महाकुंभ, हिन्दुओं की गहरी आस्था का प्रतीक है, भारत का सबसे बड़ा धार्मिक समागम है। यह न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपरा का भी प्रतीक है। महाकुंभ की एक महत्वपूर्ण पहचान अखाड़े भी हैं। अखाड़े केवल कुश्ती या पहलवानी के स्थान नहीं हैं। ये हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण अंग हैं, जिन्हें मठ भी कहा जाता है। अखाड़ों में शस्त्र और शास्त्र दोनों की शिक्षा दी जाती है। यहां शाही सवारी, रथ, हाथी-घोड़ों की सजावट, घंटा-बाजे और करतब का अद्भुत प्रदर्शन होता है। आपको बता दें, अखाड़ों की शुरुआत कब और कैसे हुई, इसका रहस्य अभी भी पूरी तरह से नहीं सुलझा है। लेकिन माना जाता है कि इनकी स्थापना आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में की थी। उस समय विदेशी आक्रमणकारियों से हिंदू धर्म की रक्षा के लिए एक योद्धा वर्ग तैयार करने की आवश्यकता थी। इसलिए, अखाड़ों को धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए स्थापित किया गया था।
आइए इस लेख में विस्तार से ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से 13 अखाड़ों के बारे में जानते हैं।
आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित है अखाड़े का इतिहास
आदि शंकराचार्य ने सदियों पहले बौद्ध धर्म के बढ़ते प्रसार को रोकने के लिए अखाड़ों की स्थापना की थी। ऐसा कहा जाता है कि जो शास्त्र से नहीं माने, उन्हें शस्त्र से मनाया गया। इन अखाड़ों का मकसद हिंदू धर्म और संस्कृति को बचाना था। सदियों पहले जब समाज में धर्म विरोधी शक्तियां सिर उठा रही थीं, तो सिर्फ आध्यात्मिक शक्ति के जरिए ही इन चुनौतियों का मुकाबला करना काफी नहीं थी। जिससे आदि शंकाराचार्य ने जोर दिया कि युवा साधु कसरत करके खुद को ताकतवर बनाएं। हथियार चलाने में कुशलता हासिल करें ताकि विरोधी शक्तियों से लड़ा जा सके। आदि शंकराचार्य ने इसके लिए मठ बनाए और इन्हीं मठों को अखाड़ा कहा गया। आपको बता दें, शुरुआत में केवल चार प्रमुख अखाड़े थे, लेकिन बाद में वैचारिक मतभेद हुए। बंटवारा होता गया और वर्तमान में 13 प्रमुख अखाड़े हैं। इनमें सात अखाड़े भगवान शिव का आराधक माने जाते हैं।
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संन्यासी संप्रदाय के अखाड़े
- जूना अखाड़ा
- आवाहन अखाड़ा
- अग्नि अखाड़ा
- निरंजनी अखाड़ा
- महानिर्वाणी अखाड़ा
- आनंद अखाड़ा पंचायती
- अटल अखाड़ा
वैष्णव संप्रदाय के अखाड़े
- निर्मोही अखाड़ा
- दिगंबर अखाड़ा
- निर्वाणी अणि अखाड़ा
उदासीन संप्रदाय के अखाड़े
- बड़ा उदासीन अखाड़ा
- नया उदासीन अखाड़ा
- निर्मल अखाड़ा
भारतीय समाज में किन्नरों का नया अखाड़ा हुआ स्थापित
भारतीय संस्कृति में किन्नरों को शुभ और उनकी उपस्थिति को मंगलमय माना जाता है। हमारे समाज में किन्नर समुदाय को एक खास जगह दी गई है। प्राचीन भारतीय संस्कृति में इन्हें धार्मिक और सांस्कृतिक नजरिए से एक अलग दर्जा मिला हुआ है। हिंदू धर्म में किन्नरों को भगवान शिव का भक्त माना जाता है और यह भी मान्यता है कि वे विशेष रूप से समुदाय को शुभकामनाएं और आशीर्वाद देते हैं।
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कैसे चुने जाते हैं इन अखाड़ों के महामंडलेश्वर?
महामंडलेश्वर का पद संत समाज में एक बहुत ही महत्वपूर्ण पद होता है। महामंडलेश्वर अपने मठ या अखाड़े के सभी कार्यों की देखरेख करते हैं। इसके साथ ही वे समाज कल्याण के कार्यों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। यह पद किसी भी संत को यूं ही नहीं दिया जाता है। इसके लिए कई बातों का ध्यान रखा जाता है। महामंडलेश्वर बनने के लिए कुछ नियम और शर्तें हैं जिनका पालन करना जरूरी है।
- किसी भी संत को महामंडलेश्वर बनाने से पहले यह देखा जाता है कि वह किस मठ या अखाड़े से जुड़ा हुआ है। इसके साथ ही यह भी देखा जाता है कि वह संत समाज कल्याण के कार्यों में कितना सक्रिय है। यदि कोई संत आचार्य या शास्त्री है, तो उसे महामंडलेश्वर बनने के लिए अधिक योग्य माना जाता है।
- महामंडलेश्वर के चयन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद उन्हें संन्यास दिलाया जाता है। संन्यास लेने के बाद उन्हें अपना पिंडदान खुद ही करना होता है। इसके बाद उनका पट्टाभिषेक किया जाता है। यह सारी प्रक्रिया 13 अखाड़ों के संत-महंतों की मौजूदगी में पूरी की जाती है।
- महामंडलेश्वर बनने के बाद एक संत अपने शिष्य भी बना सकता है। कुंभ के शाही स्नान में यह साधु रथ पर सवार होकर आते हैं और इन्हें वीआईपी ट्रीटमेंट भी दिया जाता है।
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Image Credit- HerZindagi
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