केंद्रीय कैबिनेट ने कल एक बड़ा फैसला लिया है। अब पांच और भाषाओं को 'शास्त्रीय भाषा' का दर्जा दिया गया है। गुरुवार को मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बांग्ला भाषाओं को शास्त्रीय भाषा के तौर पर मान्यता दे दी गई है। इसी के साथ अब शास्त्रीय भाषाओं की संख्या बढ़कर 11 हो गई है। इससे पहले भारत में कुछ 6 शास्त्रीय भाषाएं थीं। शास्त्रीय भाषा क्या होती हैं, इसके क्या मानदंड होते हैं और किस भाषा को सबसे पहले शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिला था, चलिए आपको बताते हैं पूरी डिटेल्स।
पांच नई भाषाओं को 'शास्त्रीय भाषा' का दर्जा
केन्द्रीय कैबिनेट ने मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को 'शास्त्रीय भाषा' का दर्जा दिया है। इसे एक अहम फैसला माना जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इन पांच भाषाओं को शास्त्रीय भाषा की मान्यता देने के प्रस्ताव पर मुहर लगाई गई है। इस बारे में सूचना प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बात करते हुए कहा है कि पीएम मोदी ने हमेशा से ही भारतीय भाषाओं को प्राथमिकता देने और उन्हें सम्मान देने पर जोर दिया है। इन 5 भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देना, उसी दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है।
क्या होती हैं शास्त्रीय भाषाएं?
Marathi is India’s pride.
— Narendra Modi (@narendramodi) October 3, 2024
Congratulations on this phenomenal language being accorded the status of a Classical Language. This honour acknowledges the rich cultural contribution of Marathi in our nation’s history. Marathi has always been a cornerstone of Indian heritage.
I am…
शास्त्रीय भाषाएं उन भाषाओं को कहा जाता है, जिनमें भारत की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत की झलक मिलती है। किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने के बाद, उसके अध्ययन, रिसर्च और उससे जुड़ी अन्य चीजों में रोजगार के अवसर खुल जाते हैं। साथ ही, उस भाषा से जुड़े इतिहास के संरक्षण पर भी जोर दिया जाता है ताकि आने वाली पीढ़ी उसे समझ सके। ऐसे में इसे एक बड़ा फैसला माना जा रहा है। अब भारत में तमिल, संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, उड़िया, मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली यानी कुल 11 शास्त्रीय भाषाएं हैं। शास्त्रीय भाषा के मानदंडो के अनुसार, किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने के लिए उस भाषा का रिकॉर्ड 1500 से 2000 पुराना रिकॉर्ड होना चाहिए और भाषा के प्राचीन साहित्य का संग्रह भी होना जरूरी है। बता दें कि केन्द्र सरकार ने साल 2004 में शास्त्रीय भाषा की श्रेणी को बनाया था और सबसे पहले तमिल को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिला था।
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