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Magh Month 2025: माघ माह में मां गंगा के इस स्तोत्र का करें पाठ, नकारात्मकता होगी दूर

माघ माह के कृष्ण पक्ष में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है तो वहीं, शुक्ल पक्ष में भगवान शिव की पूजा का विधान है। इसके अलावा, इस माह में मां गंगा की आराधना करना भी शुभ माना गया है।  
Editorial
Updated:- 2025-01-17, 16:29 IST

हिन्दू वर्ष का ग्यारहवां महीना माघ आरंभ हो चुका है। माघ माह के कृष्ण पक्ष में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है तो वहीं, शुक्ल पक्ष में भगवान शिव की पूजा का विधान है। इसके अलावा, इस माह में मां गंगा की आराधना करना भी शुभ माना गया है। ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि इस माह में मां गंगा की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

इसके अलावा, इस माह में गंगा स्नान करते हुए माता की आराधना करने से शुभता का घर में आगमन होता है, लेकिन अगर आप गंगा स्नान नहीं कर पा रहे हैं तो ऐसे में इस माह में घर पर गंगाजल नहाने के पानी में मिलाकर स्नान करें और बस मां गंगा के स्तोत्र का पाठ करें। इससे गंगा स्नान का पुण्य भी प्राप्त होगा और घर में मौजूद नकारात्मकता से मुक्ति भी मिल जाएगी।

गंगा स्तोत्र का पाठ

गांगं वारि मनोहारि मुरारिचरणच्युतम् । त्रिपुरारिशिरश्चारि पापहारि पुनातु माम् ॥

देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे । शङ्करमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥१॥
भागीरथि सुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यातः । नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम् ॥ २॥

magh mah mein ganga stotra ka path karne ki vidhi

हरिपदपाद्यतरङ्गिणि गङ्गे हिमविधुमुक्ताधवलतरङ्गे । दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारम् ॥ ३॥
तव जलममलं येन निपीतं, परमपदं खलु तेन गृहीतम् । मातर्गङ्गे त्वयि यो भक्तः किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः ॥ ४॥

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पतितोद्धारिणि जाह्नवि गङ्गे खण्डितगिरिवरमण्डितभङ्गे । भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये, पतितनिवारिणि त्रिभुवनधन्ये ॥ ५॥
कल्पलतामिव फलदां लोके, प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके । पारावारविहारिणि गङ्गे विमुखयुवतिकृततरलापाङ्गे ॥ ६॥

तव चेन्मातः स्रोतःस्नातः पुनरपि जठरे सोऽपि न जातः । नरकनिवारिणि जाह्नवि गङ्गे कलुषविनाशिनि महिमोत्तुङ्गे ॥ ७॥

magh mah mein ganga stotra ka path karne ke niyam

पुनरसदङ्गे पुण्यतरङ्गे जय जय जाह्नवि करुणापाङ्गे । इन्द्रमुकुटमणिराजितचरणे सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये ॥ ८॥

रोगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमतिकलापम्। त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे॥ ९॥
अलकानन्दे परमानन्दे कुरु करुणामयि कातरवन्द्ये । तव तटनिकटे यस्य निवासः खलु वैकुण्ठे तस्य निवासः ॥ १०॥

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वरमिह नीरे कमठो मीनः किं वा तीरे शरटः क्षीणः । अथवा श्वपचो मलिनो दीनस्तव न हि दूरे नृपतिकुलीनः॥ ११॥
भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये । गङ्गास्तवमिमममलं नित्यं पठति नरो यः स जयति सत्यम् ॥ १२॥

magh mah mein ganga stotra ka path karne ka mahatva

येषां हृदये गङ्गाभक्तिस्तेषां भवति सदा सुखमुक्तिः । मधुराकान्तापज्झटिकाभिः परमानन्दकलितललिताभिः ॥ १३॥
गङ्गास्तोत्रमिदं भवसारं वाञ्छितफलदं विमलं सारम् । शङ्करसेवकशङ्कररचितं पठति सुखी स्तव इति च समाप्तः ॥ १४॥

देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे । शङ्करमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥
श्री शङ्कराचार्य कृतं

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