कुछ महीनों पहले भारत ने सफल तरीके से चंद्रयान-3 मिशन पूरा किया था। इसके बाद आदित्य-1 मिशन ने ISRO को सूर्य के करीब ला दिया। इसके बाद भारत की नई तैयारी है समुद्र में गोते लगाने की। यह होगा मिशन समुद्रयान से। सितंबर 2023 से ही इसके बारे में आए दिन खबरें आती रहती हैं।
समुद्रयान मिशन इसलिए किया जा रहा है ताकि धरती के नीचे के मिनरल्स, मेटल्स और बायोडायवर्सिटी सभी कुछ टेस्ट किया जा सके।
कुछ समय पहले यूनियन मिनिस्टर ऑफ अर्थ साइंस किरन रिजिजू ने इससे जुड़ी डिटेल्स शेयर की थी।
यह मिशन इसलिए खास होने वाला है क्योंकि पहली बार एक सबमर्सिबल में 3 लोगों को समुद्र के 6 किलोमीटर नीचे भेजा जाएगा। आपको बता दें कि इस मिशन में जहां तक सबमर्सिबल जाएगी वहां तक सूरज की रोशनी भी नहीं पहुंचती है।
आमतौर पर सूरज की रोशनी समुद्र से 200 मीटर नीचे तक ही पहुंच पाती है और इसके आगे बहुत ही कम उजाला रहता है। हालांकि, कुछ मामलों में जहां पानी के नीचे का वातावरण ठीक होता है और सही कंडीशन होती है वहां 1000 मीटर (1 किलोमीटर) तक बहुत कम रोशनी पहुंच सकती है, लेकिन जहां पर हमारी सबमर्सिबल जाएगी वहां घुप्प अंधेरा होता है और वहां रहने वाले जीव-जंतु भी काफी खतरनाक माने जाते हैं।
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मत्स्य 6000 उस सबमर्सिबल का नाम है जो नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशिन टेक्नोलॉजी (NIOT), चेन्नई में बन रही है। इस सबमर्सिबल में 3 इंसानों को समुद्र के नीचे 6 किलोमीटर तक ले जाने की सुविधा होगी।
Next is "Samudrayaan"
— Kiren Rijiju (@KirenRijiju) September 11, 2023
This is 'MATSYA 6000' submersible under construction at National Institute of Ocean Technology at Chennai. India’s first manned Deep Ocean Mission ‘Samudrayaan’ plans to send 3 humans in 6-km ocean depth in a submersible, to study the deep sea resources and… pic.twitter.com/aHuR56esi7
मत्स्य 6000 में 12 से 16 घंटे समुद्र के नीचे रहने की सुविधा होगी और इसमें 96 घंटों की ऑक्सीजन सप्लाई होगी।
इस प्रोजेक्ट में ₹4,077 करोड़ का आवंटन किया गया था। इस प्रोजेक्ट को अप्रूवल 2021 में मिला था और इसका ट्रायल 2024 की शुरुआत में होगा। ट्रायल के आधार पर ही मिशन की तारीख निर्धारित की जा सकेगी।
इस सबमर्सिबल का डायामीटर 2.1 अनुपात में है और यह 80mm की मोटी टाइटेनियम शीट से बना है। यह समुद्री सतह से 600 गुना ज्यादा प्रेशर भी बर्दाश्त कर सकती है। इसका शेप गोलाकार है और साइंटिस्ट्स इस बारे में बहुत ध्यान से विचार कर रहे हैं कि कहीं टाइटन सबमर्सिबल डिजास्टर के बाद इसमें किसी तरह की कोई कमी ना रह जाए।
यही कारण है कि शुरुआती स्टेज में कार्बन फाइबर (जिस मटेरियल से टाइटन बनी थी) को इस्तेमाल करने की बात की गई थी, लेकिन बाद में इसे रूल आउट कर दिया गया।
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इस सबमर्सिबल से समुद्र के हाइड्रोथर्मल वेंट्स की जांच हो सकेगी। समुद्र की गहराइयों में मीथेन गैस सहित कई ऐसे मिनरल्स हैं जिनका इस्तेमाल किया जा सकता है। इतना ही नहीं यह समुद्र की जांच कर टूरिज्म को भी बढ़ावा दे सकती है। सफल समुद्रयान मिशन से समुद्र की गहराइयों में पहुंचना और उसे स्टडी करना बहुत आसान हो जाएगा। इस मिशन में समुद्र के नीचे मौजूद धातुओं जैसे तांबा, पीतल आदि को भी खोजा जाएगा जो आगे इस्तेमाल हो सकेंगे।
समुद्रयान मिशन को लेकर वैज्ञानिक बहुत उत्साहित हैं और धीरे-धीरे इसकी सफल टेस्टिंग का इंतजार कर रहे हैं।
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Image Credit: NIOT
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