"अरे क्या बताऊं...हमारी बहू तो किसी काम की नहीं है। हम तो एकदम ही परेशान आ चुके हैं।"
"मत पूछ यार, घर जाने में थोड़ी-सी भी देरी हुई न तो मेरी सास बड़े ताने दे देगी। क्या बताऊं, मैं तो थक चुकी हूं।"
ये दो अलग-अलग सेंटेंस कभी न कभी किसी न किसी से आपने भी सुने होंगे। ये सेंटेंस पढ़कर पता चलता है कि यहां बात सास और बहू की हो रही है। इन दोनों का रिश्ता ही कुछ ऐसा है, जो हमेशा से सबकी नजरों पर चढ़ा रहता है। इस रिश्ते पर एक बार फिर से इतनी चर्चा अगर शुरू हुई है, तो उसका श्रेय टीवी और फिल्मी जगत ही बेहतरीन अदाकारा अंकिता लोखंडे और उनकी सास रंजना जैन को जाता है।
बिग बॉस-17 तो आप सभी ने देखा होगा। अगर नहीं भी देखा, तो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे मीम्स से तो रूबरू हुए ही होंगे। अंकिता लोखंडे की सास रंजना जैन ने नेशनल टीवी पर कई ऐसी बातें बोल दी हैं, जिसे सुनकर सभी के कान खड़े हो चुके हैं। उनकी सास को टॉक्सिक मदर-इन-लॉ का खिताब मिल चुका है।
जिस किसी ने भी उनकी बातों को सुना, सबने कहा कि रंजना जैन जैसी सास किसी को नहीं मिलनी चाहिए। इतना ही नहीं, लोगों ने अंकिता की रियल सास को उनकी रील लाइफ की सास (अंकिता लोखंडे और सुशांत सिंह राजपूत के शो 'पवित्र रिश्ता'में ऊषा नाडकरनी ने अंकिता की वैम्प सास का किरदार निभाया था) से कम्पेयर कर दिया।
अंकिता के फैंस ने जहां एक तरफ उनकी सास को सोशल मीडिया पर खरी खोटी सुनाई, वहीं कुछ लोगों ने यहां तक बता दिया कि यह रिश्ता होता ही ऐसा है, जिसमें लड़ाई-झगड़े रहते हैं। आइए आज हम विस्तार से इस बात पर चर्चा करें कि अक्सर बदलते-बिगड़ते सास और बहू के इस डायन्मिक का क्या राज है।
सास-बहू के डायन्मिक्स पर दर्ज हुए रिसर्च पेपर
बोस्टन कॉलेज में अर्थशास्त्र विभाग में सहायक प्रोफेसर एस. अनुकृति ने साल 2020 में एक पेपर प्रकाशित किया था। इस पेपर में उन्होंने बताया है कि कैसे सास का का इंफ्लूएंस बहू के जीवन पर असर डालता है। बहू से जुड़ी अधिकांश चीज़ों पर उनका प्रभाव पड़ता है। बहू किससे बातचीत करती है और किससे बातचीत करनी चाहिए, ऐसी बातें तक अपने पेपर में अनुकृति ने दर्ज की थी।
इस पेपर के मुताबिक, महिलाओं को उनकी सास और पति द्वारा उन पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण स्वायत्तता की कमी का अनुभव होता है, जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य, आत्मविश्वास, आत्म-मूल्य आदि पर हानिकारक प्रभाव पड़ने की संभावना है। उन्होंने पाया कि अपनी सास के साथ रहने वाली महिलाओं को अपने घर के बाहर घूमने-फिरने और सामाजिक संबंध बनाने की सीमित स्वतंत्रता थी।
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सिनेमा और टीवी ने सास-बहू डायन्मिक्स को इस तरह से किया परिभाषित
सास-बहू के डायन्मिक्स की जड़ें बहुत गहरी हैं और हमने 60 और 70 के दशक में पारिवारिक नाटकों और फिल्मों के गोल्डन एरा में इन बदलते जज्बातों को देखा है। तब सास को एक बुद्धिमान लेकिन कठोर व्यक्तित्व के रूप में और बहू को सदाचार और त्याग की प्रतिमूर्ति के रूप में चित्रित किया जाता था। शुरुआती दौर में, सास और बहू के किरदारों को पारंपरिक और स्टीरियोटिपिकल रोल्स के साथ जोड़ दिया जाता था।
