हिंदू धर्म में कई ऐसी चालीसा हैं जो ईश्वर की भक्ति का मार्ग बताती हैं, यही नहीं इनके पाठ से आपके जीवन में सदैव खुशहाली बनी रह सकती है। इन्हीं में से एक है मां पार्वती चालीसा। यदि कोई व्यक्ति इनकी चालीसा का पथ नियमित रूप से करता है और उनकी भक्ति में लीन रहता है, तो इससे उनकी कृपा दृष्टि बनी रहती है। पौराणिक ग्रंथों में माता पार्वती को स्कंदमाता भी कहा जाता है और माता का पूजन विशेष रूप से फलदायी होता है। माता पार्वती की आराधना को पार्वती चालीसा के पाठ के साथ ही पूर्ण माना जाता है। इसका पाठ नियमित करने से आपके जीवन में खुशहाली बनी रहती है।
ऐसी मान्यता है कि पार्वती चालीसा का नियमित रूप से पाठ करना मंगलकारी होता है। यदि आपकी शादी में देरी हो रही है या बाधाएं आ रही हैं, तो आपको नियमित पार्वती चालीसा का पाठ करने की सलाह दी जाती है। महिलाओं के लिए पार्वती चालीसा का पाठ विशेष रूप से फलदायी माना जाता है और ऐसा कहा जाता है कि यदि आप इसका पाठ करती हैं तो जीवन से सभी बाधाएं दूर हो सकती हैं। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें पार्वती चालीसा के पाठ के फायदे, इसका अर्थ और महत्व क्या है।
क्या है पार्वती चालीसा?
जय गिरी तनये दक्षजे
शम्भू प्रिये गुणखानि ।
गणपति जननी पार्वती
अम्बे! शक्ति! भवानि ॥
||चालीसा ||
ब्रह्मा भेद न तुम्हरो पावे ।
पंच बदन नित तुमको ध्यावे ॥
षड्मुख कहि न सकत यश तेरो ।
सहसबदन श्रम करत घनेरो ॥
तेऊ पार न पावत माता ।
स्थित रक्षा लय हिय सजाता ॥
अधर प्रवाल सदृश अरुणारे ।
अति कमनीय नयन कजरारे ॥
ललित ललाट विलेपित केशर ।
कुंकुंम अक्षत शोभा मनहर ॥
कनक बसन कंचुकि सजाए ।
कटी मेखला दिव्य लहराए ॥
कंठ मदार हार की शोभा ।
जाहि देखि सहजहि मन लोभा ॥
बालारुण अनंत छबि धारी ।
आभूषण की शोभा प्यारी ॥
नाना रत्न जड़ित सिंहासन ।
तापर राजति हरि चतुरानन ॥
इन्द्रादिक परिवार पूजित ।
जग मृग नाग यक्ष रव कूजित ॥
गिर कैलास निवासिनी जय जय ।
कोटिक प्रभा विकासिनी जय जय ॥
त्रिभुवन सकल कुटुंब तिहारी ।
अणु अणु महं तुम्हारी उजियारी ॥
हैं महेश प्राणेश तुम्हारे ।
त्रिभुवन के जो नित रखवारे ॥
उनसो पति तुम प्राप्त कीन्ह जब ।
सुकृत पुरातन उदित भए तब ॥
बूढ़ा बैल सवारी जिनकी ।
महिमा का गावे कोउ तिनकी ॥
सदा श्मशान बिहारी शंकर ।
आभूषण हैं भुजंग भयंकर ॥
कण्ठ हलाहल को छबि छायी ।
नीलकण्ठ की पदवी पायी ॥
देव मगन के हित अस किन्हो ।
विष लै आपु तिनहि अमि दिन्हो ॥
ताकी तुम पत्नी छवि धारिणी ।
दुरित विदारिणी मंगल कारिणी ॥
देखि परम सौंदर्य तिहारो ।
त्रिभुवन चकित बनावन हारो ॥
भय भीता सो माता गंगा ।
