अभी हाल ही में डायरेक्टर नितेश तिवारी की फिल्म रामायण का पहला टीजर आया है और सोशल मीडिया पर खूब चर्चा में है। आजकल के फिल्ममेकर्स रामायण और महाभारत जैसे बड़े धार्मिक ग्रंथों पर फिल्में बनाना चाहते हैं। हिंदू धर्म में, रामायण और महाभारत सिर्फ पवित्र किताबें नहीं हैं, बल्कि करोड़ों लोगों की आस्था, संस्कृति और भावनाओं से जुड़ी हैं। यही वजह है कि जब भी ऐसी कोई फिल्म बनती है, तो वह बहुत ज्यादा सुर्खियों में आ जाती है।
लेकिन, इन पौराणिक कहानियों पर फिल्म बनाना फिल्ममेकर्स के लिए आसान नहीं होता, क्योंकि यह एक बहुत ही संवेदनशील और जिम्मेदारी वाला काम है। अगर फिल्म में किसी किरदार या घटना को गलत तरीके से दिखाया जाता है, तो फिल्म विवादों में आ जाती है और उस पर कानूनी कार्रवाई भी हो सकती है। तो आइए जानते हैं कि रामायण या महाभारत जैसे विषयों पर फिल्म बनाने से पहले कौन-कौन सी कानूनी मंजूरियां लेनी पड़ती हैं।
क्या रामायण या महाभारत पर फिल्म बनाने के लिए कॉपीराइट लेना जरूरी है?
आपको बता दें कि वाल्मीकि की रामायण या वेदव्यास की महाभारत, ये दोनों ही महाकाव्य पब्लिक डोमेन में आते हैं। इसका मतलब है कि इन पर किसी एक लेखक, कंपनी या संस्था का कोई खास अधिकार नहीं है। आप इनकी मूल कहानियों पर बिना किसी की अनुमति के फिल्म बना सकते हैं।
लेकिन, मामला तब बदल जाता है जब आप किसी आधुनिक संस्करण का इस्तेमाल करते हैं। जैसे, रामानंद सागर की 'रामायण' या बी.आर. चोपड़ा की 'महाभारत'। इन संस्करणों में खास तरह की स्क्रिप्ट, डायलॉग्स और सीन होते हैं, जिन पर उनके बनाने वालों का कॉपीराइट होता है। अगर आप इनसे प्रेरणा लेकर उनके सीन या डायलॉग्स को बिना अनुमति इस्तेमाल करते हैं, तो इसे कॉपीराइट उल्लंघन (Copyright Infringement) माना जाएगा, और आपके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
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स्क्रिप्ट की कानूनी जांच क्यों जरूरी है?
अगर आप रामायण या महाभारत जैसे धार्मिक ग्रंथों की कहानियों पर आधारित फिल्म बना रहे हैं, तो आपकी स्क्रिप्ट में कुछ ऐसे सीन या डायलॉग्स हो सकते हैं जो लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा सकते हैं या इतिहास को गलत तरीके से दिखा सकते हैं। इसलिए, फिल्म की स्क्रिप्ट को किसी कानूनी विशेषज्ञ (जैसे मीडिया या एंटरटेनमेंट लॉयर) से पहले ही जांच करवाना बहुत जरूरी है, जिसे स्क्रिप्ट वेटिंग कहते हैं।
धार्मिक फिल्म बनाते समय, अगर फिल्ममेकर्स किसी धार्मिक किरदार का मजाक उड़ाते हैं, रोमांटिक सीन जोड़ते हैं या देवी-देवताओं के चरित्र को सही ढंग से नहीं दिखाते हैं, तो उनके खिलाफ भारतीय कानून की धारा 295(ए) और धारा 153(ए) के तहत मुकदमा हो सकता है।
CBFC प्रमाणपत्र क्यों जरूरी है?
जब कोई धार्मिक फ़िल्म सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली होती है, तो सबसे पहले उसे केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) से मंजूरी लेनी पड़ती है। यही बोर्ड तय करता है कि धार्मिक फिल्म आम लोगों के देखने के लिए सही है या नहीं। CBFC यह जांचता है कि फिल्म में कहीं कोई ऐसा कंटेंट तो नहीं है, जिसमें अश्लीलता या गलत भाषा का इस्तेमाल किया गया है, जरूरत से ज्यादा हिंसा तो नहीं है, और किसी धर्म या जाति का अपमान तो नहीं किया गया है।
वहीं, जब रामायण या महाभारत जैसे महाकाव्यों पर फिल्म बनाई जाती है, तो CBFC इसकी जांच और भी गहराई से करता है, क्योंकि ऐसे विषय सीधे लोगों की आस्था और भावनाओं से जुड़े़ होते हैं।
असली जगहों पर शूटिंग के लिए कानूनी अनुमति
अगर फिल्ममेकर धार्मिक फिल्म में मंदिर, पवित्र नदी या ऐतिहासिक शहरों में जाकर शूटिंग करना चाहते हैं, तो इसके लिए उन्हें पहले स्थानीय नगर पालिका, राज्य सरकार के संबंधित विभाग और ASI (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) से खास अनुमति लेनी होगी। अगर वे बिना मंजूरी के शूटिंग करने पहुंच जाते हैं, तो उन्हें जुर्माना या कानूनी नोटिस का भी सामना करना पड़ सकता है।
फिल्म में डिस्क्लेमर क्यों जरूरी है?
आम तौर पर हर फिल्म या वेब सीरीज की शुरुआत में एक डिस्क्लेमर दिया जाता है। लेकिन जब फिल्म धार्मिक ग्रंथों पर आधारित होती है, तो फिल्म की शुरुआत में एक सही डिस्क्लेमर देना बहुत जरूरी होता है। यह डिस्क्लेमर दर्शकों को यह समझाने में मदद करता है कि फिल्म का मकसद केवल मनोरंजन और आध्यात्मिक सोच को बढ़ावा देना है, न कि किसी धर्म, संस्कृति या परंपरा का मजाक उड़ाना। इस तरह का डिस्क्लेमर फिल्म को कानूनी विवादों और सामाजिक विरोध से काफी हद तक बचा सकता है।
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