पपीता एक स्वादिष्ट और बेहद पौष्टिक फल होता है। यह व्यवसाय के लिए एक पसंदीदा फसल भी है। मौसम के बदलने और रखरखाव में कमी आने से पपीते के पौधे में कई तरह के रोगों से प्रभावित हो सकते हैं। इन रोगों से पौधों के ग्रोथ पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है और इसकी वजह से फल की गुणवत्ता में कमी आ सकती है। पपीता सदा बहार वन का फल है, जिसमें 20 से ज्यादा रोगों लगते हैं, इनमें कवक और विषाणु जनित रोग खास तौर पर पाए जाते हैं।
पपीता न सिर्फ बाजार में खरीद फरोख्त के लिए बल्कि लोग अपने बगीचे में सुंदरता के साथ साथ मिठे फल के लिए लगाते हैं। आइए जानते हैं, कैसे पपीते के पौधे में लगे 8 से ज्यादा रोगों को खत्म करने के लिए इन तरीकों को अपनाया जा सकता है।
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पपीते के पौधे में लगने वाले कुछ प्रमुख रोगों में शामिल हैं:
पर्ण कुंचन रोग (Leaf curl disease):
यह एक विषाणु जनित रोग है। इस रोग से पौधे की पत्तियां छोटी और कुम्हली हो जाती हैं। पत्तियों का आकार छोटा और कुम्हला हुआ हो जाता है। पत्तियों की शिराओं के बीच का भाग पीला पड़ जाता है। रोगी पौधे की वृद्धि रुक जाती है और फल कम आते हैं। रखरखाव के लिए इसमें इमिडाक्लोप्रिड 7% WP, 2 ग्राम प्रति 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
वलय चितकबरा रोग (Ring spotted disease):
यह एक कवक जनित रोग है। इस रोग से पौधे की पत्तियों पर पीले और भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। इस रोग से पौधे की वृद्धि रुक जाती है और फल कम आने की एक वजह यह रोग भी हो सकते हैं। इसमें मेटालैक्सिल 8% WP, 2 ग्राम प्रति 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
आर्द गलन (Wet melt):
यह रोग पपीते की नर्सरी में लगने वाला एक सबसे आम रोग है। यह रोग कवक पीथियम एफैनिडरमेटम के कारण होता है। यह रोग नये अंकुरित पौधों को काफी प्रभावित करता है। इस रोग में पौधे का तना शुरूआत में ही गल जाता है और पौधा जमीन की सतह से ही मुरझाकर गिर जाता है। मेटालैक्सिल और मेन्कोजेब के मिश्रण का 2 ग्राम एक लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।
काले धब्बेदार रोग (Black spot disease):
यह एक कवक जनित रोग है। यह रोग कवक फिप्थोस्पोरा पपीता के कारण होता है। यह रोग पपीते के सभी अंगों को प्रभावित कर सकता है, लेकिन सबसे अधिक पत्तियों को प्रभावित करता है। इस रोग से पौधे की पत्तियों पर छोटे-छोटे काले धब्बे बन जाते हैं। रोगी पौधे की वृद्धि रुक जाती है और फल कम आते हैं। इसमें कार्बेन्डाजिम 2% WP, 2 ग्राम प्रति 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
पर्ण गिरने वाला रोग (Defoliation disease):
यह एक कवक जनित रोग है। इससे पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है। इस रोग से पौधे की पत्तियां गिरने लगती हैं। रोगी पौधे की वृद्धि रुक जाती है और फल कम आते हैं। पौधों के आसपास की सफाई रखें और मरे या बीमार पत्तों को तुरंत तोड़ दें। पौधों को नष्ट करने के बाद, मिट्टी को 2% कार्बेन्डाजिम के घोल से उपचारित करें।
फल सड़न रोग (Fruit rot disease):
यह एक कवक जनित रोग है। इस रोग से पौधे के फल सड़ जाते हैं। रोगी फल खाने योग्य नहीं होते हैं। धब्बे बढ़ते हुए एक-दूसरे से मिल जाते हैं और फल का अधिकांश भाग सड़ जाता है। सड़े हुए फल का रंग काला या भूरा हो जाता है। रोग से ग्रसित फल पकने से पहले ही गिर जाते हैं। 2 ग्राम कवकनाशी को 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। छिड़काव सप्ताह में एक बार करें।
मोज़ेक रोग (Mosaic disease):
यह एक विषाणु जनित रोग है। इस रोग से पौधे की पत्तियों पर पीले और हरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। रोगी पौधे की वृद्धि रुक जाती है और फल कम आते हैं। रोग का कोई इलाज नहीं है। रोगग्रस्त पौधों को तुरंत नष्ट कर दें।
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इन रोगों से बचाव के लिए ये उपाय किए जा सकते हैं:
- रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें और पौधे को स्वस्थ रखने के लिए उपचार करें।
- पौधे के आसपास सफाई रखें रोग से ग्रस्त पौधों को तुरंत नष्ट कर दें या दवा छिड़कें।
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