मुंबई जैसे महानगर से एक बेहद ही शर्मनाक और दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है, जिसने एक बार फिर इंसानियत को शर्मसार कर दिया है। शिक्षा के मंदिर कहे जाने वाले स्कूल में, जहा बच्चे खुद को सबसे सुरक्षित महसूस करते हैं। वहीं एक शिक्षक पर जबरन यौन उत्पीड़न का गंभीर आरोप लगा है। यह घटना सिर्फ एक अपराध नहीं, बल्कि अभिभावकों के विश्वास और बच्चों की मासूमियत पर एक गहरा आघात है। स्कूल को हमेशा से ही बच्चों के दूसरे घर के तौर पर देखा जाता है, जहां उन्हें ज्ञान और संस्कार दिए जाते हैं और वहीं ऐसे घृणित हरकत होने लगें तो यह सवाल उठना लाजमी है कि आखिर हमारे बच्चे स्कूलों में कितने सुरक्षित हैं?
यह घटना केवल मुंबई तक सीमित नहीं है, बल्कि देश के विभिन्न हिस्सों से ऐसे मामले समय-समय पर सामने आते रहते हैं, जो अभिभावकों को अंदर से झकझोर कर रख देते हैं। यह हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या शिक्षा संस्थानों में सुरक्षा के दावे सिर्फ कागजों पर हैं? क्या बच्चों को पढ़ाने और उनका भविष्य गढ़ने वाले ही उनके भविष्य को अंधकारमय बना रहे हैं? इस लेख में आइए जानते हैं कि बच्चे स्कूल में कितने सुरक्षित हैं और हम बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर भी चर्चा करेंगे।
एक अनसुलझा सवाल- स्कूल में बच्चे कितने सुरक्षित हैं?
शिक्षक और छात्र का रिश्ता ज्ञान, विश्वास और सम्मान पर आधारित होता है। एक शिक्षक को समाज में भगवान का दर्जा दिया जाता है, जो बच्चों को सही-गलत का पाठ पढ़ाता है और उन्हें भविष्य के लिए तैयार करता है। पर, जब यही रिश्ता तार-तार हो जाए और शिक्षक जैसे पवित्र पेशे से जुड़ा कोई व्यक्ति बच्चों की सुरक्षा के लिए ही खतरा बन जाए, तो यह पूरे समाज के लिए चिंता का विषय बन जाता है। मुंबई की यह घटना इसी चिंता को बढ़ाती है। बच्चों की सुरक्षा हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।
यह केवल कानून और नीतियों का मामला नहीं है, बल्कि समाज की मानसिकता को बदलने का भी है। जब तक हर नागरिक इस अपराध के खिलाफ एकजुट होकर खड़ा नहीं होगा, तब तक हमारे बच्चे शायद असुरक्षित महसूस करते रहेंगे। मुंबई की यह घटना एक वेक-अप कॉल है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है। इसके लिए कुछ सतर्कता के बारे में भी जान लेना जरूरी है।
स्कूल में बच्चे को सुरक्षित रखने के लिए जागरूकता जरूरी
यह मामला मुंबई में एक टीचर द्वारा बच्चों के जबरन यौन उत्पीड़न का है। ऐसे में, स्कूल के बच्चों को सुरक्षित रखना बेहद जरूरी है। इसके लिए बच्चों को 'गुड टच' और 'बैड टच' के बारे में जागरूक किया जाए। उन्हें सिखाया जाए कि अगर कोई उन्हें असहज महसूस कराए तो वे कैसे प्रतिक्रिया दें और बड़ों को बताएं। इसके अलावा, अभिभावकों के लिए भी जागरूकता कार्यशालाएं आयोजित की जानी चाहिए ताकि वे अपने बच्चों के व्यवहार में बदलाव को पहचान सकें।
इन मामलों से बच्चों पर क्या असर होता है?
ऐसी घटनाएं बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा और स्थायी नकारात्मक प्रभाव डालती हैं। उन्हें जीवन भर इस आघात से जूझना पड़ सकता है। अभिभावक अपने बच्चों को सुरक्षित हाथों में सौंपकर निश्चिंत होते हैं। ऐसी घटना उनके विश्वास को बुरी तरह तोड़ देती है। यौन उत्पीड़न का शिकार हुए बच्चे अक्सर सदमे में रहते हैं, उनमें आत्मविश्वास की कमी आ जाती है, वे डरे हुए रहते हैं और सामाजिक मेलजोल से कतराने लगते हैं।
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स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए?
यह केवल एक स्कूल की समस्या नहीं, बल्कि एक राष्ट्रव्यापी चिंता है। बच्चों को स्कूलों में सुरक्षित रखने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
- कड़ी पृष्ठभूमि जांच- सभी स्कूल स्टाफ, विशेष रूप से शिक्षकों और सहायक कर्मचारियों की नियुक्ति से पहले उनकी कड़ी आपराधिक पृष्ठभूमि जांच अनिवार्य की जाए। इसमें उनके पिछले रिकॉर्ड और चरित्र प्रमाण पत्र का सत्यापन शामिल हो।
- नियमित संवेदीकरण और प्रशिक्षण- शिक्षकों और अन्य स्कूल कर्मचारियों के लिए बच्चों के अधिकारों, बाल यौन शोषण की रोकथाम और POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) Act, 2012 के तहत उनकी जिम्मेदारियों पर नियमित संवेदीकरण कार्यक्रम और प्रशिक्षण सत्र आयोजित किए जाएं। उन्हें यह सिखाया जाए कि ऐसे मामलों को कैसे पहचानें और रिपोर्ट करें।
- सुरक्षित वातावरण और पारदर्शिता- स्कूल परिसरों में CCTV कैमरे लगाए जाएं, खासकर ऐसे स्थानों पर जहां बच्चों की आवाजाही ज्यादा होती है।
- शिकायत पेटी या हेल्पलाइन- छात्रों के लिए एक सुरक्षित और गोपनीय शिकायत तंत्र जैसे शिकायत पेटी या हेल्पलाइन स्थापित किया जाए, जहां वे बिना किसी डर के अपनी बात रख सकें।
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