पटना हाईकोर्ट ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि बच्चे को जन्म न दे पाने पर पति को तलाक का आधार नहीं है। आपको बता दें कि इस मामले में पति ने पत्नी पर आरोप लगाया कि उसकी पत्नी उससे और ससुराल वालों से दुर्व्यवहार करती है और उसकी पत्नी ने शादी खत्म करने के लिए भी कहा था।
जानिए क्या है पूरा मामला?
पति ने पत्नी पर आरोप लगाया था कि पत्नी कभी फैमिली शुरू नहीं करना चाहती थी, सिर्फ वर्जिनिटी तोड़ना चाहती थी। परिवार की ओर से मना किए जाने के बावजूद उसने गांव में लोगों के साथ बात की।
पति ने यह भी बताया कि पत्नी अपने माता-पिता के साथ रहती है। कई बार उसे वापस लाने की कोशिश की, लेकिन उसने इनकार कर दिया। जब उसने को अपने खराब स्वास्थ्य के बारे में बताया और इलाज के लिए पैसों की मांगी की और उसे डॉक्टर के पास ले गया। डॉक्टर की सलाह पर अल्ट्रासोनिक टेस्ट से पता चला कि पत्नी के गर्भाशय में सिस्ट है और उसके गर्भधारण करने और मां बनने की संभावना नहीं है।
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पटना हाईकोर्ट ने मामले पर सुनाया यह फैसला
जस्टिस जितेंद्र कुमार और जस्टिस पी.बी. बजंथरी की डिवीजन बेंच ने इस मामले पर कहा कि पति पत्नी के रूप में रहने के दौरान किसी को कोई भी बीमारी हो सकती है। इस पर किसी का कंट्रोल नहीं है और कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत पति की तलाक की अर्जी फैमिली कोर्ट ने खारिज कर दी।
अदालत ने यह भी कहा कि महिला के गर्भाशय में सिस्ट है। इसलिए वह बच्चा पैदा नहीं कर पा रही है। महिलाओं में ओवेरियन सिस्ट होने पर पेट में सूजन, दर्द, यौन संबंध बनाने के दौरान दर्द होना, उल्टी जैसे लक्षण हो सकते हैं। पति उसे तलाक देकर दूसरी महिला से शादी करना चाहता है ताकि वो बच्चा पैदा कर सके। (हाउसवाइफ का भी है पति की प्रॉपर्टी पर हक, पढ़ें मद्रास हाईकोर्ट की टिप्पणी)
आपको बता दें कि फैमिली कोर्ट ने पति की तलाक की तलाक की याचिका इस आधार पर खारिज की थी कि वो पत्नी के खिलाफ लगाए गए क्रूरता के आरोप को साबित करने में विफल रहा। कोर्ट के अनुसार, इस तलाक की याचिका शादी के दो साल के भीतर दायर की गई और पत्नी केवल दो महीने तक पति के साथ रही थी।
अदालत ने आगे यह भी कहा कि पति ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए कोई कानूनी कदम नहीं उठाया है, जो दर्शाता है कि साथ रहने से इनकार करने के दावे में आधार का अभाव है।
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