
धनतेरस से शुरू हुआ दिवाली का पर्व 3 से 4 दिनों के लिए पूरे भारत में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। दिवाली के दो दिन बाद भाई दूज मनाया जाता है। बता दें कि भाई दूज और रक्षाबंधन दोनों ही भाई- बहनों से जुड़ा त्यौहार है लेकिन दोनों त्यौहारोका अपना अलग- अलग महत्व है। आज के इस आर्टिकल में हम आपको बताने वाले है इन त्यौहारोके महत्व के बारे में।
अब इस बात को सुनकर कई लोगों को लग रहा होगा कि जब रक्षाबंधन को भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक माना गया है तो भाई दूज क्यों? इसमें ऐसा क्या अलग है? बता दें कि रक्षा बंधन को जहां हिन्दू माह श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है वहीं भाई दूज कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाता है।

रक्षाबंधन की उत्पत्ति महाभारत की घटनाओं के दौरान हुई थी। ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान कृष्ण ने गलती से अपने सुदर्शन चक्र से अपनी उंगली काट ली थी तो राजकुमारी द्रौपदी ने अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर खून को रोकने के लिए वो पट्टी उनकी उंगली पर बांध दी थी। भगवान कृष्ण इस भाव से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने हमेशा उसकी रक्षा करने और उन्हें सजाने की कसम खाई। इसी के बाद से रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाने लगा।
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यमराज और यमुना भाई-बहन थे और साथ ही इन दोनों में काफी प्रेम था। यमराज और यमुना सूर्य देव एवं छाया की संतानें थीं। ऐसा कहा जाता है कि यमराज अपने कार्य की अधिकता के कारण यमुना से मिलने नहीं जा पाते थे। लेकिन यमुना उन्हें बहुत बुलाती रहतीं थीं। एक दिन किसी नदी तट पर यमराज की मुलाकात यमुना से हो गई। इससे यमुना काफी प्रसन्न हुई और उन्होंने अपने भाई का काफी स्वागत किया। यमुना ने अपने भाई यमराज से कहा कि आज से प्रत्येक वर्ष आप मुझसे मिलने इसी दिन आओगे। और तब से कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया का वो दिन भाई दूज के नाम से जाना जाता है।
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बता दे कि दोनों ही दिन बहन अपने भाई की लंबी आयु के लिए प्रतिज्ञा लेती है। भाई-दूज पर बहने अपने भाई की आरती करती है वहीं रक्षाबंधन में बहन अपने भाई को कलाई पर राखी बांधती है। रक्षा बंधन पर धागे का अर्थ होता है कि भाई किसी भी बुराई से अपनी बहन की रक्षा करेगा, जबकि भाई-दूज पर बहन भाई के माथे पर तिलक लगाती है।
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