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Shab-e-Barat Kab Hai 2025: शब-ए-बारात क्यों मनाया जाता है? जानें इसका इतिहास और महत्व

शब-ए-बारात, मुस्लिम समाज के लोगों का एक ऐसा त्योहार है, जिसमें लोगों को गुनाहों की माफी मिलती है। इस खास मौके पर लोग अल्लाह को राजी करते हैं। यह त्योहार बरकत और रहमत वाली होती है। आइए जानते हैं इसे कैसे मनाया जाता है और इसका महत्व क्या है।
Editorial
Updated:- 2025-02-12, 15:36 IST

शब-ए-बारात, मुस्लिम समुदाय के लोगों का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। शब-ए-बारात की रात बहुत ही पाक मानी जाती है। यह, वह रात होती है जब अल्लाह से हर गुनाह की माफी मांगी जाती है। शब-ए-बारात अल्लाह की रजा हासिल करना बेहतरीन मौका है। चलिए जानते हैं शब-ए-बारात का इतिहास क्या है? और यह इस साल कब मनाई जाएगी।

कब है शब-ए-बारात ?(Shab e barat 2025 Kab Hai)

SHAB E BARAT

जानकारी के मुताबिक शब-ए-बारात शाबान के महीने में मनाया जाता है। बता दें, कि शाबान इस्लामिक कैलेंडर का आठवां महीना है, जिसकी 14वीं और 15वीं दरमियानी रात को मुसलमान शब-ए- बरात का त्योहार मनाते हैं। यानी इस साल 2025, में 13 फरवरी को शब-ए- बरात का त्यौहार मनाया जाएगा। चलिए जानते हैं इसकी फजीलत क्या है? इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग क्या करते हैं?

कैसे मनाते हैं शब-ए-बारात? (Shab-E-Barat Kaise Manate Hai)

शब- ए- बारात के मौके पर दिन में तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं और गरीबों में बांटे जाते हैं। रात में लोग पूरी रात जागकर अल्लाह की इबादत करते हैं और अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं। पुरुष मस्जिद में नमाज अदा करते हैं, जबकि महिलाएं घर में नमाज़ पढ़ती हैं। इसके अलावा, शब-ए- बारात की रात लोग अपने पूर्वजों की कब्रों पर जाकर उनकी मगफिरत की दुआ मांगते हैं। अगले दिन रोजा रखा जाता है, हालांकि यह फर्ज रोजा नहीं होता है, इसे नफिल रोजा कहा जाता है। यानी इसे व्यक्ति अपनी इच्छा के मुताबिक रख सकता है। वहीं, जिन लोगों के रमजान का रोजा पूरा नहीं होता है, यह रोजा नहीं रखनी चाहिए।

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शब-ए-बारात का महत्व और इतिहास (History and Significance of Shab-E-Barat)

SHBE BARAT

शब-ए-बारात से जुड़ी कई तरह की मान्यताएं हैं। शिया और सुन्नी मुसलमान इसे अलग-अलग मान्यताओं से जोड़ते हैं। सुन्नी मुसलमान का मानना होता है कि इसी दिन अल्लाह के नूर के संदूक को बाढ़ से बचाया गया था। वहीं, शिया मुसलमान का मानना है कि 12वें इमाम मोहम्मद-अल-महदी की पैदाइश 15 शाबान को हुई थी, इसलिए शब- ए- बरात मनाया जाता है। वहीं, कुछ हदीस में यह भी लिखा गया है कि पैगंबर मोहम्मद को शाबान की 15वीं तारीख में जन्नतुल बकी का दौरा करते देखा गया था।

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Image Credit- freepik

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