत शांत, सौम्य और कल्याणकारी माना जाता है। वे श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, चार भुजाओं वाली हैं और उनका वाहन बैल है। उनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में डमरू है, जबकि अन्य दो हाथ भक्तों को अभय और वरदान देते हैं।
मान्यता है कि मां महागौरी की पूजा से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं, जीवन के सभी दुख दूर होते हैं और उन्हें सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
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