पानी की तलाश में पाकिस्तान से भारत आया था यह प्रेमी जोड़ा, आज देश में इश्क की मिसाल बन चुकी है उनकी कहानी

इतिहास में आपने कई प्रेम कहानियों के बारे में पढ़ा होगा, लेकिन आज हम आपको एक ऐसी प्रेम कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें प्रेमी जोड़ा पाकिस्तान से पानी की तलाश में भारत पहुंचा और प्यास ने ही उन दोनों की जान तक ले ली। 
laila majnu couple came from pakistan searching for water now their love story inspires india

कभी-कभी कुछ प्रेम कहानियां केवल कहानियां नहीं होतीं, वह समय की मिट्टी में दबे हुए बीज की तरह होती है, जिन्हें सच के पानी के साथ जब सींचा जाता है, तो वह एक उम्मीद की पेड़ बन जाती हैं। आज ऐसी ही एक सच्ची प्रेम कहानी की हम बात करने वाले हैं, जिसकी जड़ें पाकिस्तान की सरजमी में थीं, लेकिन जिसका अंत हिंदुस्तान के दिल में हुआ। आज भारत में इस प्रेम कहानी के मिशालें दी जाती हैं और यह अमर प्रेम कहानी है लैला-मजनू की।

लैला-मजनू एक अमर प्रेम कहानी

laila majnu love story

माना जाता है कि लैला-मजू की कहानी 11वीं शताब्दी की है, जब भारत-पाकिस्तान में सरहदें नहीं हुआ करती थीं और दोनों एक ही देश थे। पाकिस्तान के सिंध प्रांत में एक मुस्लिम फैमिली में एक लड़के का जन्म हुआ था, जिसका नाम कायस इब्न अल-मुलाव्वाह था, जिसे आज पूरी दुनिया मजनू कहती है। कहा जाता है कि जब मजनू का जन्म हुआ था तो तब भी एक ज्योतिषी ने भविष्यवाणी कर दी थी कि यह बच्चा इश्क में पागल होकर दर-दर भटकेगा। जब मजनू शिक्षा के लिए मदरसा गए, तो वहीं उनकी मुलाकात एक लड़की से हुई थी, जिसका नाम लैला था। लैला दिखने में खूबसूरत और समझदार थी और मजनू उसे देखकर अपना दिल दे बैठा था। मजनू को कविताएं लिखने का शौक था और उनकी हर कविता में लैला का जिक्र होता था।

लैला-मजनू का सफर और अंत

कहा जाता है कि जब मजनू ने लैला के घरवालो से उसका हाथ मांगा था, तो लैला के परिवार वालों ने साफ मना कर दिया। लैला के घरवालों ने जल्दबाजी में उसकी शादी एक अमीर बिजनेसमैन से करवा दी। लेकिन, लैला वहां पर खुश नहीं थी। उसने अपने पति को सारी सच्चाई बता दी कि वह किसी और से मोहब्बत करती है। लैला के पति ने उसे तलाक दे दिया और वापस लैला अपने अब्बू के घर जाकर रहने लगी। जब मजनू को पता चलता कि लैला वापस आ गई है, तो मजून उसको उसको साथ लेकर घर से भाग निकला।

लेकिन, लैला के भाई उनकी जान के दुश्मन बन गए और दोनों की तलाश करने लगे। किसी तरह छिपते छिपाते लैला-मजून रेगिस्तानी रास्तों से गुजरते हुए भारत की सरहद के पास बसे अनूपगढ़(राजस्थान) के बिंजौर गांव पहुंच गए थे। स्थानीय लोगों को कहना है कि लैला-मजनू पानी की तलाश करते-करते यहां पहुंच गए थे। आखिरी बार बिंजौर गांव के पास एक टीले पर बैठकर आखिरी बार लैला-मजनू ने एक-दूसरे का हाथ थामा था। प्यास की वजह से दोनों की मौत हो गई थी, लेकिन आखिरी सांस तक वह एक-दूसरे का साथ थे।

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लैला-मजनू की मजार और मेला

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बिंजौर गांव के लोगों ने जब यह भावुक दृश्य देखा था, तो उनका दिल पसीज गया था। उन्होंने दोनों को एक साथ उसी जगह पर ही दफना दिया था। समय के साथ यह मजार लैला-मजून की मजार कहलाने लगी। कई सालों तक दोनों की मजार रेगिस्तान की रेत में छिपी रही। लेकिन आजादी के बाद 1960 में एक बार फिर लैला-मजनू की कहानी सामने आई। इसके बाद, हर साल 15 जून बिंजौर गांव में एक मेला लगता है, जिसमें देशभर से प्रेमी जोड़े, शादीशुदा कपल्स और युवा लड़के-लड़कियां आते हैं। सभी लोग इस मजार पर चादर चढ़ाते हैं और मन्नत मांगते हैं।

मजनू को कविताएं लिखने का शौक था और उनकी एक कविता है कि मैं उन दीवारों को चूमता रहूंगा, जिनसे होकर लैला गुजरी है, मुझे दीवारों से नहीं, उससे मोहब्बत है जो इन दीवारों के पास से गुजरती है।

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Image Credit - wikipedia, social media
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