लज्जा मय है सलिल तरंगा ॥
सौत समान शम्भू पहआयी ।
विष्णु पदाब्ज छोड़ि सो धायी ॥
तेहि कों कमल बदन मुरझायो ।
लखी सत्वर शिव शीश चढ़ायो ॥
नित्यानंद करी बरदायिनी ।
अभय भक्त कर नित अनपायिनी ॥
अखिल पाप त्रयताप निकन्दिनी ।
माहेश्वरी हिमालय नन्दिनी ॥
काशी पुरी सदा मन भायी ।
सिद्ध पीठ तेहि आपु बनायी ॥
भगवती प्रतिदिन भिक्षा दात्री ।
कृपा प्रमोद सनेह विधात्री ॥
रिपुक्षय कारिणी जय जय अम्बे ।
वाचा सिद्ध करि अवलम्बे ॥
गौरी उमा शंकरी काली ।
अन्नपूर्णा जग प्रतिपाली ॥
सब जन की ईश्वरी भगवती ।
पतिप्राणा परमेश्वरी सती ॥
तुमने कठिन तपस्या कीनी ।
नारद सों जब शिक्षा लीनी ॥
अन्न न नीर न वायु अहारा ।
अस्थि मात्रतन भयउ तुम्हारा ॥
पत्र घास को खाद्य न भायउ ।
उमा नाम तब तुमने पायउ ॥
तप बिलोकी ऋषि सात पधारे ।
लगे डिगावन डिगी न हारे ॥
तब तब जय जय जय उच्चारेउ ।
सप्तऋषि निज गेह सिद्धारेउ ॥
सुर विधि विष्णु पास तब आए ।
वर देने के वचन सुनाए ॥
मांगे उमा वर पति तुम तिनसों ।
चाहत जग त्रिभुवन निधि जिनसों ॥
एवमस्तु कही ते दोऊ गए ।
सुफल मनोरथ तुमने लए ॥
करि विवाह शिव सों भामा ।
पुनः कहाई हर की बामा ॥
जो पढ़िहै जन यह चालीसा ।
धन जन सुख देइहै तेहि ईसा ॥
|| दोहा ||
कूटि चंद्रिका सुभग शिर,
जयति जयति सुख खानि
पार्वती निज भक्त हित,
रहहु सदा वरदानि ।
॥ इति श्री पार्वती चालीसा ॥
पार्वती चालीसा का भावार्थ
जय गिरी तनये दक्षजे
शम्भू प्रिये गुणखानि ।
गणपति जननी पार्वती
अम्बे! शक्ति! भवानि ॥
भावार्थ- हे गिरीजा यानी पार्वती जी, हे दक्ष की पुत्री, हे शिवजी की प्रिय पत्नी, गुणों की खान, गणपति की माता, पार्वती अम्बे, शक्ति और भवानी।
ब्रह्मा भेद न तुम्हरो पावे ।
पंच बदन नित तुमको ध्यावे ॥
षड्मुख कहि न सकत यश तेरो ।
सहसबदन श्रम करत घनेरो ॥
भावार्थ- ब्रह्मा भी आपके भेद को नहीं जान पाते हैं, पंचमुखी शिवजी हमेशा आपका ध्यान करते हैं। छह मुख वाले कार्तिकेय भी आपके यश का वर्णन नहीं कर सकते हैं और हजार मुख वाले अनंत शेष भी आपके गुणों का वर्णन करने में बहुत प्रयास करते हैं।
तेऊ पार न पावत माता ।
स्थित रक्षा लय हिय सजाता ॥
अधर प्रवाल सदृश अरुणारे ।
अति कमनीय नयन कजरारे ॥
भावार्थ- माता आपकी महिमा और शक्ति का पार नहीं पाया जा सकता है, आप सृष्टि, पालन और लय की अधिष्ठात्री हैं। आपके होंठ मूंगा के सामान अरुण और सुंदर हैं और आपके नेत्र काजल से सजे हुए अत्यंत मनोहर दिखाई देते हैं।
ललित ललाट विलेपित केशर ।
कुंकुंम अक्षत शोभा मनहर ॥
कनक बसन कंचुकि सजाए ।
कटी मेखला दिव्य लहराए ॥
