फाल्गुन की पूर्णिमा को होली का त्यौहार पूरे देश में धूम-धाम से मनाया जाता है। त्यौहार की खुशियों के बीच हम ना जाने कितने तरीकों से होली मनाते हैं। लगभग हर प्रांत में अलग रिवाजों को फॉलो किया जाता है और होली से ही वसंत का मौसम कहा जाता है। एक दूसरे को रंगने का नया-नया तरीका भी खोज लिया जाता है और होली को बहुत अच्छे से मनाया जाता है, लेकिन क्या आपको पता है कि इस त्यौहार को मनाने का महत्व क्या है?
नहीं-नहीं मैं पौराणिक कथाओं से जुड़े महत्व की बात नहीं कर रही बल्कि मैं तो विज्ञान की बात कर रही हूं। उम्मीद है आपके पास भी ऐसे व्हाट्सएप फॉरवर्ड मैसेज आए होंगे जो होली के वैज्ञानिक महत्व का जिक्र करते हैं। आज हम आमतौर पर बताए जाने वाले उन्हीं कारणों की बात करने वाले हैं। इनको लेकर कोई ठोस रिसर्च तो नहीं की गई है, लेकिन फिर भी साइंस से जोड़कर कारण बताए जाते हैं।
होली पर रंग लगाने का साइंटिफिक कारण
होली की बात करें तो ये त्यौहार उस समय मनाया जाता है जब सर्दियां खत्म होकर गर्मियां शुरू होने वाली होती हैं। ये मौसम के बदलाव को बताता है और पुराने जमाने में लोग सर्दियों के समय रोजाना नहीं नहाते थे। हालांकि, ये तो अभी भी होता है कि लोग सर्दियों के मौसम में रोजाना नहीं नहाते है, लेकिन अभी प्राचीन भारत की बात ही कर लेते हैं। रोजाना ना नहाना और गंदे पानी का इस्तेमाल करना कई तरह के स्किन इन्फेक्शन्स का कारण बनता था और ऐसे में गर्मियों की शुरुआत से पहले शरीर की अच्छे से सफाई की जरूरत होती थी।
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अब प्राचीन भारत में प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया जाता था जैसे हल्दी, चुकंदर के पाउडर आदि से होली खेली जाती थी और इससे ना सिर्फ स्किन की बीमारियों को दूर किया जा सकता था बल्कि ये लोगों को नहाने के लिए मजबूर भी करता था।
ऐसे में होली के इस रंग लगाने के रिवाज को स्किन केयर रूटीन की तरह देखा जा सकता है।
होलिका दहन का साइंटिफिक कारण
पौराणिक कथाओं की मानें तो ये होलिका और प्रहलाद की कहानी से जुड़ा है और होली का त्यौहार भी उसी कारण से मनाया जाता है। पर अगर साइंटिफिक कारण ढूंढने की कोशिश करें तो ये माना जा सकता है कि होली के त्यौहार के समय मौसम का बदलाव होता है और वसंत में नया जीवन भी उत्पन्न होता है। यहां बात हो रही है नए पेड़-पौधों की जो खेतों में उगते हैं। अब ऐसे में कचरे और सूखी पत्तियों आदि को जलाने की जरूरत होती है ताकि नए सिरे से काम शुरू किया जा सके। इसे होली से जोड़कर देखा गया है।
होलिका दहन में घर का कचरा, खेतों की भूसी और सूखे पेड़-पौधों को जलाया जाता है जिससे घर की सफाई भी हो सके।
होलिका के इर्द-गिर्द परिक्रमा का साइंटिफिक कारण
अब बात करते हैं होलिका के इर्द-गिर्द की जाने वाली परिक्रमा का साइंटिफिक कारण क्या है। दरअसल, शरीर में गर्मी पैदा करने और बैक्टीरिया को मारने के लिए आग बहुत अच्छा ऑप्शन होती है। ऐसे में सर्दियों के समय की बीमारियों को दूर भगाने के लिए होलिका की आग का सहारा लिया जाता है। परिक्रमा करने से शरीर को आग की सेक लगती है और इससे फायदा ही होता है।
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होली के गीत गाने का साइंटिफिक कारण
जब भी मौसम में बदलाव होता है तो आस-पास के वातावरण में भी बदलाव होता है और ऐसे समय में आलस बहुत बढ़ जाता है। ऐसे में होली के गीत, ढोल, मंजीरा आदि ट्रेडिशनल इंस्ट्रूमेंट बजाने से आलस भगाने में मदद मिलती है। कई जगहों पर फाल्गुन के गीत हफ्तों तक गाए जाते हैं और ऐसे में फिजिकल मूवमेंट भी होता है। त्यौहार मनाने का ये तरीका असल में शरीर को ज्यादा एक्टिव करने में मदद करता है।
पुराने जमाने में जिन चीजों से रंगों को बनाया जाता था जैसे बेल, हल्दी, नीम, चुकंदर, पलाश आदि ये सब शरीर को कूलिंग और हीलिंग इफेक्ट देते थे और इसलिए भी होली के त्यौहार को एक क्लींजिंग रिचुअल के तौर पर देखा जा सकता है। हालांकि, मैं फिर यही कहूंगी कि इसे लेकर कोई भी साइंटिफिक रिसर्च नहीं है और पर ये फैक्ट्स सार्वजनिक हैं। आपकी इनके बारे में क्या राय है? क्या वाकई होली के त्यौहार का साइंटिफिक सेंस देखा जा सकता है? अपने जवाब हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं।
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