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4th Day of Navratri Vrat Katha 2025: नवरात्रि के चौथे दिन व्रत में सुनें मां कूष्मांडा की कथा, स्वास्थ्य में आएगा सुधार

4th Day of Navratri Vrat Katha 2025: नवरात्रि के 9 दिनों में माता के अलग-अलग रुपों की पूजा होती है। चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा होती है। इनका व्रत रखने से स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं कम होती हैं। इस व्रत में कूष्मांडा की कथा को भी जरूर पढ़ें। 
Editorial
Updated:- 2025-09-25, 13:01 IST

नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा होती है। शास्त्रों में उन्हें अष्टभुजा देवी भी कहते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इनके आठ हाथ होते हैं। यह देवी शक्ति, ऊर्जा और सृष्टि की उत्पत्ति के लिए जानी जाती हैं। माना जाता है कि मां कूष्मांडा की कृपा से साधक को अलौकिक तेज, उत्तम स्वास्थ्य और आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है। मां के आठ भुजाओं में कमंडल, धनुष-बाण, कमल पुष्प, अमृतकलश, चक्र और गदा सुशोभित रहते हैं। इनके हाथों में जपमाला और वरमुद्रा भी होती है। सिंह इनका वाहन है। मां के मुख से सृष्टि की ऊर्जा का संचार होता है, इसलिए इन्हें "सृष्टि की आदिस्वरूपा" भी कहा जाता है। इसलिए उनकी ऊर्जा जीवन में सकारात्मक ऊर्जा फैलाती है। इसलिए आप भी चौथे दिन मां कूष्मांडा की कथा को जरूर वर्णन करें।

 मां कूष्मांडा की व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, जब सृष्टि का कोई अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अंधकार ही अंधकार था, तब ब्रह्मांड का विस्तार नहीं हुआ था। उसी समय मां कूष्मांडा ने अपनी दिव्य मुस्कान से अंडाकार ब्रह्मांड की रचना की। इसी कारण उन्हें कूष्मांडा कहा गया। मां कूष्मांडा का अर्थ होता है कूष्मा (कद्दू), अंड (ब्रह्मांड)। कद्दू जैसी गोलाकार वस्तु और अंड के समान ब्रह्मांड की सृष्टि करने वाली देवी कूष्मांडा हैं। इसके बाद देवी ने सूर्य देव की उत्पत्ति की और उन्हें असीम प्रकाश प्रदान किया।

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उन्होंने सूर्य को इतनी शक्ति प्रदान की कि वह इस नव-निर्मित ब्रह्मांड को अपने तेज से प्रकाशित कर सके। देवी कूष्मांडा ही एकमात्र ऐसी शक्ति है, जिसमें सूर्य मंडल के भीतर निवास करने की क्षमता है। सूर्य का सारा तेज, ऊर्जा और जीवनदायिनी शक्ति उन्हीं की कृपा से है।

इसके बाद, देवी ने एक-एक कर सभी ग्रहों, तारों, नक्षत्रों और आकाशगंगाओं की रचना की। उन्होंने पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश जैसे पंच तत्वों का निर्माण किया और इनमें जीवन का संचार किया। उन्होंने विभिन्न प्रकार के जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों को बनाया, जिससे सृष्टि में संतुलन स्थापित हो सके। इसी कारण उन्हें सृष्टि का आदि कारण भी कहा जाता है।

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इस व्रत कथा का वर्णन करने से भक्तों को सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है। उनकी आराधना से शरीर स्वस्थ और निरोगी रहता है। उनके जीवन से अंधकार दूर होता है और वे हर कार्य में सफलता प्राप्त करते हैं। देवी की कृपा से व्यक्ति में ज्ञान, बुद्धि और विवेक का विकास होता है। वह जीवन के सही मार्ग पर चलने में सक्षम होता है।

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