प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल में मंत्रिपरिषद में 71 मंत्रियों को शामिल किया गया है। मंत्रालयों के आवंटन के बाद अब लोकसभा के अध्यक्ष (स्पीकर) के पद के लिए संभावित उम्मीदवारों के नाम पर चर्चा हो रही है। एनडीए के सहयोगी दल टीडीपी (तेलुगू देशम पार्टी) इस पद पर अपने नेता को लाने की कोशिश कर रही है और इस संदर्भ में आंध्र प्रदेश की बीजेपी अध्यक्ष और चंद्रबाबू नायडू की साली डी. परमेश्वरी के नाम की चर्चा हो रही है।
लोकसभा स्पीकर (अध्यक्ष) भारतीय संसद की निचली सभा, लोकसभा, का प्रमुख होता है और यह पद बेहद खास और प्रभावशाली होता है। संविधान के अनुच्छेद 93 में स्पीकर और उपसभापति (डिप्टी स्पीकर) के चुनाव को लेकर स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं। स्पीकर के चुनाव की प्रक्रिया और उनके कर्तव्यों और अधिकारों की जानकारी नीचे दी गई है।
नई लोकसभा के गठन के बाद स्पीकर का चुनाव
अनुच्छेद 93 में यह प्रावधान है कि लोकसभा के सदस्यों को अपनी पहली बैठक में या स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के पद खाली होते ही, अपने सदस्यों में से दो सदस्यों को स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के रूप में चुनना होगा। नई लोकसभा के गठन के बाद स्पीकर का चुनाव पहली बैठक के सबसे पहले कार्यों में से एक होता है। यह तय किया जाता है कि लोकसभा की कार्यवाही को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए स्पीकर का चयन तुरंत हो।
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संसद में स्पीकर का पद पावरफुल और खास होता है। स्पीकर के पास कई अधिकार और शक्तियां होती हैं, जो लोकसभा की कार्यवाही को सुचारू और निष्पक्ष रूप से संचालित करने में सहायक होती हैं। इसके अलावा, स्पीकर की भूमिका अल्पमत सरकार की स्थिति में और भी खास हो जाती है।
लोकसभा स्पीकर का चुनाव
स्पीकर का चुनाव लोकसभा के सदस्यों द्वारा किया जाता है। चुनाव के लिए किसी सदस्य को प्रस्तावित और समर्थित किया जाना चाहिए। यह प्रस्ताव एक समिति द्वारा प्रस्तुत किया जाता है जिसमें अलग-अलग राजनीतिक दलों के सदस्य शामिल होते हैं। अगर एक से अधिक उम्मीदवार हैं, तो चुनाव के लिए मतदान होता है। मतदान की प्रक्रिया गुप्त होती है और साधारण बहुमत के आधार पर निर्णय लिया जाता है। कई बार स्पीकर का चुनाव निर्विरोध होता है, खासकर जब सत्ताधारी दल और विपक्ष में सर्वसम्मति होती है। स्पीकर बनने के लिए उम्मीदवार का लोकसभा का सदस्य होना आवश्यक है।
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स्पीकर की भूमिका
स्पीकर लोकसभा की बैठकों का संचालन करते हैं और यह तय करते हैं कि सदन की कार्यवाही सुचारू और नियमों के अनुसार चले। वह बहस के दौरान बोलने की अनुमति देते हैं और समय का प्रबंधन करते हैं। स्पीकर सदन के नियमों और प्रक्रियाओं का पालन करते हैं और उन्हें लागू करते हैं। वह किसी सदस्य को अनुशासनहीनता के लिए सदन से निलंबित भी कर सकते हैं।
स्पीकर का पद तटस्थ माना जाता है। उन्हें अपनी पार्टी से अलग होकर निष्पक्षता से कार्य करना होता है। सदन में मतदान के समय, स्पीकर आमतौर पर मतदान में भाग नहीं लेते हैं, लेकिन अगर टाई हो जाता है तो उनका निर्णायक मत होता है। स्पीकर को कई कानूनी अधिकार प्राप्त होते हैं, जैसे विधेयकों को चर्चा के लिए प्रस्तुत करना, प्रश्नों का उत्तर देना आदि। वह संसद की अलग-अलग समितियों का गठन और सदस्यों का चयन भी करते हैं। स्पीकर लोकसभा का प्रतिनिधित्व कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर करते हैं। वह सदन के सभी सदस्य के हितों की रक्षा करते हैं और उनके अधिकारों का पालन करते हैं।
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