सास को अक्सर रीति-रिवाजों और परंपराओं को लागू करने वाले के रूप में दिखाया जाता था, जबकि बहू को सामाजिक अपेक्षाओं द्वारा तैयार किए गए ढांचे में फिट होने के लिए संघर्ष करना पड़ता था। रसोई भी इस तरह से एक युद्धक्षेत्र बन गई और घरेलू निर्णयों पर नियंत्रण के लिए संघर्ष कभी न खत्म होने वाला विषय था।
साल 2000 में ऐसे कई टीवी सीरियल्स की शुरुआत हुई जहां फिर एक बार हमने इंसेंसिटिव और छोटी सोच वाली सास के किरदारों को पर्दे पर देखा। 'न आना इस देश लाडो' और 'बालिका वधू' जैसे शो हमें ऐसी वैम्प सासों से मिलवाया।
हालांकि, जैसे-जैसे समाज विकसित हुआ, वैसे-वैसे नरेटिव्स भी बदले। सिनेमा और टेलीविजन धीरे-धीरे कठोर रूढ़िवादिता से दूर होने लगा। सास और बहू के किरदार पारंपरिक ढांचे से मुक्त होने लगे। सास एक अधिक भरोसेमंद कैरेक्टर में तब्दील हो गई, जो अपनी बदलती दुनिया के साथ तालमेल बिठाने की पुरजोर कोशिश करती है। साथ ही, बहू एक आधुनिक, स्वतंत्र महिला के रूप में विकसित हुई, जो मानदंडों पर सवाल उठाने वाली है।
मगर क्या वाकई हम इन बदले हुए किरदारों से रिलेट कर सकते हैं, क्योंकि अंकिता लोखंडे और रंजना जैन के इस रिश्ते ने बवाल और सवाल फिर से खड़े कर दिए हैं (सास-बहू की जोड़ी वाले सीरियल्स)।
सास और बहू के बीच का पावर डायनेमिक्स
घर में अधिकार के लिए संघर्ष सास-बहू की इस स्टोरी का एक प्रमुख नरेटिव रहा है। सास, जो कुलमाता होने की आदी है, को कभी-कभी नियंत्रण छोड़ना चुनौतीपूर्ण लगता है। स्वायत्तता की तलाश और अपने व्यक्तित्व पर जोर देने वाली बहू को अक्सर प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है। यही चीज़ दोनों के बीज भयंकर तनाव पैदा करता है, जो रिश्ते के भीतर प्यार और संघर्ष दोनों के रूप में प्रकट होता है।
रसोई जिसपर हर सास का कब्जा होता है, वो भी एक प्रतीकात्मक युद्ध का मैदान बन जाता है। पाक संबंधी टकराव, चाहे मसाले के स्तर को लेकर हो या सामग्री की पसंद को लेकर, स्वाद के टकराव से कहीं अधिक का प्रतिनिधित्व करता है। एक तरफ सास जो अपनी कलिनरी विरासत को संरक्षित करके रखना चाहती है और बहू पारिवारिक व्यंजनों में अपने स्वाद पेश करने की कोशिश करती रहती है।
प्यार और नफरत के ये डायन्मिक्स अक्सर खुले संचार की कमी से पैदा होतो हैं। सास और बहू दोनों ही फैसले या कलह के डर से अपनी सच्ची भावनाओं को व्यक्त करने में झिझक सकती हैं। गलतफहमियां और अनकही शिकायतें सतह के नीचे पनपती हैं, जो बढ़ते तनाव में योगदान करती हैं।
सास-बहू की गतिशीलता पीढ़ियों से चली आ रही सामाजिक अपेक्षाओं से भी प्रभावित होती है।
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आखिर क्या है इसका सॉल्यूशन?
प्रत्येक कहानी के हमेशा दो वर्जन होते हैं। एक छत के नीचे रहते हुए ट्रांसपेरेंट संबंध बनाए रखना महत्वपूर्ण है। इसी के साथ, बदलते समय के साथ, अहंकार को को प्रबंधित करना आवश्यक है। सिस्टम को चुनौती देना किसी के पक्ष में काम नहीं करेगा। एख सास के लिए जरूरी है कि वो अपनी बहू को अपने बेटे की पत्नी से परे एक व्यक्ति के रूप में भी समझें। उसे अपना रास्ता खोजने के लिए जगह देना महत्वपूर्ण है, साथ ही प्रशंसा और प्रोत्साहन देना भी महत्वपूर्ण है। ध्यान रखें कि अवास्तविक अपेक्षाएं अक्सर सास-बहू के रिश्ते में बाधा डालती हैं।
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