भावार्थ- आपके सुंदर ललाट पर केसर का तिलक शोभित है, जो कुमकुम और अक्षत से और भी ज्यादा मनोहारी हो रहा है। आपने स्वर्णिम वस्त्र और कंचुकी धारण किया हुआ है, जो आपकी गर्दन पर दिव्य मेखला के साथ लहरा रही है।
कंठ मदार हार की शोभा ।
जाहि देखि सहजहि मन लोभा ॥
बालारुण अनंत छबि धारी ।
आभूषण की शोभा प्यारी ॥
भावार्थ- आपका कंठ मदार के हार से शोभायमान हो रहा है, जिसे देखकर मन स्वतः ही लोभित हो जाता है। आपने अरुण यानी लाल रंग के वस्त्र धारण किए हैं, जो अनंत छबि को धारण किए हुए हैं। आपके आभूषणों की शोभा अत्यंत प्यारी है।
नाना रत्न जड़ित सिंहासन ।
तापर राजति हरि चतुरानन ॥
इन्द्रादिक परिवार पूजित ।
जग मृग नाग यक्ष रव कूजित ॥
भावार्थ- मां आपके सिंहासन पर नाना प्रकार के रत्न जड़ित हैं, जिस पर विष्णु और ब्रह्मा विराजमान हैं। इंद्र आदि देवताओं का परिवार आपकी पूजा करता है और जगत में मृग, नाग, यक्ष और पक्षियों की आवाजें गूंजती हैं।
गिर कैलास निवासिनी जय जय ।
कोटिक प्रभा विकासिनी जय जय ॥
त्रिभुवन सकल कुटुंब तिहारी ।
अणु अणु महं तुम्हारी उजियारी ॥
भावार्थ- हे कैलाश पर्वत में निवास करने वाली माता, आपकी जय हो। करोड़ों प्रभा की विकासिनी, आपकी जय हो। तीनों भवनों का संपूर्ण कुटुंब आपका है, और अणु-अणु में आपकी उजियारी फैली हुई है।
हैं महेश प्राणेश तुम्हारे ।
त्रिभुवन के जो नित रखवारे ॥
उनसो पति तुम प्राप्त कीन्ह जब ।
सुकृत पुरातन उदित भए तब ॥
भावार्थ- भगवान शिव आपके प्राणेश्वर हैं, जो तीनों भुवनों की नित रक्षा करते हैं। जब आपने उन्हें पति के रूप में प्राप्त किया, तब आपके पुराने पुण्यों का उदय हुआ।
बूढ़ा बैल सवारी जिनकी ।
महिमा का गावे कोउ तिनकी ॥
सदा श्मशान बिहारी शंकर ।
आभूषण हैं भुजंग भयंकर ॥
भावार्थ- भगवान शिव की सवारी एक बूढ़ा बैल है और उनकी महिमा का वर्णन भला कौन कर सकता है? भगवान शंकर हमेशा श्मशान में विचरण करते हैं, और उनके आभूषण भयंकर सर्प हैं।
कण्ठ हलाहल को छबि छायी ।
नीलकण्ठ की पदवी पायी ॥
देव मगन के हित अस किन्हो ।
विष लै आपु तिनहि अमि दिन्हो ॥
भावार्थ- भगवान शिव के कंठ में हलाहल विष की छबि है, जिससे उन्हें नीलकण्ठ कहा जाता है। देवताओं की भलाई के लिए उन्होंने ये काम किया। उन्होंने विष स्वयं पी लिया, जिससे देवताओं को अमृत प्राप्त हुआ।
ताकी तुम पत्नी छवि धारिणी ।
दुरित विदारिणी मंगल कारिणी ॥
देखि परम सौंदर्य तिहारो ।
त्रिभुवन चकित बनावन हारो ॥
भावार्थ- मां आप भगवान शिव की पत्नी हैं और सुंदर छवि की धारिणी हैं। आप पापों को विदीर्ण करने वाली और मंगल करने वाली हैं। आपके परम सौंदर्य को देखकर तीनों लोक चकित हो जाते हैं और आपके सौंदर्य की तुलना करने में असमर्थ होते है।
