
पिछले कड़ी में हमने बात की आपके बैंक खाते के बारे में, किस तरह वह आपकी पहचान से जुड़ा होता है। आपकी आर्थिक आत्मनिर्भरता की वो चाबी है। एक बार आपने धन को बैंक में सुरक्षित जमा कर दिया, तो अगला प्रश्न उठता है कि ऐसा क्या करें कि उससे लाभ होने लगे। हम भारतीय महिलाओं में बचत की स्वाभाविक प्रवृत्ति नजर आती है। साड़ी के पल्लू में तो कभी अलमारी में हम नोट छिपाकर बचत करते हैं या फिक्स डिपाजिट को बड़ी जीत समझते हैं। बचत करना अच्छी आदत है। इससे जीवन चीजें व्यवस्थित होती हैं और सुरक्षा का अहसास पनपता है, लेकिन ये मात्र पहला कदम है। अगर आपका धन यूं ही रखा रहे तो वह कम होने लगेगा। कीमत तो हर साल बढ़ेगी, यही मुद्रास्फीति है। अगर साढ़े पांच प्रतिशत की दर से महंगाई बढ़ रही है और आपको बैंक में जमा बचत पर पांच प्रतिशत का ब्याज मिल रहा है तो विचार का विषय है। आर्थिक मजबूती को बनाए रखने के लिए ये आवश्यक है कि जिस रफ्तार से कीमतें बढ़ रही हैं, उससे ज्यादा तेजी से धन बढ़े।
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यहां धन को लेकर जोखिम उठाने या जुआं खेलने जैसा कुछ भी नहीं है। आपको सिर्फ ये सीखना होगा कि सधे उद्देश्य के साथ अपने धन को कहां रखें जिससे उसमें वृद्धि हो। निवेश करने से पहले स्वयं से पूछें कि ये क्यों जरूरी है। ये धन किस तरह आपके काम आ सकता है। बच्चे की शिक्षा या सेवानिवृत्ति के बाद काम आएगा? क्या वह किसी आपात स्थिति के लिए है? प्रत्येक जवाब आपके लिए वित्तीय लक्ष्य बन जाएगा। एक बार जब लक्ष्य स्पष्ट हो गया तो धन का प्रबंधन करने में निम्न तीन बातों की समझ उत्पन्न करें।

प्रथम: जोखिम, प्रत्येक विकल्प के साथ कुछ अनिश्चितता होती है। कुछ विकल्प सुरक्षित होते हैं, पर उनमें पैसा धीमी गति से बढ़ता है। कुछ में पैसा बड़े पैमाने पर घटता-बढ़ता है, लेकिन उसके दीर्घकालिक परिणाम अच्छे होते हैं। यहां आपका उद्देश्य जोखिम से दूरी बनाना नहीं बल्कि उसे समझना होना चाहिए।
द्वितीय: तरलता, इससे आशय है कि आवश्यकता के समय आपका धन आपको मिल सके। नगद राशि या बैंक में जमा पूंजी, दोनों में तरलता होती है यानी तुरंत उपलब्धता संभव है, जबकि सोना या संपत्ति बेचकर धन जुटाने में समय लग सकता है। कुछ निवेश ऐसे होते हैं, जिन्हें पुन: प्राप्त करने के लिए आपको प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है।
तृतीय: समय, जिस धन की आपको शीघ्र आवश्यकता पड़ सकती है, उसकी उपलब्धता बनाए रखना जरूरी है। जिस धन की आपको लंबे समय तक आवश्यकता नहीं होगी उसे ऐसी जगह निवेश कर सकती हैं, जिसमें भले ही घटने-बढ़ने का जोखिम हो, लेकिन दीर्घकालिक परिणाम अच्छे हों।
उपरोक्त तीन बातों को ध्यान में रखते हुए आप वित्तीय निर्णयों में आगे बढ़ सकती हैं।
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आपने अक्सर कुछ शब्द सुने होंगे जैसे म्यूचुअल फंड्स, बांड्स या सरकारी योजनाएं। मन में जिज्ञासा उठती होगी कि इससे आशय क्या है। ये विभिन्न प्रकार की परिसंपत्तियां है, जिसकी परिधि में रहकर आपका धन बढ़ सकता है।

बैंक डिपॉजिट और सरकारी योजनाएं सुरक्षित होती हैं, जबकि कुछ का लक्ष्य धन की अधिकतम बढ़त होता है, जैसे शेयर या इक्विटी म्यूचुअल फंड्स। वहीं कुछ वास्तविक परिसंपत्तियां होती हैंं जैसे सोना या कोई संपत्ति, जिनका दीर्घकालिक महत्व हो। प्रत्येक के साथ जोखिम व तरलता और समय का पहलू अलग तरीके से जुड़ा है। कुछ से आपको स्थायित्व मिलता है तो कुछ से रफ्तार और कुछ से बढ़त। इन सभी बिंदुओं को हम आने वाले हफ्तों में बारीकी से समझेंगे। आज का अभ्यास सरल है। नोटबुक उठाएं और उस पर तीन लक्ष्य लिखें। प्रत्येक लक्ष्य के सामने अवधि लिखें, यानी कितने समय में उसे पूरा करना चाहती हैं, जैसे एक वर्ष, तीन वर्ष, पांच वर्ष इत्यादि। इसके बाद ये लिखें कि आपका धन कहां रखा है, नगद है या बैंक अकाउंट में या फिक्स डिपाजिट और उस पर कितना ब्याज मिल रहा है।
स्वयं से सवाल करें कि बढ़ती महंगाई के बीच क्या वह ब्याज लक्ष्य तक पहुंचने के लिए पर्याप्त है। यदि नहीं तो आप क्या अलग कर सकती हैं। इसका उत्तर तत्काल नहीं मिलेगा लेकिन इस सवाल के साथ ही बदलाव की दिशा मे बढ़ सकेंगी। किसी के मुंह से तारीफ सुनकर निवेश में आगे न बढ़ें, बल्कि ये आपकी आवश्यकताओं, सुविधा और समय सीमा के आधार पर होना चाहिए। सोचविचार कर इस दिशा में आगे बढ़ें।
अगले हफ्ते: हम निवेश के विकल्पों पर विस्तार से करेंगे, जिसकी शुरुआत म्यूचुअल फंड्स से होगी। आप समझ सकेंगी कि वे किस तरह काम करते हैं, जिसकी वजह से सधी रफ्तार और सुरक्षित तरीके से आपका धन बढ़ सकता है।
याद रखें कि जो धन यूं ही पड़ा रहता है, वह क्षीण पड़ जाता है, जबकि चलायमान धन ही बढ़ता है। ये समय है अपने धन को एक लक्ष्य के साथ गतिमान बनाने का।
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