भारत में आजकल क्रेडिट कार्ड से लेकर ऑनलाइन शॉपिंग फ्लेटफॉर्म्स तक ने नो-कॉस्ट ईएमआई (No-Cost EMI) की सुविधा को काफी लोकप्रिय बना दिया है। नो कॉस्ट ईएमआई डील लोगों को आजकल काफी अट्रैक्ट करती हैं और इस पेमेंट मैथेड में आप कोई महंगा सामान खरीद सकते हैं और बाद में EMI में भुगतान कर सकते हैं, वो भी बिना किसी तरह का एक्स्ट्रा ब्याज दिए हुए। नौ कॉस्ट EMI वाले ऑफर्स सुनने में काफी अच्छे लगते हैं, खासकर जब आप महंगे सामान को EMI पर खरीदना चाहते हैं। लेकिन कई बार मन में सवाल आता है कि क्या सच में No-Cost EMI वाले ऑफर्स पूरी तर से फ्री होते हैं या हमारी आंखों का धोखा होता है।
जी हां, असल में No-Cost EMI नाम एक मिथ्क है, जिसमें बताया जाता है कि कोई ब्याज नहीं लगेगा, लेकिन इसमें कुछ छिपे हुए चार्जेस होते हैं, जो कस्टमर को शुरू में नहीं दिखाई देते हैं। आज हम इस आर्टिकल में बताने वाले हैं कि नो-कॉस्ट ईएमआई का प्रोसेस क्या होता है और इसके अंदर कोन-कौन से खर्चे शामिल होते हैं।
1. ब्याज पर लगने वाला GST
No-Cost EMI का मतलब यह कभी नहीं होता है कि बैंक आपको बिना ब्याज के लोन दे रहा है। असल में, बैंक तो ब्याज वसूलता है, लेकिन प्रोडक्ट बेचने वाला उस ब्याज की भरपाई आपके लिए पहले ही डिस्काउंट के रूप में कर देता है यानी ब्याज आपको अपनी जेब से नहीं देना पड़ता है, लेकिन उस पर जो GST लगता है, वह आपको ही देना पड़ता है।
उदाहरण के तौर पर, अगर आपने 62,000 रुपये का स्मार्टफोन नो-कॉस्ट EMI पर खरीदा है और आपने 9 महीने की EMI स्कीम चुनी है, तो बैंक इस लोन पर लगभग 16 फीसदी सालाना ब्याज लेगा। आपकी मंथली EMI बनती है करीब 6,889 रुपये जिसमें से 774 रुपये ब्याज है। अब उस 774 पर 18 फीसदी GST जुड़ता है यानी करीब 139 रुपये हम महीने। इस तरह 9 महीने में आप 1,250 से ज्यादा केवल GST के नाम एक्स्ट्रा चुका रहे होते हैं। इसलिए जब कभी आप नो-कॉस्ट EMI पर कोई प्रोडक्ट खरीदें, तो बाद में अपना क्रेडिट कार्ड का स्टेटमेंट जरूर चेक करें। अक्सर उसमें interest GST के नाम से एक लाइन छपी होती है, जिसे लोग आमतौर पर इग्नोर कर देते हैं।
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2. प्रोसेसिंग फीस और अन्य छिपे हुए चार्जेस
जब आप कोई प्रोडक्ट नो-कॉस्ट EMI पर खरीदते हैं, तो बैंक या NBFC अक्सर आपकी EMI सुविधा को प्रोसेस करने के लिए प्रोसेसिंग फीस लेते हैं। यह फीस 100 से 500 रुपये के बीच हो सकती है और इस पर भी 18 फीसदी GST लगता है। उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कि बैंक ने आपसे 299 रुपये प्रोसेसिंग फीस ली और उसमें पर 18 फीसदी GST लगा, जो 53.82 रुपये बना। कुल मिलाकर आपने बैंक को 352.82 रुपये दिए।
अगर आप बार-बार EMI पर शॉपिंग करते हैं, तो यह छोटी-छोटी फीस साल भर में हजारों रुपये की बन सकती है।
3. आप डिस्काउंट और क्रेडिट कार्ड रिवॉर्ड का फायदा नहीं उठा पाते
जब आप कोई प्रोडक्ट No-Cost EMI पर खरीदते हैं, तो आप कई बार उन पर मिलने वाले डिस्काउंट्स और रिवॉर्ड्स को खो देते हैं, जो एकमुश्त पेमेंट पर मिलते हैं। उदाहरण के तौर पर मान लीजिए 44,000 रुपये का स्मार्टफोन है और उसमें पर एक बार में फुल पेमेंट करने पर 10 फीसदी की छूट मिल रही है, तो अगर आप नो-कॉस्ट ईएमआई को चुनते हैं,तो ये डिस्काउंट कैंसिल हो जाता है। वहीं, क्रेडिट कार्ड कंपनियां एकमुश्त पेमेंट पर 1 से 5 फीसदी तक का कैशबैक देती हैं या रिवार्ड प्वाइंट्स देती हैं, लेकिन अगर आप EMI ली है, तो रिवार्ड नहीं मिलता है।
4. कुछ और छिपे हुए खर्च जिनका ध्यान रखना जरूरी है
- अगर आप कोई सामान नो-कॉस्ट EMI पर खरीदते हैं, तो उस समय कुछ और छिपे हुए चार्जेस भी लगे हो सकते हैं।
- अगर आप लोन की EMI समय से पहले चुकाना चाहते हैं, तो कुछ बैंक आपसे 2 से 4 फीसदी पेनल्टी वसूलते हैं।
- जब आप EMI पर कोई सामान लेते हैं, तो कई बार बैंक आपके कार्ड की पूरी कीमत को आपकी क्रेडिट लिमिट से ब्लॉक कर देते हैं। इससे आपकी क्रेडिट लिमिट कम हो जाती है और आपका credit utilization ratio बढ़ जाता है।
- अगर आप किसी महीना का EMI समय पर नहीं भर पाते हैं, तो बैंक आपसे लेट पेमेंट पेनल्टी ले सकता है। साथ ही उस पर 18 से 36 फीसदी तक ब्याज लगा सकता है। इससे आपके क्रेडिट स्कोर पर बुरा असर पड़ सकता है।
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