हर लड़की का सपना होता है कि एक दिन वह शादी करेगी और अपने हमसफर के साथ जिंदगी बिताएगी। जहां एक तरफ बेटी शादी की तैयारी कर रही होती है, वहीं दूसरी तरफ उसकी फैमिली का ध्यान शादी की खुशियों से ज्यादा इस पर होता है कि सोना कितना देना है, नकद कितना देना है, गाड़ी कौन-सी देनी है और फर्नीचर भी तो देना होगा। सोचिए शादी जैसा खुशी का मौका अक्सर लड़की के माता-पिता के लिए बोझिल बन जाता है, क्योंकि उन्हें अपनी बेटी देने के साथ-साथ लाखों का दहेज भी देना पड़ता है, जिसे लड़के वाले अपनी भाषा में गिफ्ट्स कहते हैं।
दहेज देकर माता-पिता बेटी को ससुराल भेज देते हैं, लेकिन कई बार शादियां सक्सेसफुल नहीं हो पाती हैं और पति-पत्नी तलाक ले लेते हैं। इसके बाद, पत्नी के पास न तो नौकरी होती है और न ही बच्चों को पालने के लिए पैसे होते हैं। ऐसे में उसकी मदद कानून करता है और अदालतें पति को तलाक के बाद उसकी इनकम के अनुसार एलिमनी तय करती है। एलिमनी का मतलब होता है कि पति हर महीने अपने पत्नी को खर्च के लिए पैसा देता है ताकि वह जिंदगी जी सके। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब दोनों में पैसे का लेन-देन है, तो दहेज को कानूनन अपराध और एलिमनी को कानूनी हक क्यों माना जाता है। हालांकि इस फर्क को समझने के लिए आपको आंकड़ों पर एक नजर डालनी होगी।
दहेज हत्याओं को लेकर ताजे आंकड़ें
भारत में दहेज से जुड़ी हिंसा आज भी एक खतरनाक हकीकत है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के मुताबिक, 2024 में दहेज की वजह से 7045 महिलाओं की जान चली गई, सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्होंने या उनके परिवार ने दहेज मांग पूरी नहीं की। आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश इस सूची में सबसे ऊपर है, जहां 2302 दहेज हत्याएं दर्ज की गईं। इसके बाद बिहार (1047), मध्य प्रदेश (627), ओडिशा (512), और राजस्थान (480) जैसे राज्य आते हैं, जो यह दर्शाते हैं कि यह समस्या उत्तर और पूर्वी भारत में सबसे ज्यादा गंभीर है। साल 2024 में राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) को मिली कुल 25,743 शिकायतों में से 4,383 (करीब 17%) शिकायतें दहेज उत्पीड़न से जुड़ी थीं। वहीं अगर पिछले कुछ सालों के आंकड़ों को देखें तो 2017 से 2021 के बीच भारत में कुल 35,493 दहेज हत्याओं के मामले सामने आए यानी हर दिन औसतन 20 महिलाएं दहेज की वजह से मारी गईं। अकेले उत्तर प्रदेश में ही प्रतिदिन लगभग 6 मौतें दर्ज हुईं।
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दहेज: एक सौदा है, अपराध भी
दहेज केवल पैसों या गिफ्ट्स का लेन-देन नहीं है। असल में यह शादी करने वाली लड़की पर लगाया जाने वाला प्राइस टैग है। ऐसे में सवाल उठता है कि लड़की के माता-पिता ने जो उसे पढ़ाया-लिखाया और अपने पैरों पर खड़े होने के काबिल बनाया उसका तो कोई मतलब ही नहीं है। शादी का मतलब दहेज सोचकर आजकल लड़कियां खुद को बहुत बेबस समझने लगी हैं। भारत में अक्सर लड़कियां बचपन से ही सुनती हैं कि लड़की है, शादी के लिए कुछ ना कुछ जोड़कर रखना पड़ेगा।
दहेज को रोकने के लिए क्या कानून बनाए गए?
