शादी से पहले कॉन्ट्रैक्ट साइन करना क्या हो सकता है फायदेमंद?

शादी से पहले ही तलाक का एग्रीमेंट करवा लेना विदेशी कॉन्सेप्ट लगता है, लेकिन भारत में भी धीरे-धीरे यह आ रहा है। हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में फैसला भी सुनाया है। 

How does indian legal system deal with prenups
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दिल्ली कोर्ट में एक ऐसा मामला सामने आया है जिसमें प्रीनप्चुअल एग्रीमेंट्स की जरूरत को उजागर कर दिया गया है। पटियाला हाउस कोर्ट के फैमिली कोर्ट जज हरीश कुमार ने सात साल से चल रहे एक मामले में तलाक की अर्जी मंजूर की।

इस मामले में तलाक बिना किसी पार्टी को गलत साबित किए दिया गया है। यानी पति और पत्नी दोनों को ही सही ठहराया गया है। हालांकि, इस फैसले को सुनाते हुए जज ने यह भी कहा कि अगर शादी से पहले ही एग्रीमेंट्स बनाए जाएंगे, तो तलाक की स्थिति में बहुत ज्यादा दिक्कत नहीं महसूस होगी। कोर्ट के मुताबिक, इस तरह के एग्रीमेंट्स काउंसलिंग के वक्त ही लागू किए जा सकते हैं और कोर्ट में मामला इतना लंबा ना खिंचे इसकी सुविधा हो सकती है।

जिस मामले में यह फैसला सुनाया गया है उसमें बच्चे की जिम्मेदारी माता और पिता दोनों को ही दी गई है और दोनों ही बतौर लीगल गार्डियन बच्चे की देखभाल करेंगे। मां को बेटी के सभी दस्तावेजों में पिता का नाम शामिल करने के बारे में कहा गया है और पिता को हर रोज मिलने और वीकएंड पर पात में रुकने की इजाजत दी गई है। दोनों को ही बच्ची के खर्च का 50% हिस्सा वहन करना होगा। इस जोड़े की शादी 2011 में हुई थी और दोनों ने एक दूसरे पर कई आरोप लगाए थे। दोनों ने ही आपसी सहमति से तलाक लेना मंजूर नहीं किया था जिसके कारण कोर्ट में इतना लंबा घमासान हुआ।

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क्या होता है प्रीनप एग्रीमेंट?

प्रीनप्चुअल एग्रीमेंट एक लीगल कॉन्ट्रैक्ट होता है जिसमें शादी से पहले जोड़ा कोर्ट बाइंडिंग के तहत यह फैसला कर सकता है कि अगर दोनों में तलाक या अलगाव होता है, तो पैसा, प्रॉपर्टी, बच्चों की कस्टडी और अन्य चीजें किस तरह से विभाजित होंगी। क्या शादी के बाद गुजारा भत्ता दिया जाएगा या फिर शादी के बाद दोनों कहां रहेंगे और ऐसी ही सारी बातें कही जाती हैं। इस एग्रीमेंट में हर तरह का फाइनेंशियल असेट बताना होता है और सभी को यह डिटेल देनी होती है कि आखिर क्या किया जाएगा।

हालांकि, भारतीय पर्सनल लॉ जिस तरह के हैं उनके हिसाब से प्रीनप एग्रीमेंट लीगल नहीं है।

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इलाहाबाद हाई कोर्ट के वकील पंकज शुक्ला का कहना है कि भारत में अगर कोर्ट चाहे, तो पर्सनल लॉ के आधार पर प्रीनप एग्रीमेंट को खारिज कर सकता है।

बिजनेस फैमिलीज में इस तरह के एग्रीमेंट किए जाते हैं और इनकी लीगल वैधता भी रहती है, लेकिन जरूरत पड़ने पर इन्हें खारिज भी किया जा सकता है।

अगर किसी को प्रीनप एग्रीमेंट बनवाना है, तो उसे पहले से ही वकील से बात करनी होगी। प्रीनप एग्रीमेंट वैसे तो बहुत ही आसान लगते हैं, लेकिन सही मायने में यह भारत में लीगल हैं ही नहीं। बस एक कॉन्ट्रैक्ट मात्र है जिसे आपसी सहमति से तलाक लेने के मामले में यह कॉन्ट्रैक्ट काम आ सकता है।

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भारतीय जोड़ों के लिए कितना वाजिब है प्रीनप एग्रीमेंट?

अब अगर हम बात करें भारतीय परिपेक्ष की तो यहां पर शादी को धार्मिक महत्व से देखा जाता है। शादी के पहले परिवारों का मिलन, दो लोगों का आपस में प्यार और सत्कार देखा जाता है। शादी के वक्त भगवान को याद किया जाता है। ऐसे में तलाक जैसी स्थिति के लिए पहले से ही तैयार रहना हमारे समाज की रूढ़िवादी सोच को चैलेंज करेगा। अगर पति-पत्नी चाहें तो भी परिवार वाले इसके लिए मानें या नहीं ऐसा मुमकिन नहीं है। शादी के वक्त किसी भी तरह की स्थिति के लिए तैयार होना बात अलग है, लेकिन तलाक के लिए पहले से ही कॉन्ट्रैक्ट बनवाना अलग।

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अगर हम लीगल हिसाब से देखें, तो हां आपसी सहमती से अगर तलाक होता है, तो यह फायदेमंद हो सकता है, लेकिन क्या कोई खुश जोड़ा ऐसा चाहेगा कि उसे पहले से ही तलाक की तैयारी करनी चाहिए? (भारत में तलाक से जुड़े नियम)

प्रीनप एग्रीमेंट फाइनेंशियल मामलों में बहुत ही लाभकारी साबित हो सकता है, लेकिन यहां भी सोच बहुत मायने रखती है। प्रीनप एग्रीमेंट लॉजिकल हिसाब से तो फायदेमंद लगता है, लेकिन अगर इसे धार्मिक या भावनात्मक तरीके से देखें, तो भारत जैसे देश में इसे लीगल होने के लिए बहुत वक्त लग सकता है। आपकी इस मामले में क्या राय है?

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