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Navratri Vrat Katha 2025: नवरात्रि के तीसरे व्रत में सुनें मां चंद्रघंटा की कथा, मिलेगी नौकरी में तरक्की

3rd Day of Navratri Vrat Katha 2025: नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा होती है। इनकी पूजा करने से मन को शांति और आत्मविश्वास मिलता है। आप भी तीसरे दिन के इस व्रत में उनकी कथा को जरूर करें। इससे आपका व्रत भी पूरा हो जाएगा। 
Editorial
Updated:- 2025-09-24, 04:56 IST

नवरात्रि का हर दिन खास होता है। इन दिनों में माता के 9 स्वरूपों की पूजा होती है। आज नवरात्रि का तीसरा दिन है। इस दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। आपको बता दें कि, उनके माथे पर घंटे के आकार का आधा चंद्रमा सुशोभित होने के कारण ही उन्हें 'चंद्रघंटा' के नाम से जानते हैं। साथ ही इसकी कथा भी पढ़ी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि मां चंद्रघंटा की पूजा से साधक को साहस, आत्मविश्वास और शांति की प्राप्ति होती है। मां चंद्रघंटा की कथा को पढ़कर आपको भी आत्मविश्वास बढ़ जाएगा। साथ ही आपका व्रत भी पूरा हो जाएगा।

मां चंद्रघंटा की पौराणिक कथा

यह कथा उस समय की है, जब पृथ्वी और स्वर्गलोक पर एक शक्तिशाली और क्रूर राक्षस महिषासुर का आतंक फैल गया था। महिषासुर ने घोर तपस्या करके भगवान ब्रह्मा से यह वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसका वध कोई पुरुष, देवता या दानव नहीं कर पाएगा। इस वरदान ने उसे अत्यधिक अहंकारी और निर्भीक बना दिया। वरदान के बाद, महिषासुर ने स्वर्गलोक पर आक्रमण कर दिया। उसने देवराज इंद्र को युद्ध में परास्त कर दिया और सभी देवताओं को स्वर्ग से बाहर खदेड़ दिया। उसने स्वयं स्वर्गलोक का राजा बनकर देवताओं को दास बना लिया। देवताओं को अपने राज्य से निष्कासित होकर पृथ्वी पर भटकना पड़ा।

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महिषासुर के अत्याचारों से त्रस्त होकर सभी देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास सहायता के लिए पहुंचे। उन्होंने अपनी व्यथा सुनाई और महिषासुर के आतंक से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। देवताओं की दयनीय स्थिति देखकर त्रिदेवों को अत्यधिक क्रोध आया। उनके क्रोध और दुख से एक दिव्य ऊर्जा उत्पन्न हुई, जिसने एक तेज पुंज का रूप ले लिया।

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देवी चंद्रघंटा ने महिषासुर के साम्राज्य की ओर प्रस्थान किया। उन्होंने अपने घंटे की भयंकर ध्वनि से पूरे ब्रह्मांड को कंपकंपा दिया। घंटे की गर्जना सुनकर महिषासुर और उसकी सेना भयभीत हो गई। महिषासुर ने अपनी विशाल सेना को देवी से युद्ध करने के लिए भेजा, लेकिन देवी चंद्रघंटा ने अपनी सिंह की गर्जना और घंटे की ध्वनि से ही उनकी सेना को तितर-बितर कर दिया। देवी ने एक-एक करके महिषासुर के सभी सेनापतियों का वध कर दिया। जब महिषासुर ने देखा कि उसकी सेना का अंत हो रहा है, तो वह स्वयं युद्ध के मैदान में आया। महिषासुर ने विभिन्न रूप धारण कर देवी को भ्रमित करने का प्रयास किया, लेकिन देवी अपने अस्त्र-शस्त्रों से उस पर प्रहार करती रहीं।

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अंत में, देवी चंद्रघंटा ने महिषासुर के वास्तविक रूप को पहचान लिया और अपने त्रिशूल से उसके हृदय पर वार किया। महिषासुर का अंत हो गया और उसके अत्याचारों से पृथ्वी और स्वर्गलोक को मुक्ति मिली। इस प्रकार, देवी चंद्रघंटा ने धर्म की स्थापना की और देवताओं को उनका राज्य वापस दिलाया। इसलिए विधि-विधान से इनकी तीसरे नवरात्रि में पूजा करते हैं।

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