घर के बड़े बच्चे को पैरेंट्स हमेशा जिम्मेदार और काबिल मानते हैं। जब घर का बड़ा बच्चा कमाने लगता है, तो घर की सभी जिम्मेदारियां अक्सर उसके कंधों पर आ जाती हैं। वहीं, जब बात घर की बड़ी बेटी की आती है, तो लोग उससे हमेशा बाहर से मजबूत, जिम्मेदार और समझदार होने की उम्मीद रखते हैं। बचपन से ही घर की बड़ी बेटियों को सिखाया जाता है कि उन्हें भरोसेमंद बनना है और दूसरों की मदद करनी है।
ऐसे में कई बार घर की बड़ी बेटी दूसरों को खुश करते-करते खुद खुश रहना भूल जाती है। कई बार थेरेपी के दौरान साइकोलॉजिस्ट ने देखा है कि बहुत सी महिलाओं के इमोशन्स के नीचे एक 'एल्डेस्ट डॉटर सिंड्रोम' (Eldest Daughter Syndrome) छिपा होता है। दरअसल, जब बड़ी बेटी को बचपन से ही समझदारी, घर और रिश्तों की जिम्मेदारी और दूसरों को ख़ुश करने की सीख दी जाती है और वह खुद का अस्तित्व भूल जाती है, तो आजकल डॉक्टर्स इसे ही 'एल्डेस्ट डॉटर सिंड्रोम' कहने लगे हैं।
आपको बता दें कि यह कोई मेडिकल बीमारी नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा अनुभव है जो भावनात्मक थकावट, खुद पर दबाव और अकेलेपन की तरफ ले जा सकता है। इस बारे में हमने Mpower Aditya Birla Education Trust की साइकोलॉजिस्ट कृति शाह से बात की और जानने की कोशिश की कि 'एल्डेस्ट डॉटर सिंड्रोम' का अनुभव कैसा होता है और यह मानसिक सेहत को कैसे प्रभावित करता है।
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एल्डेस्ट डॉटर सिंड्रोम क्या होता है?
यह सिंड्रोम किसी हादसे या बड़े झटके की वजह से नहीं होता। यह एक भावनात्मक पैटर्न है, जो चुपचाप एक बड़ी बेटी की जिंदगी में बहुत कम उम्र से शुरू हो जाता है। जब वह बड़ी हो रही होती है, तो उसके ऊपर धीरे-धीरे जिम्मेदारियों का बोझ डाल दिया जाता है, जो उसकी उम्र के हिसाब से नहीं होना चाहिए। घर की बड़ी बेटी को घर के काम, छोटे भाई-बहनों की देखभाल और सबकी बातें सुनने को कहा जाता है। उससे हमेशा कहा जाता है कि तुम तो समझदार हो, तुम्हें सब आता है और तुम जिम्मेदार हो। ये बातें पहले उसे तारीफ जैसी लगती हैं, लेकिन समय के साथ उसके लिए यह प्रेशर बन जाता है। ये चीजें कभी उसे थकाती हैं, कभी अपने सपनों को पूरा करने या अपने मन का करने से रोकती भी हैं।
ऐसा क्यों होता है?
कृति शाह कहती हैं कि इस सिंड्रोम की जड़ें कई बार परिवार की आदतों, समाज की सोच और चुपचाप चल रही उम्मीदों में छिपी होती हैं। कई बार समाज और संस्कृतियों के चलते बेटियों को बिना कहे ही घर संभालने वाली और दूसरों का ख्याल रखने वाली समझ लिया जाता है।
कुछ आम वजहें होती हैं-
- कई बार घर की बड़ी बेटी खुद बच्ची होती है, लेकिन परिवार की जरूरतों के हिसाब से उसे कम उम्र में ही जिम्मेदारी उठानी पड़ती है। जैसे- भाई-बहनों की देखभाल करना और पैरेंट्स का इमोशनल सहारा बनना।
- कई घरों में बड़ी बेटियों से उम्मीद की जाती है कि वे जल्दी समझदार बनें, जिम्मेदार बनें और सबका ध्यान रखें।
- बेटियों को बचपन से ही कहा जाता है कि तुम तो अपने भाई-बहनों की दूसरी मां हो, तुम तो बहुत समझदार हो और तुम तो बहुत मैच्योर हो। ये बातें सुनने में तारीफ लग सकती हैं, लेकिन बाद में यह बोझ जैसी बन जाती हैं।
बड़ी होकर भी ये असर कैसे दिखता है?
'एल्डेस्ट डॉटर सिंड्रोम' के लक्षण तब नजर आने लगते हैं, जब बड़ी बेटी सच में बड़ी हो जाती है। वह कॉलेज जाने लगती है और घर की जिम्मेदारी संभालने लगती है। वह खुद के लिए समय नहीं निकाल पाती है और वह पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ को बैलेंस करने के बीच फंसकर रह जाती है। वह खुद के लिए कुछ नहीं कर पाती है और अपने सपनों को दबाती चली जाती है, जिसकी वजह से वह भावनात्मक रूप से थक जाती है।
उन्हें एक समय के बाद खुद के लिए समय नहीं निकालने पर गिल्टी होने लगती है। उन्हें हमेशा डर सताता है कि कोई उनसे नाराज न हो जाए। वह अंदर से टूटी हुई होती हैं, लेकिन खुद को मजबूत बताती रहती हैं। उन्हें किसी से बातें शेयर करना या मदद मांगने में संकोच होता है। खास बात यह है कि इस सिंड्रोम में घर की बड़ी बेटियां खुद भी समझ नहीं पाती हैं कि वह इतनी थकी हुई क्यों हैं। वह हर दिन थकान और अकेलेपन से जूझती रहती हैं।
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एल्डेस्ट डॉटर सिंड्रोम से बाहर कैसे निकलें?
- इस सिंड्रोम से बाहर निकलने के लिए यह समझना जरूरी है कि हमें कब-कब बिना बोले कुछ भूमिकाएं निभानी पड़ीं और अब खुद को ये इजाजत देना कि हम उन भूमिकाओं से बाहर आ सकें। आपको धीरे-धीरे शुरुआत करनी होगी।
- घर की बड़ी बेटी को यह समझना होगा कि यह रोल आपने खुद नहीं चुना था, बल्कि यह आप पर डाला गया था। अब आपके लिए यह सोचना जरूरी है कि क्या ये भूमिका अभी भी जरूरी है या बस आदत बन गई है।
- अगर आपको सब स्ट्रॉन्ग और परफेक्शनिस्ट कहते हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि आप खुद को थका हुआ, गलतियां करने वाला नहीं मान सकतीं। आप भी इंसान हैं और आपको भी आराम करने का हक है।
- आप केवल अपने भाई-बहनों की केयरटेकर नहीं हैं, बल्कि आप भी इंसान हैं, जिनकी अपनी खुद की पसंद और इच्छाएं हैं। अपने लिए समय निकालें और अपनी पसंद की चीजें करें।
- शुरुआत में खुद के लिए समय निकालना और खुद के लिए जीना आपको स्वार्थ लग सकता है, लेकिन यह आपके मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है।
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