हिंदू पंचाग के अनुसार शारदीय नवरात्रि की शुरूआत इस साल 22 सितंबर से हो रही है। हर कोई मां के आगमन की तैयारियां कर रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि हर कोई मां को अपने घर में बुलाना चाहता है। साथ ही पूरे विधि-विधान से पूजा करना चाहता है। ऐसे में नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है। मां शैलपुत्री जिन्हें पर्वतरात हिमालय की पुत्री भी कहते हैं। सफेद वस्त्र को पहनें मां शैलपुत्री नंदी बैल की सवारी किए आती हैं। इनके माथे पर चंद्रमा और दाहिने हाथ में त्रिशुल होता है। इसलिए हर कोई नवरात्रि के पहले दिन इनकी पूजा करता है। इस नवरात्रि आप इनकी पूजा के साथ-साथ इनकी पौराणिक कथा को जरूर पढ़ें। इससे मां का आशीर्वाद आपको भरपूर मिलेगा।
नवरात्रि के पहले दिन जिस देवी की पूजा की जाती है, वह हैं मां शैलपुत्री। उनकी कथा बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक है। यह कहानी हमें दिखाती है कि कैसे एक आत्मा अपने स्वरूप को बदलकर भी अपने मूल उद्देश्य को नहीं भूलती।
मां शैलपुत्री का स्वरूप अत्यंत मनमोहक और शांत है। उनके सिर पर अर्धचंद्र सुशोभित है। वह अपने दाहिने हाथ में त्रिशूल धारण करती हैं, जो बुरी शक्तियों का नाश करने का प्रतीक है और बाएं हाथ में कमल का फूल जो पवित्रता और शांति का प्रतीक है।
उनका वाहन वृषभ यानी बैल है इसीलिए उन्हें 'वृषारूढ़ा' भी कहा जाता है। यह बैल धर्म और स्थिरता का प्रतीक माना जाता है, जो यह दर्शाता है कि देवी हमेशा धर्म और सच्चाई के रास्ते पर चलती हैं। उनका पूरा स्वरूप सादगी और शक्ति का एक अद्भुत संगम है, जो हमें जीवन में धैर्य और साहस के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।
मां शैलपुत्री हिमालय पर्वत की बेटी हैं। 'शैल' का अर्थ है पर्वत और 'पुत्री' का अर्थ है बेटी। इनके जन्म की कहानी भगवान शिव से जुड़ी हुई है। पूर्वजन्म में ये प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं और उनका नाम सती था। सती ने भगवान शिव से विवाह किया था, लेकिन उनके पिता दक्ष इस विवाह के खिलाफ थे। एक बार दक्ष ने एक बड़ा यज्ञ करवाया और सभी देवी-देवताओं को बुलाया, लेकिन जानबूझकर शिव और सती को निमंत्रण नहीं दिया।
सती को जब इस बात का पता चला, तो वे बिना बुलाए ही अपने पिता के घर यज्ञ में पहुंच गईं। वहां उन्होंने देखा कि सभी लोग शिव का अपमान कर रहे हैं। उनके पिता दक्ष ने भी शिव के बारे में बहुत बुरा-भला कहा। अपने पति का अपमान सुनकर सती बहुत क्रोधित हुईं। वे इस अपमान को सह नहीं पाईं और उसी यज्ञ कुंड में खुद को भस्म कर लिया।
सती के इस बलिदान से शिव बहुत दुखी हुए और उन्होंने दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया। इसके बाद, अगले जन्म में सती ने पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया, और तभी से उन्हें शैलपुत्री कहा जाने लगा। इस जन्म में भी उन्होंने भगवान शिव को ही अपने पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
मां शैलपुत्री की पूजा करने का एक गहरा अर्थ है। यह हमें यह सिखाता है कि भले ही हमारा जीवन बदलता रहे, लेकिन हमें अपने लक्ष्य और विश्वास पर अटल रहना चाहिए। यह कहानी हमें यह भी बताती है कि सही के लिए खड़े होना और अपमान के खिलाफ आवाज़ उठाना कितना जरूरी है।
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इस बार शारदीय नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की इस कथा को जरूर पढ़ें। इससे आपका व्रत भी पूरा हो जाएगा। साथ ही माता रानी की कृपा भी आपके ऊपर बनी रहेगी। आप इस कथा को सुबह और शाम दोनों समय में कर सकते हैं।
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