भय भीता सो माता गंगा ।
लज्जा मय है सलिल तरंगा ॥
सौत समान शम्भू पहआयी ।
विष्णु पदाब्ज छोड़ि सो धायी ॥
भावार्थ- भय से भीती हुई गंगा माता हैं और उनकी तरंगें लज्जामयी हैं। शिवजी ने उन्हें अपनी जटाओं में समेट लिया और विष्णु के चरण कमलों को छोड़कर मां गंगा उनकी जटाओं में समा गई हैं।
तेहि कों कमल बदन मुरझायो ।
लखी सत्वर शिव शीश चढ़ायो ॥
नित्यानंद करी बरदायिनी ।
अभय भक्त कर नित अनपायिनी ॥
भावार्थ- उस समय भगवान शिव का कमल जैसा मुख मुरझा गया था, लेकिन जब उन्होंने गंगा को अपनी जटाओं पर धारण किया, तो उन्होंने नित्यानंद प्रदान किया। वह भक्तों को अभय प्रदान करने वाली हैं और उनकी भक्ति में कभी कमी नहीं आती है।
अखिल पाप त्रयताप निकन्दिनी ।
माहेश्वरी हिमालय नन्दिनी ॥
काशी पुरी सदा मन भायी ।
सिद्ध पीठ तेहि आपु बनायी ॥
भावार्थ- मां आप समस्त पापों का नाश करने वाली हैं। आप माहेश्वरी और हिमालय की पुत्री हैं। काशी नगरी सदैव आपके मन को भाती है और आपने इसे सिद्ध पीठ के रूप में स्वयं बनाया है।
भगवती प्रतिदिन भिक्षा दात्री ।
कृपा प्रमोद सनेह विधात्री ॥
रिपुक्षय कारिणी जय जय अम्बे ।
वाचा सिद्ध करि अवलम्बे ॥
भावार्थ- हे भगवती आप प्रतिदिन भिक्षा देने वाली हैं। आप कृपा, आनंद और प्रेम की विधात्री हैं। हे अम्बे आप शत्रुओं का नाश करने वाली हैं, आपकी जय हो। आपकी वाणी सिद्ध है और आप अपने भक्तों की रक्षा करती हैं।
गौरी उमा शंकरी काली ।
अन्नपूर्णा जग प्रतिपाली ॥
सब जन की ईश्वरी भगवती ।
पतिप्राणा परमेश्वरी सती ॥
भावार्थ- आप गौरी, उमा, शंकरी, काली और अन्नपूर्णा हैं। आप जगत की प्रतिपालक हैं। आप सबकी ईश्वरी और भगवती हैं। आप अपने पति को अत्यधिक प्रेम करने वाली परमेश्वरी और सती हैं।
तुमने कठिन तपस्या कीनी ।
नारद सों जब शिक्षा लीनी ॥
अन्न न नीर न वायु अहारा ।
अस्थि मात्रतन भयउ तुम्हारा ॥
भावार्थ- आपने उस समय भी कठिन तपस्या की थी, जब नाराज जी से शिक्षा ग्रहण की थी। तब आपने अन्न, जल और वायु का भी त्याग कर दिया। आपकी तपस्या इतनी कठोर थी कि आपके शरीर में मात्र अस्थियां ही रह गई थीं।
पत्र घास को खाद्य न भायउ ।
उमा नाम तब तुमने पायउ ॥
तप बिलोकी ऋषि सात पधारे ।
लगे डिगावन डिगी न हारे ॥
भावार्थ- आपको पत्र और घास भी खाद्य के रूप में नहीं भाए। तब आपका नाम उमा पड़ा। आपकी तपस्या को देखकर सप्तऋषि आए और आपको डिगाने की कोशिश करने लगे, लेकिन आप डिगी नहीं और अपने संकल्प पर अडिग रहीं।
तब तब जय जय जय उच्चारेउ ।
सप्तऋषि निज गेह सिद्धारेउ ॥
सुर विधि विष्णु पास तब आए ।
वर देने के वचन सुनाए ॥
