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why do we not prefer daughter name sita in mythology

आखिर क्यों बेटी का नाम सीता नहीं रखा जाता है

जब भी बेटी का नामकरण होता है तब लोग उसका नाम सीता नहीं रखना चाहते हैं। आइए जानें इसके पीछे के कारणों, धार्मिक तथ्यों और इससे जुड़ी कुछ अन्य बातों के बारे में।&nbsp; <div>&nbsp;</div>
Editorial
Updated:- 2023-04-25, 19:37 IST

जब हम किसी शादीशुदा जोड़े को खुश देखते हैं तो मन में यही आता कि इनकी जोड़ी सीता-राम जैसी है। यही नहीं बड़ों से आशीर्वाद भी यही मिलता है कि जोड़ी राम-सीता की तरह बनी रहे। लेकिन फिर भी लोग जब बेटी का नाम रखते हैं तो सीता नहीं रखना चाहते हैं।

आखिर ऐसा क्यों माना जाता है और इसके पीछे का तर्क क्या है? इस बात का सही जवाब जानने के लिए हमने ज्योतिष एक्सपर्ट डॉ राधाकांत वत्स जी से बात की। आइए उनसे जानें इसके पीछे के कारणों के बारे में और यह भी जानें कि आखिर क्यों सीता नाम रखना बेटियों के लिए अच्छा नहीं माना जाता है।

माता सीता का एक नाम भूमिजा था

यदि हम पौराणिक कथाओं की बात करें तो माता सीता की उत्पत्ति भूमि से हुई थी। उनके जन्म की कथा के अनुसार जब एक बार मिथिला राज्य में अकाल पड़ गया उस समय राजा जनक ने यज्ञ का आयोजन किया जिससे वर्षा हो और कष्ट दूर हों। उसके बाद राजा जनक अपने हाथों से हल लेकर खेत में गए और जोतने लगे।

उस समय हल वहीं जमीन पर अटक गया और उसमें एक कलश मिला जिसमें माता सीता थीं। उस समय जनक जी ने माता सीता को पुत्री रूप में स्वीकारा और भूमि से उत्पन्न होने की वजह से माता सीता को भूमिजा नाम दिया गया।

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बेटियों सीता नाम क्यों नहीं रखा जाता

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भूमि का अर्थ है भार सहने वाली, इसी वजह से माता सीता ने अपने जीवन में कई दुखों का भार उठाया। माता सीता श्री राम से विवाह हुआ लेकिन वो कभी भी महल का सुख न भोग सकीं और वनवास चली गईं।

अपने पत्नी धर्म का पालान करने के लिए वो प्रभु श्री राम के साथ वन को चली गईं। वनवास के आखिरी साल में रावण द्वारा उनका अपहरण हुआ और युद्ध के पश्चात जब माता सीता पुनः श्री राम से मिलीं तो उन्हें अग्नि परीक्षा का सामना करना पड़ा।

हालांकि ग्रंथों में वर्णित है कि यह अग्नि परीक्षा नहीं थी बल्कि माता सीता के असली रूप को अग्नि देव से पुनः मांगने के लिए श्री राम ने लीला रची थी, लेकिन फिर भी बेटी का नाम सीता रखते समय मन में यही विचार आता है कि कहीं उसका जीवन भी माता सीता की तरह कठिनाइयों भरा न हो जाए।

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माता सीता को देनी पड़ी कठिन परीक्षा

माता सीता की इतनी कठिन अग्नि परीक्षा को आज भी याद किया जाता है और उनके अपमान या उनके प्रति श्री राम के कठोर व्यवहार की वजह से लोग यही सोचते हैं कि इस नाम को कोई भी लड़की कहीं आने वाले समय में सीता जी जैसी अग्नि परीक्षा से न गुजरे, इसलिए सीता नाम न रखने की सलाह दी जाती है। यही नहीं माता सीता को गर्भावस्था में दोबारा भी वन-वन भटकना पड़ा और उनका जीवन दुखमय रहा।

श्री राम से हुआ माता सीता वियोग

जब भी कोई पिता बेटी का विवाह करता है तब वो यही कामना करता है कि उसकी बेटी अपने पति के साथ सदैव खुश रहे और उसे कभी वियोग न देखना पड़े। इसी कामना के साथ वो अपनी बेटी का हाथ वर को सौंपता है। लेकिन कोई भी पिता अपनी बेटी का नाम सीता इसलिए नहीं रखना चाहता है कि कहीं आगे चलकर उसकी बेटी को भी सीता जी की ही तरह वियोग न देखना पड़े।

ये नाम भी न रखने की दी जाती है सलाह

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माता सीता का जीवन अपार कष्टों, संघर्षों, परीक्षाओं और पति से वियोग में बीता। रामायण में वर्णित माता सीता के इसी जीवन के वृत्तांत को बताया गया है जिसके बाद धीरे-धीरे यह अवधारणा जन्म लेने लगी कि बेटी का नाम सीता नाम नहीं रखना चाहिए, क्योंकि आपका नाम ही आपका भविष्य और व्यक्तित्व तय कर सकता है।

इसके साथ ही बेटी का नाम भूमि, भूमिजा आदि भी न रखने की बात सामने आती है। हालांकि इसके विपरीत एक पहलू यह भी सामने आता है कि ग्रंथों में पृथ्वी का वर्णन कुछ इस तरह से किया गया है कि 'पृथ्वी सशक्ता, पृथ्वी भारिणी, पृथ्वी च संघर्ष तारिणी' है जिसका मतलब यह हुआ कि पृथ्वी भार सहने वाली नहीं बल्कि भार उठाने वाली है और पृथ्वी हर संघर्ष को तारने वाली है।

वहीं हिंदी अनुवादित धर्म ग्रंथों में पृथ्वी का ऐसा उल्लेख न लिखित होने के कारण या गलत उल्लेख होने के कारण सीता नाम एवं इस नाम के अर्थ से लोग अपरिचित हैं। यही वजह है कि लोग अपनी बेटी का नाम सीता रखने से भयभीत रहते हैं और समझते हैं कि यह नाम उनकी बेटी के जीवन में संघर्ष का कारण बन सकता है।

यदि हम सीता के सही अर्थ और उनके जीवन के बारे में सकारात्मक पहलू पर ध्यान दें तो बेटी का यह नाम रखना गलत नहीं है। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से। अपने विचार हमें कमेंट बॉक्स में जरूर भेजें।

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