मंदिर में पुजारी भक्तों को प्रसाद के साथ क्यों देते हैं पवित्र जल

मंदिर में प्रसाद के साथ आचमनी से जल भी दिया जाता है। इस जल को बहुत ही पवित्र माना जाता है और इसे तीर्थम कहा जाता है। आइए जानें इसके महत्व के बारे में। 

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तीर्थम एक पवित्र जल होता है है जिसे मंदिरों में और पूजा के बाद चढ़ाया जाता है। इस पवित्र जल को हिंदू पौराणिक कथाओं में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस पानी को जादुई माना जाता है और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसमें बहुत ज्यादा औषधीय गुण मौजूद होते हैं।

आमतौर पर इस जल का उपयोग देवताओं को स्नान कराने के लिए किया जाता है। बाद में वही प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है जो सभी प्रकार के पापों का नाश करने के लिए एक उपाय है और इससे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की रक्षा की जाती है।

आमतौर पर मंदिर में पुजारी भक्तों को प्रसाद के साथ आचमनी से जल भी देते हैं। इस जल को तीर्थम कहा जाता है। आइए ज्योतिषाचार्य डॉ आरती दहिया सेजानें क्या है तीर्थम और प्रसाद के साथ इसे वितरित करने के कारण क्या है?

तीर्थम क्या होता है

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तीर्थम का शाब्दिक अर्थ जल है। हिंदू शास्त्रों में इसे मंदिर या देवता से जुड़े भौतिक पवित्र जल निकाय के रूप में जाना जाता है। हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार जल किसी भी व्यक्ति या वस्तु की शुद्धिकरण का प्रमुख तंत्र है। जबकि बाहरी शुद्धि पवित्र नदियों में डुबकी लगाने से होती है।

आंतरिक शुद्धि सत्यता के माध्यम से होती है। अधिकांश हिंदू मंदिर किसी न किसी पवित्र नदी या सरोवर से जुड़े होते हैं जिन्हें तीर्थम कहा जाता है। मंदिरों में भक्तों को पुजारी आचमनी से तीर्थम देते हैं और इस जल की भक्त अपने मस्तक पर लगाकर ग्रहण करते हैं जो बहुत ही शुभ माना जाता है।

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तीर्थम का महत्व

प्रसादम और कुछ नहीं बल्कि आशीर्वाद का प्रतीक है। यह कुछ भी हो सकता है - एक फूल से लेकर खाने की कोई भी वास्तु हो सकता है। ज्यादातर मंदिरों में में, खाने की चीजों को अधिक लोकप्रिय रूप से प्रसादम के रूप में संबोधित किया जाता है। वहीं भगवान् को स्नान कराने के बाद प्राप्त जल तीर्थम बन जाता है जिसके स्पर्श मात्र से समस्याओं से निवारण मिलता है।

कैसे बनता है तीर्थम

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जल जीवन का एक महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जल के बिना जीवन ही असंभव है, इसलिए मंदिर में प्रसाद के साथ पवित्र जल भी दिया जाता है। भक्तों को ये जल ग्रहण करके मानसिक शांति मिलती है और समस्त समस्याओं से मुक्ति मिलती है।

तीर्थम तैयार करने के लिए एक तांबे के पात्र में जल भरकर उसमें तुलसी की पत्तियां (पूजा के स्थान पर तुलसी का पानी रखने के फायदे)डाली जाती हैं और उसे ईश्वर के सामने रख दिया जाता है। यह जल ईश्वर द्वारा ग्रहण करने के बाद तीर्थम का रूप ले लेता है और पवित्र हो जाता है।

इसी जल को भक्तों के ऊपर छिड़का जाता है, जिससे रोगों से मुक्ति मिले और उन्हें प्रसाद के रूप में भी दिया जाता है। यह स्वाभाविक रूप से पवित्र होता है इसलिए इसे भक्तों को प्रसाद के रूप में देना आवशयक माना जाता है।

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तीर्थम कैसे बनता है पवित्र

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तीर्थम कई तरह से बनता है जिसमें एक अभिषेक तीर्थम है। इसे पानी के साथ दूध और शहद का मिश्रण से बनाया जाता है। यह जल भगवान के अभिषेक के बाद मिलता है और ये बहुत पवित्र हो जाता है तरह चरणामृत बन जाता है।

यह जल भगवान श्री विष्णु के पैर, हाथ, मुख और पूरे शरीर को छूने के बाद शुद्ध, पवित्र हो जाता है। यह पवित्र जल, भगवान श्री विष्णु को चढ़ाने के बाद एक बर्तन में एकत्र किया जाता है यह बर्तन आमतौर पर चांदी या तांबे की धातु का होता है। जब हम इसमें तुलसी का उपयोग करते हैं तब इसी जल में तुलसी की पत्तियां मिलाकर रखी जाती हैं।

तीर्थम का विशेष महत्व है और ये भक्तों के लिए ईश्वर के प्रसाद के समान ही होता है और उन्हें रोग-दोष से मुक्ति दिलाता है।

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Images: Freepik.com

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