शादी एक ऐसा बंधन है जिसे बेहद पवित्र माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह दो लोगों को नहीं बल्कि परिवारों और कम्यूनिटीज को जोड़ने का काम करती है। शादी से जुड़ी रस्में और परंपराएं भी इसी तरह से खास होती है। हमने हिंदू संस्कृतियों में कई परंपराओं के बारे में जाना है, लेकिन एक खास परंपरा नेपाल में भी निभाई जाती है।
नेपाल की सांस्कृतिक विरासत जितनी समृद्ध है, उतनी ही विविध और रहस्यमयी भी। कई ऐसे रीति-रिवाज आज भी देखने को मिलते हैं जो सदियों से चले आ रहे हैं। इनमें से एक बेहद दिलचस्प और अनोखी परंपरा है नेवारी समुदाय में छोटी बच्चियों का भगवान विष्णु और सूर्य देव से विवाह।
यह सुनने में यह थोड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन इस परंपरा के पीछे गहरी आस्था, सांस्कृतिक महत्व और एक बेहद अलग और अनूठा दृष्टिकोण छिपा है। इस लेख में चलिए आपको इस रिवाज के बारे में विस्तार से बताएं। कैसे यह परंपरा, जिसे 'बेल विवाह' या 'इही' कहा जाता है, छोटी बच्चियों के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
नेपाल के नेवार समुदाय में प्रचलित 'बेल विवाह' और 'बर्हा'
नेपाल के नेवार समुदाय जो काठमांडू घाटी में प्रमुखता से बसे हैं, उनके बीच यह अनूठी परंपरा प्रचलित है। इसे ‘ईही’ (Ihi or Ehee) संस्कार कहा जाता है। यह विवाह कोई सांसारिक बंधन नहीं, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठान होता है, जिसमें छोटी बच्चियों का विवाह भगवान विष्णु के एक स्वरूप बेल फल से करवाया जाता है। यह विवाह तब होता है जब बच्चियां बेहद छोटी होती हैं और उनके पीरियड्स शुरू नहीं हुए होते। इसके बाद दूसरा संस्कार जिसे बर्हा कहते हैं, होता है जिसमें उनका विवाह भगवान सूर्य से करवाया जाता है।
यह परंपरा सतही तौर पर भले ही अटपटी लगे, लेकिन इसके पीछे की सोच बेहद गहरी और प्रगतिशील है। नेवारी समाज में ऐसा माना जाता है कि चूंकि बेल भगवान विष्णु का प्रतीक है, तो बेल से विवाह करने का अर्थ है स्वयं भगवान विष्णु से विवाह करना। इस विवाह को अविनाशी और शाश्वत माना जाता है। यह ऐसा बंधन होता है, जो कभी टूट नहीं सकता।
बेल विवाह का आखिर क्या औचित्य है?
इस परंपरा के बारे में सुनकर हो सकता है कि लोगों के मन में संदेह रहे। मगर इसका मुख्य कारण महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा और सम्मान प्रदान करना है। उस दौर में जब विधवाओं को समाज में एक अलग नजरिया से देखा जाता था और उनका जीवन व्यर्थ समझा जाता था, नेवारी समुदाय ने इस परंपरा के माध्यम से एक समाधान निकाला।
अगर लड़की की शादी के बाद उसके पति की मृत्यु हो जाए या किसी कारणवश वह शादी के बंधन में न बंधे, तो भी समाज में उसका सम्मान इस परंपरा के कारण होता है। पति की मृत्यु के बाद भी उसे विधवा नहीं माना जाता। ऐसा इसलिए क्योंकि उसका पहला पति भगवान विष्णु को माना जाता है। यह अवधारणा उन बच्चियों को आगे चलकर सामाजिक बंधनों से मुक्त करती है।
इसी तरह, 'बर्हा' संस्कार, जिसमें लड़की को 12 दिनों के लिए बाहरी दुनिया से अलग कर के रखा जाता है और सूर्य देव से उसका प्रतीकात्मक विवाह होता है, किशोरावस्था में प्रवेश करने वाली लड़कियों के लिए एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। यह उन्हें स्त्रीत्व और प्रजनन क्षमता के महत्व से अवगत कराता है।
कैसे पूरे होती हैं यह खास परंपराएं?
बेल विवाह के दौरान भी बिल्कुल वैसी ही रस्में होती हैं, जैसे किसी आम शादियों में होती हैं। 7-8 साल की बच्चियों को ठीक दुल्हन की तरह तैयार किया जाता है। ग्रैंड सेलिब्रेशन होता है। बेल फल को सुवर्ण कुमार के रूप में बच्चियों के साथ रखकर रीति-रिवाजों से शादी होती है।
इसी तरह बर्हा विवाह तब होता है, जब लड़की को पीरियड शुरू होते हैं। उसके पहली मेंस्ट्रुअल साइकिल के बाद उसे 12 दिनों तक एक कमरे में रखा जाता है। इन 12 दिनों में उसे किसी भी आदमी से मिलने नहीं दिया जाता। 12 दिनों के बाद उसे फिर से दुल्हन की तरह सजाकर उसका विवाह सूर्य देव से करवाया जाता है।
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सांस्कृतिक पहचान और सम्मान का प्रतीक हैं ये परंपराएं
यह परंपरा केवल सामाजिक सुरक्षा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह नेवारी संस्कृति की एक महत्वपूर्ण पहचान भी है। यह सदियों पुराना रिवाज उनकी अनूठी मान्यताओं और दार्शनिक दृष्टिकोण को दर्शाता है। यह दर्शाता है कि कैसे इस समुदाय ने महिलाओं की गरिमा को बनाए रखने के लिए तरीके खोजे।
आज भी, नेपाल के कुछ हिस्सों में यह परंपरा बड़े उत्साह के साथ निभाई जाती है। यह सिर्फ एक विवाह नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर है जो महिलाओं के सशक्तिकरण और सामाजिक सम्मान की एक पुरानी गाथा सुनाती है।
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Image Credit: Freepik and monidipabosedey@instagram
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