जब शादी का वक्त आता है, तो यही सोच सामने आ भी जाती है। अगर ससुराल वालों की मांग पूरी नहीं हो पाती है, तो लड़की को शादी के बाद सुनना पड़ता है कि तेरे मां-बाप ने हमें दिया ही क्या है? कई बार तो दहेज की वजह से पति और ससुराल वाले लड़की के साथ मारपीट करते हैं और कई बार बेटियों की जान तक चली जाती है या वह खुद अपनी जान ले लेती हैं। इसलिए दहेज देना और लेना कानूनन अपराध है। दहेज को खत्म करने के लिए भारत सरकार ने दहेज निषेध अधिनियम, 1961 (Dowry Prohibition Act, 1961) बनाया गया। इस अधिनियम का उद्देश्य सजा देना नहीं, बल्कि महिलाओं की इज्जत और सुरक्षा को कानूनी हक देना है। इसके अलावा भारतीय दंड संहिता की धारा 304B के तहत, अगर किसी की शादी के 7 साल के अंदर उसकी मौत हो जाती है और यह साबित हो जाता है कि मौत से पहले उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया था, तो यह एक दहेज हत्या मानी जाती है। ऐसे में आरोपी को 7 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा दी जा सकती है।
एलिमनी: एक सहारा है, कोई सौदा नहीं
अब हम बात एलिमनी यानी गुजारा भत्ता की करते हैं। एलिमनी तब दी जाती है जब किसी महिला की शादी टूटती है। तलाक लेना आसान फैसला नहीं होता है और यह इमोशनली भी डैमेज करता है। कई बार शादी के बाद महिलाएं नौकरी करना छोड़ देती हैं और वह पूरी तरह पति की कमाई पर निर्भर हो जाती हैं। ऐसे में जब वह अपने पति से अलग होती हैं, तो वह खुद को असहाय महसूस करने लगती हैं। ऐसे में गुजारा भत्ता ही उनका सहारा बनता है।
एलिमनी कोई इनाम नहीं है, बल्कि एक औरत की आर्थिक जरूरत को पूरा करने के लिए दिया गया पैसा होता है ताकि वह अपनी जिंदगी वापस से शुरू कर सके।
भारतीय कानून भी इस बात को मानता है कि भारत में बहुत सी महिलाएं शादी के बाद घर संभालती हैं, बच्चों को पालती हैं और परिवार के लिए योगदान देती हैं, लेकिन उन्हें इसके लिए कोई पैसा नहीं मिलता है। वहीं, जब शादी टूट जाती है, तो उनके पास कुछ नहीं बचता है, न जॉब, न सेविंग्स और न ही सहारा। इसलिए भारतीय कानूनों ने सीआरपीसी धारा 125 और घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत यह सुनिश्चित किया गया है कि ऐसी महिलाओं को रहने, खाने और जरूरतों के लिए पैसा मिल सके और वह अपने बच्चों की देखभाल कर सकें। उन्हें किसी के सामने हाथ न फैलाना पड़े।
दहेज हत्याएं आज भी क्यों हो रही हैं?
भले ही आज हम डिजिटल और मॉर्डन युग में जी रहे हैं, लेकिन भारत में आज भी हजारों महिलाएं दहेज की वजह से मारी जा रही हैं। इसके पीछे कई गहरे कारण हैं।
- आज ही पितृसत्तात्मक समाज मानता है कि शादी के बाद महिला का काम केवर घर संभालना है। जब एक औरत आर्थिक रूप से पूरी तरह पति पर निर्भर होती है, तो ससुराल वाले उसपर हुक्म चलाना और दहेज के लिए दबाव बनाना आसान समझते हैं।
- आज भी दहेज को लोग सोशल स्टेटस मानते हैं। सुसराल वाले सोचते हैं कि अगर दहेज में ज्यादा पैसा, गाड़ी या गहने मिलें, तो उनका स्टेटस बढ़ेगा। अगर मांगे पूरी नहीं होती हैं, तो लड़की को शादी के बाद ताने सुनने पड़ते हैं।
- अक्सर जब लड़की का परिवार दहेज की शिकायत करता है, तो समाज उन्हें बदनाम करने लगता है। लोग लड़की के चरित्र को लेकर तरह-तरह की बातें करने लग जाते हैं, जिसकी वजह से कई बार लड़की और उनकी फैमिली चुप रहा जाती है।
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Image Credit - freepik, canva
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