जगन्नाथ रथ यात्रा हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण और भव्य त्योहारों में से एक है, जो हर साल उड़ीसा के पुरी में भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को समर्पित है। यह पर्व लाखों भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है, जो इस अद्भुत दृश्य के साक्षी बनने और भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए देश-विदेश से आते हैं। जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास सदियों पुराना है और इसका उल्लेख विभिन्न पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। यह यात्रा भगवान जगन्नाथ के 'गुंडिचा मंदिर' जाने का प्रतीक है, जहां वे सात दिनों तक विश्राम करते हैं और फिर अपने मुख्य मंदिर लौटते हैं। यह पर्व आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। यात्रा से कई दिन पहले ही तैयारियां शुरू हो जाती हैं। जिसमें पहले नंदीघोष जो भगवान जगन्नाथ का रथ है। दूसरा तालध्वज जो बलभद्र का रथ है और तीसरा दर्पदलन जो सुभद्रा का रथ है। अब ऐसे में यह रथ यात्रा कब से शुरू हो रही है और इसका धार्मिक महत्व क्या है। इसके बारे में इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
जगन्नाथ रथ यात्रा कब से हो रहा है शुरू?
जगन्नाथ रथ यात्रा 27 जून, शुक्रवार से शुरू हो रही है। यह आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाई जाती है। यह उत्सव लगभग 9 दिनों तक चलता है और लाखों भक्त इसमें शामिल होने के लिए देश-विदेश से आते हैं।
जगन्नाथ रथ यात्रा किस मुहूर्त में होगा आरंभ?
हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को यह भव्य यात्रा निकाली जाती है। 2025 में, द्वितीया तिथि का आरंभ 26 जून को दोपहर 1 बजकर 25 मिनट से होगा और इसका समापन 27 जून को सुबह 11 बजकर 19 मिनट पर होगा। उदयातिथि के अनुसार, रथ यात्रा का मुख्य आयोजन 27 जून को ही होगा।
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जगन्नाथ रथ यात्रा का धार्मिक महत्व क्या है?
रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के रथों के दर्शन करने या उन्हें खींचने मात्र से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है और उसे मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह माना जाता है कि इस यात्रा में शामिल होने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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