Why Are Temples Flag In Triangle Shape: देश-दुनिया में कई ऐसे मंदिर हैं, जहां की कहानियां और मान्यता मशहूर हैं। साथ ही मंदिर के बनावट और कला का भी खास स्थान है। अब ऐसे में जब भी समय मिलता है तो अधिकतर लोग इन मंदिरों के दर्शन के लिए जाना पसंद करते हैं। इतना ही बल्कि किसी खास मौके पर भी हम सभी अपने घर के आस-पास स्थित मंदिर चले जाते हैं। अगर आपने गौर किया होगा, तो ज्यादातर मंदिरों की टोपी पर एक झंडा लगा होता है और इसका आकार त्रिभुजाकार में होता है। अब ऐसे में सवाल आता है कि आखिर इसी आकार में क्यों बनाए जाते हैं मंदिरों में लगने वाले झंडे। इस सवाल का जवाब आचार्य उदित नारायण त्रिपाठी से जानते हैं कि ऐसा क्यों है।
मंदिरों के ऊपर त्रिभुजाकार झंडे लगाने की परंपरा भारतीय संस्कृति और वास्तुकला की एक महत्वपूर्ण विशेषता है, जो धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से गहरी भावना और अर्थ रखती है। यह सवाल बहुत दिलचस्प है कि मंदिरों के ऊपर झंडे हमेशा त्रिभुजाकार क्यों होते हैं, जबकि आमतौर पर हम झंडे आयताकार में बने होते हैं। इसके बारे में जब हमने एक्सपर्ट से पूछा तो उन्होंने बताया कि इस आकार के पीछे न केवल वास्तुशास्त्र, बल्कि हिंदू धर्म की आस्था और प्रतीकों में भी छिपा हुआ है।
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त्रिभुज आकार को शक्ति और दिव्यता का प्रतीक माना जाता है। यह तंत्र-मंत्र और योग विद्या में भी महत्वपूर्ण है, जहां त्रिभुज को एक आध्यात्मिक रूप में देखा जाता है। इसे ऊर्जा और आस्था के रूप में देखा जाता है, जो ईश्वर से जुड़ा होता है।
वास्तुशास्त्र के अनुसार, त्रिभुज का आकार सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है। यह मंदिर के शिखर पर स्थापित होने से मंदिर के अंदर की ऊर्जा को संतुलित और संरक्षित रखने में मदद करता है।
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त्रिभुज को शक्ति और विजय का प्रतीक माना जाता है। यह झंडा मंदिर के ऊपर उस स्थान को प्रदर्शित करता है जो दिव्य शक्तियों और देवताओं के लिए समर्पित होता है। यह प्रतीकात्मक रूप से ईश्वर की शक्ति और आशीर्वाद का संचार करता है।
मंदिरों के ऊपर यह झंडा अक्सर उन देवताओं या देवी-देवताओं के प्रति श्रद्धा और सम्मान व्यक्त करता है, जिनकी पूजा वहां की जाती है। त्रिभुजाकार झंडा विशेष रूप से यह संकेत करता है कि यह स्थान परमात्मा से जुड़ा हुआ है और उस स्थान पर पुण्य और शुभता का वास है।
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