
Shab-e-Barat ki Namaz 2025: शाबान के महीने में शब-ए-बारात का त्यौहार मनाया जाता है। शब-ए -बरात शाबान महीने की 15वीं तारीख को आती है। यह मुसलमान का एक बेहद महत्वपूर्ण त्योहार है। शब-ए -बारात में एक खास और मुकद्दस रात आती है,जिसे हम शब-ए-कद्र की रात के नाम से जानते हैं। इस रात में अल्लाह अपने बंदों की दुआएं कबूल फरमाता है और गुनाहों को माफ करने के दरवाजे खोलता है। जो लोग दिल से तौबा करते हैं और सच्ची इबादत करते हैं, उन्हें अल्लाह की रहमत मिलती है। इस रात नफिल नमाज अदा की जाती है। कुछ खास दुआ भी पढ़ी जाती है। कुरआन की तिलावत करना भी फायदेमंद माना जाता है। अगर आप भी इस मुबारक रात में इबादत कर अपनी जिंदगी में सवाब कमाना चाहते हैं तो, हम आपको इस रात में पढ़ी जाने वाली नमाज और दुआ के बारे में बता रहे हैं।

इशा की फर्ज और सुन्नत नमाज अदा करने के बाद शब-ए- बरात की इबादत शुरुआत की जाती है। इसमें नफिल नमाज पढ़ी जाती है। आप अपनी सहूलियत के हिसाब से दो रिकात से लेकर 24 रिकात तक नमाज पढ़ सकते हैं। जिस तरह से आप बाकी की नमाज अदा करते हैं, ठीक उसी तरह से आपको नफिल नमाज अदा करनी होती है, सिर्फ नियत करते वक्त आपको नफिल नमाज की नियत करनी होती है।
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नमाज अदा करने के बाद अल्ला से अपने गुनाहों की माफी के लिए यह दुआ कसरत से पढ़ी जाती है।
इसका मतलब होता है, ऐ अल्लाह! मैने अपनी जान पर बहुत जुल्म किया है और गुनाहों को सिर्फ तू ही माफ कर सकता है। तो मुझे अपनी तरफ से माफी अता कर और मुझ पर रहमत कर। बेशक, तू ही सबसे ज्यादा माफ करने वाला है और रहम करने वाला है।
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शब-ए- बरात की रात यह दुआ पढ़ने की बहुत ही फजीलत है। माना जाता है कि इस दुआ को कसरत से पढ़ने से अल्लाह की रहमत और मगफिरत हासिल होती है। इससे दिल को सुकून मिलता है। इस दुआ के साथ बंदा अपने दिल की बातें अल्लाह से कहता है, तो अल्लाह उसे जरूर सुनते हैं और दुआ कबूल होने की संभावना बढ़ जाती है। इस दुआ को पढ़ने से इंसान को अपनी गुनाहों का एहसास होता है और वह उन्हें दोबारा न करने की कसम खाता है। यही दुआ कयामत के दिन आपको माफी दिलवाती है
इसका मतलब होता है, ए अल्लाह! तू बहुत माफ करने वाला है,तू माफी को पसंद करता है। मुझे भी माफ कर दे।
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इसका मतलब होता है, ऐ अल्लाह, मुझे माफ कर, मुझ पर रहमत फरमा, मेरे गुनाहों को माफ कर और मेरी इबादत को कबूल कर
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