इंदौर में तीन साल की एक मासूम बच्ची को संथारा कराने का मामला सामने आने के बाद जैन समुदाय और पूरे देश में इसकी चर्चा हो रही है। यह सुनकर मन में कई सवाल उठना स्वाभाविक है। आखिर इतनी छोटी उम्र में किसी बच्चे ने मृत्यु को गले लगाने का ऐसा कठोर निर्णय क्यों लिया? क्या है जैन धर्म की यह संथारा परंपरा, जिसके बारे में सुनकर मन में कई आशंकाएं हो रही हैं? अगर आपके मन में भी इस तरह के कई प्रश्न उठ रहे हैं, तो चलिए हम आपको इस लेख में विस्तार से बताते हैं। साथ, इस आर्टिकल में हम जैन धर्म की इस महत्वपूर्ण परंपरा से जुड़ी कुछ अहम बातों के बारे में भी जानेंगे, जो इस आश्चर्यजनक घटना को समझने में आपकी मदद कर सकती हैं।
3 साल की बच्ची ने क्यों लिया संथारा?
इंदौर की 3 साल की बच्ची वियाना को जनवरी 2025 में ब्रेन ट्यूमर का पता चला था, सर्जरी के बाद वह ठीक हो गई थी, लेकिन मार्च में उसकी तबीयत फिर बिगड़ गई। पहले इंदौर और फिर मुंबई में उसका उपचार किया गया, पर कुछ खास सुधार नहीं हुआ। तब बच्ची के माता-पिता, पीयूष और वर्षा जैन लगभग डेढ़ महीने पहले बच्ची को आध्यात्मिक संकल्प धारी राजेश मुनि महाराज के दर्शन कराने ले गए थे। वहां मुनिश्री ने बच्ची की नाजुक हालत को देखते हुए संथारा का सुझाव दिया। चूंकि परिवार मुनिश्री का अनुयायी है और मुनिश्री पहले 107 संथारों का संचालन कर चुके हैं, इसलिए पूरे परिवार की सहमति से संथारा की प्रक्रिया शुरू की गई। आधे घंटे तक चली इस धार्मिक प्रक्रिया के 10 मिनट के भीतर ही वियाना ने अपने प्राण त्याग दिए। जैन समाज ने इस फैसले के लिए माता-पिता का आदर किया है और यह दावा किया गया है कि इतनी कम उम्र में संथारा कराने का यह पहला उदाहरण है, जिसे 'गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स' में भी दर्ज किया गया है।
संथारा क्या होता है?
संथारा, जैन धर्म की एक अद्भूत परंपरा है, जिसमें आध्यात्मिक तरीके और परिवार की अनुमति से शरीर का त्याग किया जाता है। यह कोई सामान्य उपवास या आत्महत्या नहीं है, बल्कि जैन धर्म में सदियों से चली आ रही एक आध्यात्मिक प्रथा है, जिसका उद्देश्य जीवन के अंतिम समय में शांति और वैराग्य के साथ शरीर त्यागना है। इंदौर की 3 साल की बच्ची वियाना ने इस परंपरा को अपना कर अपने प्राण त्याग दिए।
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इस परंपरा से जुड़ी कुछ अहम बातें
- संथारा लेने का निर्णय आमतौर पर तब लिया जाता है जब व्यक्ति को यह महसूस होता है कि उसका जीवन अब आध्यात्मिक चिंतन और मोक्ष की ओर बढ़ने के लिए है। इसके लिए मानसिक और आध्यात्मिक रूप से लंबी तैयारी की जाती है।
- संथारा शुरू करने से पहले जैन साधु या गुरु से अनुमति लेना आवश्यक होता है। समुदाय के सदस्य भी इस प्रक्रिया में व्यक्ति का समर्थन करते हैं।
- इसमें धीरे-धीरे भोजन और तरल पदार्थों का त्याग किया जाता है। यह प्रक्रिया कई दिनों या हफ्तों तक चल सकती है।
- संथारा के दौरान व्यक्ति आत्म-अनुशासन, ध्यान और धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन में अधिक समय बिताता है।
- यह परंपरा सभी के लिए नहीं है। इसके लिए व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक स्थिति का स्थिर होना और दृढ़ आध्यात्मिक संकल्प होना आवश्यक है। बच्चों और शारीरिक या मानसिक रूप से अक्षम लोगों के लिए यह मान्य नहीं है।
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