पितृपक्ष जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहते हैं, हमारे पूर्वजों को याद करने और उनका सम्मान करने का समय है। यह 16 दिनों की एक अवधि होती है जिसमें लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पूजा, तर्पण और पिंडदान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन दिनों में हमारे पितर धरती पर आते हैं और अपने परिवार के सदस्यों से भेंट स्वीकार करते हैं। इस दौरान श्राद्ध करने से पितरों को मुक्ति मिलती है और वे प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। इस समय दान-पुण्य करने और गरीबों को भोजन कराने का विशेष महत्व है क्योंकि ऐसा करने से पितर तृप्त होते हैं और हमारे जीवन से सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। साथ ही, वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें यह भी बताया कि पितृ दोष से मुक्ति के लिए पितृपक्ष से अच्छा अवसर नहीं होता है, ऐसे में पितृ पक्ष के दौरान अगर इस एक स्तोत्र का पाठ किया जाए तो पितरों की नाराजगी दूर होती है और पितृ दोष का दुष्प्रभाव भी घटने लगता है।
उदिताम् अवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः।
असुम् यऽ ईयुर-वृका ॠतज्ञास्ते नो ऽवन्तु पितरो हवेषु॥
अंगिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वनो भृगवः सोम्यासः।
तेषां वयम् सुमतो यज्ञियानाम् अपि भद्रे सौमनसे स्याम्॥
ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो ऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः।
तेभिर यमः सरराणो हवीष्य उशन्न उशद्भिः प्रतिकामम् अत्तु॥
त्वं सोम प्र चिकितो मनीषा त्वं रजिष्ठम् अनु नेषि पंथाम्।
तव प्रणीती पितरो न देवेषु रत्नम् अभजन्त धीराः॥
त्वया हि नः पितरः सोम पूर्वे कर्माणि चक्रुः पवमान धीराः।
वन्वन् अवातः परिधीन् ऽरपोर्णु वीरेभिः अश्वैः मघवा भवा नः॥
त्वं सोम पितृभिः संविदानो ऽनु द्यावा-पृथिवीऽ आ ततन्थ।
तस्मै तऽ इन्दो हविषा विधेम वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥
बर्हिषदः पितरः ऊत्य-र्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम्।
तऽ आगत अवसा शन्तमे नाथा नः शंयोर ऽरपो दधात॥
आहं पितृन्त् सुविदत्रान् ऽअवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः।
बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वः तऽ इहागमिष्ठाः॥
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उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु।
तऽ आ गमन्तु तऽ इह श्रुवन्तु अधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥
आ यन्तु नः पितरः सोम्यासो ऽग्निष्वात्ताः पथिभि-र्देवयानैः।
अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तो ऽधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥
अग्निष्वात्ताः पितर एह गच्छत सदःसदः सदत सु-प्रणीतयः।
अत्ता हवींषि प्रयतानि बर्हिष्य-था रयिम् सर्व-वीरं दधातन॥
येऽ अग्निष्वात्ता येऽ अनग्निष्वात्ता मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते।
तेभ्यः स्वराड-सुनीतिम् एताम् यथा-वशं तन्वं कल्पयाति॥
अग्निष्वात्तान् ॠतुमतो हवामहे नाराशं-से सोमपीथं यऽ आशुः।
ते नो विप्रासः सुहवा भवन्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥
आच्या जानु दक्षिणतो निषद्य इमम् यज्ञम् अभि गृणीत विश्वे।
मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरूषता कराम॥
आसीनासोऽ अरूणीनाम् उपस्थे रयिम् धत्त दाशुषे मर्त्याय।
पुत्रेभ्यः पितरः तस्य वस्वः प्रयच्छत तऽ इह ऊर्जम् दधात॥
पितृ सूक्त का पाठ करने से कई लाभ होते हैं खासकर उन लोगों के लिए जिनके जीवन में पितृ दोष की वजह से समस्याएं आ रही हैं। इस पाठ को करने से पितर प्रसन्न होते हैं और अपनी संतानों को आशीर्वाद देते हैं।
यह माना जाता है कि पितृ सूक्त के नियमित पाठ से घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है। अगर कोई व्यक्ति आर्थिक समस्याओं, नौकरी या विवाह में आ रही बाधाओं से परेशान है तो उसे इस पाठ से बहुत फायदा मिल सकता है।
इसके अलावा, यह पाठ परिवार में आपसी मतभेदों को कम करने और रिश्तों को मजबूत बनाने में भी मदद करता है। यह पितरों की आत्मा को शांति देता है, जिससे परिवार के सदस्यों को उनके कर्मों का शुभ फल प्राप्त होता है।
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पितृ सूक्त का पाठ करते समय कुछ नियमों का पालन करना बहुत जरूरी है ताकि इसका पूरा फल मिल सके। सबसे पहले, पाठ शुरू करने से पहले स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनें। पाठ करने के लिए शांत और शुद्ध जगह चुनें।
पितृ सूक्त का पाठ हमेशा दक्षिण दिशा की ओर मुख करके करना चाहिए, क्योंकि यह दिशा पितरों की मानी जाती है। पाठ करने से पहले पितरों का ध्यान करें और उनसे आशीर्वाद मांगें।
पितृ सूक्त का पाठ ब्रह्म मुहूर्त यानी सूर्योदय से पहले करना सबसे उत्तम माना जाता है, लेकिन आप इसे सुबह के समय भी कर सकते हैं। पाठ करते समय मन को एकाग्र रखें और किसी भी तरह के नकारात्मक विचार मन में न लाएं।
आप भी इस लेख में दी गई जानकारी के माध्यम से यह जान सकते हैं कि आखिर पितृपक्ष में क्यों करना चाहिए पितृ सूक्त का पाठ और क्या हैं इससे मिलने वाले लाभ। अगर हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो वो आप हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
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