आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में ऑफिस के काम, घर की जिम्मेदारियां और बच्चों की देखभाल करने के बीच वर्किंग वुमेन को बैलेंस बनाना किसी जादू से कम नहीं लगता है। आजकल कामकाजी मांओं के लिए यह काफी मुश्किल काम होता है। ऐसे में अक्सर मांएं यह सोचती हैं कि ऐसा कौन-सा तरीका है जिससे वह अपने बच्चों की परवरिश अच्छे कर सकें। इन्हीं जरूरतों को ध्यान में रखते हुए एक नया तरीका सामने आया है जिसे डॉल्फिन पेरेंटिंग कहा जाता है। इस पेरेंटिंग के तरीके में अनुशासन और प्यार दोनों के बीच बैलेंस होता है। यह न तो ज्यादा सख्त होती है और न ही ज्यादा लचीली, बल्कि इस तरीके में बच्चों को समझदारी, आत्मनिर्भरता और इमोशनल बैलेंस करना सिखाया जाता है। आज हम इस आर्टिकल में जानेंगे कि क्या होती है डॉल्फिन पेरेंटिंग और इसके फायदे क्या हैं?
डॉल्फिन पेरेंटिंग क्या है?
मशहूर मनोचिकित्सक और लेखिका डॉ. शिमी कांग ने अपनी किताब The Dolphin Way में बताया है कि डॉल्फिन पेरेंटिंग का तरीका जानवरों से प्रेरित है। डॉल्फिन पेरेंटिंग में पैरेंट्स अपने बच्चों के साथ न तो ज्याद सख्ती बरतते हैं और न ही उन्हें पूरी तरह से छूट देते हैं, बल्कि इसमेंअनुशासन और प्यार बैलेंस होता है। इसका उद्देश्य बच्चों को नियम समझाना, लेकिन साथ ही साथ बच्चों को यह भी एहसास दिलाना कि वे उनके साथ ही हैं। इस तरीके से बच्चे कॉन्फिडेंट और जिम्मेदारी के साथ बड़े होते हैं।
डॉल्फिन पेरेंटिंग के आसान और जरूरी सिद्धांत
डॉल्फिन पेरेंटिंग कुछ खास बातों पर आधारित है, जो बच्चों की अच्छी परवरिश में मदद करती हैं। इसके 4 मुख्य सिद्धांत हैं।
नियम और समझ का बैलेंस
पैरेंट्स बच्चों को कुछ जरूरी नियम और सीमाएं बताते हैं, लेकिन साथ ही बच्चों के इमोशन्स को भी समझते हैं।
भावनाओं को समझने की सीख
बच्चों के मन की बात और इमोशन्स को खुलकर सामने लाना और इसके लिए उन्हें हमेशा प्रोत्साहित करते रहना। उन्हें सिखाना कि गुस्सा, दुख, खुशी जैसी भावनाओं को कैसे सही तरीके से समझे और जाहिर करें।
खुद फैसले लेने की आजादी
बच्चों को छोटे-छोटे फैसले लेने की आजादी देना ताकि वह जिंदगी के अनुभवों से सीख सकें और आत्मनिर्भर बन सकें।
खेल और रचनात्मक सोच को बढ़ावा
बच्चों के खोलने और नए आइडियाज सोचने के लिए प्रेरित करना, ताकि उनका दिमाग खुल सके और वह समाज को अच्छी तरह से समझ सकें।
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डॉल्फिन पेरेंटिंग कामकाजी माताओं को क्यों पसंद आ रही है?
- आजकल कामकाजी महिलाओं के लिए पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ के बीच बैलेंस बनाकर रखना काफी मुश्किलभरा काम होता है। ऐसे में डॉल्फिन पेरेंटिंग एक ऐसा तरीका है, जो व्यावहारिक भी है और बच्चों की देखभाल में मददगार भी है।
- दरअसल इस पेरेंटिंग में सख्ती नहीं होती है, लेकिन इसमें नियम, कायदे-कानून होते हैं। यह तरीका वर्किंग मांओं को आजादी देता है कि वह अपनी जरूरत और समय के मुताबिक बच्चों की परवरिश करें और बिना हर चीज पर नजर रखें हुए बच्चों को सही दिशा दे सकें।
- डॉल्फिन पेरेंटिंग में बच्चों को अपने छोटे-छोटे फैसले लेने के लिए आजादी देती है। ऐसा करने से बच्चे जिम्मेदार बनते हैं और धीरे-धीरे आत्मनिर्भर बनना सीखते हैं।
- कामकाजी मांएं समय की कमी के चलते बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड नहीं कर पाती हैं, लेकिन यह तरीका काफी राहतभरा होता है। इसमें आप कम समय में बच्चों के साथ अच्छी बातचीत और उनकी भावनाओं को समझने को अहमियत देती हैं।
- आज के डिजिटल दौर में बच्चों को पढ़ाई से ज्यादा मेंटल और इमोशनल हेल्थ को समझना जरूरी है। डॉल्फिन पेरेंटिंग के जरिए कामकाजी मांएं अपने बच्चों को खुश, समझदार और अच्छा इंसान बनाने की कोशिश करती हैं। वे बच्चों को नंबर लाने वाली मशीन नहीं बनाती है।
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