शास्त्रों में बताया गया है कि किसी भी पूजा-पाठ या हवन-अनुष्ठान के बाद आरती करना आवश्यक होता है, तभी किये गए उस आध्यात्मिक कार्य का पूर्ण फल मिलता है। आरती करना देवी-देवताओं के आवाहन का भी प्रतीक माना जाता है। ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि किसी भी पूजा-पाठ के बाद अगर आरती न की जाए तो उस पूजा में दोष लगता है और पूजा खंडित हो जाती है।
इसके अलावा, आरती करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि पूजा-पाठ या हवन आदि के बाद जब देवी-देवता उस स्थान से जा रहे होते हैं तो उस समय की गई आरती के माध्यम से वह जाते-जाते अपनी सकारात्मक और दिव्य ऊर्जा उस स्थान पर ही छोड़ जाते हैं। आरती करने के कई नियम भी शास्त्रों में बताये गए हैं। इन्हीं में से एक है आरती को आठ के आकार में करना। आइये जानते हैं इस बारे में।
आठ के आकार में ही क्यों करते हैं आरती?
भगवान की आरती हर जगह होती है फिर चाहे मंदिर हो या फिर घर। हालांकि मंदिरों में आरती करते समय उसे आठ के आकार में घुमाया जाता है जबकि घरों में अक्सर लोग आरती करते समय कई गलतियां कर बैठते हैं क्योंकि उन्हें सही तरीका नहीं पता होता है।
घर हो या मंदिर भगवान की आरती हमेशा आठ के आकार में ही करनी चाहिए। आरती को आठ के आकार में घुमाने के पीछे न सिर्फ धार्मिक कारण है बल्कि ज्योतिष आधार भी मौजूद है। धर्म और ज्योतिष के अनुसार, 8 अंक शनि देव एवं मां लक्ष्मी का माना जाता है।
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ऐसे में जब हम आठ के आकार में आरती करते हैं तो आपने कभी गौर किया होगा कि आरती नीचे से शुरू होती है, फिर ऊपर की ओर जाती है, फिर वापस से नीचे की ओर जाती है और फिर आखिर में ऊपर की ओर दोबारा जाती है। इसी तरह क्रम चलता रहता है।
आठ के आकार में आरती करना जीवन के चक्र को दर्शाता है कि व्यक्ति कभी नीचे होगा तो कभी ऊपर होगा, कभी नीचे से ऊपर जाएगा तो कभी ऊपर से नीचे की ओर जाएगा। यह क्रम शनि देव की साढ़े साती को भी दर्शाता है। शनि की साढ़े साती 3 चरण की होती है।
पहले चरण में व्यक्ति अपनी खराब स्थिति में होता है और धीरे-धीरे दूसरे चरण तक ऊपर की ओर आता है। फिर दूसरे चरण के समापन पर वह फिर से नीचे गिरता है और तीसरे चरण तक नीचे ही रहता है और तीसरे चरण के समापन पर पुनः ऊपर उठता है।
ऐसे में आठ के आकार में किसी भी देवी-देवता की आरती करें लेकिन उसके प्रभाव से शनि देव नियंत्रित रहते हैं, साढ़े-साती के दौरान कष्ट आते हैं लेकिन आपको उससे बाहर निकलने का सामार्थ भी स्वयं शनिदेव ही प्रदान करते हैं। आठ के आकार में आरती करने से शनि शांत रहते हैं।
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इसके अलावा, 8 के आकार में आरती करने से मां लक्ष्मी का वास घर में बना रहेता है। मां लक्ष्मी के अष्ट स्वरूपों की कृपा प्राप्त होती है। घर की आर्थिक स्थिति भी बेहतर बनती है और घर में कभी भी ध का अभाव नहीं होता है। धन से जुडी समस्याओं का निवारण स्वतः ही हो जाता है।
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image credit: herzindagi
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