
पिछले हफ्ते हमने इस बात से शुरुआत की कि क्यों महिलाएं धन के बारे में मौन हो जाती हैं। ये मौन टूटना आवश्यक है। आपके निर्णयों में वजन होना चाहिए। अब जब आपके हाथों में कलम आ चुकी है तो अगला कदम क्या होना चाहिए। यहां ये समझने का प्रयास होना चाहिए कि धन को अलमारी में बंद नहीं रखा जा सकता। उसे बढ़ाना होगा।
कई पीढ़ियों तक महिलाओं ने अपनी बचत के स्वभाव पर गर्व किया है। हमारी दादी-नानी अपनी साड़ी के पल्लू में तो कभी किचेन के स्टील के डिब्बों में नोट छिपाकर रखा करती थीं। घर का बजट प्रबंधन करते समय वे थोड़ा धन वक्त बेवक्त की जरूरत के लिए बचाकर रखती थीं। आज की महिलाओं में भी आपात स्थिति के लिए धन बचाकर रखने की प्रवृत्ति देखी जाती है। जब बैंकों तक उनकी पहुंच नहीं थी, तब बचत की ये प्रवृत्ति उन्हें आर्थिक सुरक्षा का अहसास देती थी। लेकिन आज के दौर में इस तरह धन को बंद रखना सुरक्षा देने के बजाय उसका क्षरण कहलाएगा।
इस तरह से सोचें कि दस साल पहले 500 रुपये में झोला भरकर राशन आ जाता था, लेकिन आज उसी पैसे में बमुश्किल आधा झोला भरेगा। जो गैस सिलिंडर 350 रुपये में आता था, उसकी कीमत बढ़कर करीब एक हजार रुपये हो गई है। जो स्कूल फीस 20 हजार रुपये हुआ करती थी वो बढ़कर 50 हजार रुपये हो गई है। कीमतों में ये उछाल ही मुद्रास्फीति है। सरल शब्दों में आपके हाथों में धन वही है, लेकिन वर्ष बीतने के साथ ही उससे खरीद की क्षमता कम होती जा रही है। इसीलिए सिर्फ बचत करना ही काफी नहीं रह गया है। धन को अलमारी में बंद रखकर या कम ब्याज पर बैंकों में रखकर आप मुद्रास्फीति से नहीं निपट सकेंगी।

घर की बंद अलमारी में पैसे रखने से बेहतर है कि उसे बैंक में जमा कर दें। धन को सेविंग अकाउंट में रखेंगी तो कुछ तो ब्याज मिलेगा। यदि उसे फिक्स डिपाजिट (सावधि जमा) कर दिया तो उससे थोड़ा अधिक मिलेगा। इससे सुरक्षा का अहसास पनपेगा। बैंक अकाउंट स्टेटमेंट में बचत राशि बढ़ती दिखेगी, ये बढ़त है, पर यहां कुछ क्षण रुककर सोचने की आवश्यकता है। आपको जमा राशि पर कितना ब्याज मिलेगा, ये कौन तय करता है? एक साल के फिक्स डिपाजिट पर लगभग 5.5 प्रतिशत ब्याज ही क्यों मिलता है, वो 8 प्रतिशत क्यों नहीं होता? यहां रिजर्व बैंक आपके जीवन में प्रवेश करता है। आपने अक्सर रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति या ब्याज दरों में परिवर्तन को लेकर हेडलाइन पढ़ी होगी। हो सकता है कि आपने ये सोचकर लेख बिना पढ़े ही छोड़ दिया हो कि ये बहुत तकनीकी हो जाएगा, जबकि उसका सीधा प्रभाव मुद्रास्फीति व आपके जनजीवन पर पड़ता है।
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इस स्तंभ में आगे आप जानेंगी कि इन शब्दों को समझना इतना भी जटिल नहीं हैं। उन खबरों को समझ सकेंगी कि कैसे वे आपके धन से जुड़ा विषय हैं।
प्रत्येक कुछ माह में रिजर्व बैंक रेपो रेट तय करता है, ये वह दर होती है जिस पर वह बैंकों को धनराशि उपलब्ध कराता है। जब रिजर्व बैंक इस दर में बदलाव करता है तो बैंकों पर भी असर पड़ता है। ऋण व जमा की ब्याज दरें प्रभावित होती हैं। आपकी ईएमआई और फिक्स डिपाजिट पर ब्याज की दर भी परिवर्तित होती है। यहां पर पुन: एक बार रुककर विचार करें कि यदि फिक्स डिपाजिट पर पांच प्रतिशत ब्याज मिल रहा है, लेकिन कीमतों में छह प्रतिशत का उछाल आ रहा है, तो क्या आप फायदे में हैं। कागजों पर आपकी जमाराशि बढ़ी हुई दिखेगी, पर वास्तविक जीवन में आप उससे कम खरीदारी कर सकेंगी। आपको ब्याज राशि पर भी कर देना पड़ेगा, इस तरह आपकी फिक्स डिपाजिट मुद्रास्फीति का मुकाबला शायद ही कर सकेगी। भारत की मुद्रास्फीति 5.5 प्रतिशत है, स्वयं देखें कि इसमें व ब्याज दर में कितना कम अंतर है। यही वजह है कि सिर्फ बचत करना ही आपका लक्ष्य नहीं होना चाहिए। धन को बढ़ाना भी जरूरी है। हमें ये देखना होगा कि जिस तेजी से कीमतें बढ़ रही हैं, उससे अधिक तेजी से हमारा धन बढ़े।

यही इस हफ्ते का आपका अभ्यास है। नोटबुक उठाएं और उस पर लिखें कि आपका धन कहां रखा है- क्या धन घर पर रखा है, सेविंग अकाउंटस का बैलेंस और फिक्स डिपाजिट लिखें, सभी की ब्याज दर भी लिखें। फिर विचार करें कि जीवन से जुड़ी चीजों- स्कूल की फीस, राशन, दवाओं इत्यादि की कीमतें किस प्रकार बढ़ी हैं। स्वयं से सवाल करें कि क्या मेरा धन वास्तव में कीमतों से अधिक तेजी से बढ़ रहा है या उससे पीछे है? यह सामान्य जागरूकता ही इस विषय में नई बातें सीखने का आधार बनेगी। जब तक आप ये महसूस नहीं करेंगी कि बचत ही काफी नहीं है, तब तक निवेश के विकल्पों को समझने का प्रयास भी नहीं करेंगी।
लक्ष्मी सिर्फ संरक्षक नहीं हैं, वह सर्जक भी हैं। यह समय है कि आप धन को बढ़ाने पर विचार करें।
अगले हफ्ते: निवेश से पहले हम रुक कर स्वयं से प्रश्न करेंगे, क्या जो धन आपके पास है उस पर नियंत्रण भी रखती हैं। अपने बैंक अकाउंट पर नियंत्रण का वास्तविक अर्थ क्या है? आपके हस्ताक्षर का महत्व क्या है। ये धन कमाने और निवेश जितना ही महत्वपूर्ण है।
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