भावार्थ- तब सभी ने आपकी जय-जयकार की। सप्तऋषि अपने घरों में वापस चले गए। तब देवता, ब्रह्मा और विष्णु आपके पास आए और आपको वरदान देने के वचन सुनाए।
मांगे उमा वर पति तुम तिनसों ।
चाहत जग त्रिभुवन निधि जिनसों ॥
एवमस्तु कही ते दोऊ गए ।
सुफल मनोरथ तुमने लए ॥
भावार्थ- उमा ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में मांगा, जो तीनों लोकों के खजाने के समान हैं। देवताओं ने 'एवमस्तु' कहा और फिर वे दोनों चले गए। आपने अपने मनोरथ को सफलतापूर्वक पूर्ण किया।
करि विवाह शिव सों भामा ।
पुनः कहाई हर की बामा ॥
जो पढ़िहै जन यह चालीसा ।
धन जन सुख देइहै तेहि ईसा ॥
भावार्थ- भगवान शिव के साथ पार्वती का विवाह हुआ और वह फिर से भगवान शिव की बामनगी बनीं। जो कोई भी इस चालीसा को पढ़ेगा, भगवान शिव उसे धन, संतान और सुख प्रदान करेंगे।
|| दोहा ||
कूटि चंद्रिका सुभग शिर,
जयति जयति सुख खानि
पार्वती निज भक्त हित,
रहहु सदा वरदानि ।
भावार्थ- चंद्रिका की शोभा से युक्त सुंदर मुख वाली पार्वती जी की जय हो, जय हो। हे सुखों की खान पार्वती आप अपने भक्तों के हित के लिए सदा वरदान देने वाली हैं।
॥ इति श्री पार्वती चालीसा ॥
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पार्वती चालीसा का महत्व?
पार्वती चालीसा का नियमित पाठ करने से माता पार्वती की कृपा बनी रहती है, जो उनके भक्तों के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति लाती है। पार्वती चालीसा का पाठ करने से आध्यात्मिक विकास तो होता ही है और मानसिक सुखों की प्राप्ति भी होती है। इससे किसी भी व्यक्ति के जीवन में धार्मिकता और अध्यात्म की भावना बढ़ती है। यही नहीं पार्वती चालीसा का पाठ करने से विवाह और संबंधों में सुख और समृद्धि आती है, जिससे आपका दांपत्य जीवन खुशहाल बना रहता है।
यदि कोई दंपति संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं तो उन्हें इस चालीसा का पाठ जरूर करना चाहिए। पार्वती चालीसा का पाठ करने से शक्ति और साहस की प्राप्ति होती है और व्यक्ति के जीवन में चुनौतियों का सामना करने की क्षमता बढ़ती है। यह चालीसा धन और समृद्धि की प्राप्ति में भी मदद करती है और व्यक्ति के जीवन में आर्थिक स्थिरता और सुख बढ़ता है।
पार्वती चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में कई लाभ हो सकते हैं, इससे आपके जीवन में सकारात्मकता बनी रहती है। आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से। अपने विचार हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।
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