हमारे देश में सभी त्योहारों का अपना अलग महत्व है। जहां एक तरफ होली दिवाली मुख्य त्योहारों के रूप में पूरे देश में समान रूप से मनाए जाते हैं वहीं कुछ ऐसे भी त्योहार हैं जो भारत के कुछ ही क्षेत्रों में बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं। इन्हीं त्योहारों में से एक है गुड़ी पड़वा। यह मुख्य रूप से महाराष्ट्र में मनाया जाता है इसे संवत्सर पड़वो भी कहा जाता है। गुड़ी पड़वा मुख्य रूप से चैत्र महीने की नवरात्रि तिथि की प्रतिपदा के दिन मनाया जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार नव वर्ष की शुरुआत भी इसी दिन होती है। इस साल गुड़ी पड़वा 2 अप्रैल, शनिवार के दिन मनाया जाएगा और इसी दिन से चैत्र नवरात्रि का आरम्भ भी होगा।
गुड़ी पड़वा मुख्य रूप से मराठी समुदाय में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व को भारत के अलग -अलग स्थानों में अलग नामों से जाना जाता है। भारत के अलग-अलग प्रदेशों में इसे उगादी, छेती चांद और युगादी जैसे कई नामों से जाना जाता है। इस दिन, घरों को स्वस्तिक से सजाया जाता है, जो हिंदू धर्म में सबसे शक्तिशाली प्रतीकों में से एक है। यह स्वास्तिक हल्दी और सिंदूर से बनाया जाता है। इस दिन महिलाएं प्रवेश द्वार को कई अन्य तरीकों से सजाती हैं और रंगोली बनाती हैं। ऐसा माना जाता है कि घर में रंगोली नकारात्मकता को दूर करती है। आइए ज्योतिषाचार्य डॉ आरती दहिया जी से जानें गुड़ी पड़वा के इतिहास और इससे जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में।
गुड़ी पड़वा का महत्व
गुड़ी पड़वा को अलग-अलग जगहों पर अलग रूपों में चिन्हित किया गया है। कई जगह इसे नए साल की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है और इसे ऐसा माना जाता है कि इसी दिन सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने ब्रह्मांड की रचना की थी। एक मान्यता के अनुसार सतयुग की शुरुआत भी इसी दिन से हुई थी। वहीं महाराष्ट्र में इसे मनाने का कारण मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज की युद्ध में विजय से है। ऐसा माना जाता है कि उनके युद्ध में विजयी होने के बाद से ही गुड़ी पड़वा का त्योहार मनाया जाने लगा। गुड़ी पड़वा को रबी की फसलों की कटाई का प्रतीक भी माना जाता है।
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गुड़ी पड़वा का अर्थ
गुड़ी पड़वा नाम दो शब्दों से बना है- 'गुड़ी', जिसका अर्थ है भगवान ब्रह्मा का ध्वज या प्रतीक और 'पड़वा' जिसका अर्थ है चंद्रमा के चरण का पहला दिन। इस त्योहार के बाद रबी की फसल काटी जाती है क्योंकि यह वसंत ऋतु के आगमन का भी प्रतीक है। गुड़ी पड़वा में ‘गुड़ी’ शब्द का एक अर्थ ‘विजय पताका’ से भी है और पड़वा का अर्थ प्रतिपदा तिथि है। यह त्यौहार चैत्र (चैत्र अमावस्या की तिथि) शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि मनाया जाता है और इस मौके पर विजय के प्रतीक के रूप में गुड़ी सजाई जाती है। ज्योतिष की मानें तो इस दिन अपने घर को सजाने और गुड़ी फहराने से घर में सुख समृद्धि आती है और पूरे साल खुशहाली बनी रहती है। यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक भी माना जाता है।
गुड़ी पड़वा का इतिहास
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि गुड़ी पड़वा के दिन भगवान ब्रह्मा ने ब्रह्मांड की रचना की थी। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि इस दिन ब्रह्मा जी ने दिन, सप्ताह, महीने और वर्षों का परिचय दिया था। उगादि को सृष्टि की रचना का पहला दिन माना जाता है और इसी वजह से गुड़ी पड़वा पर भगवान ब्रह्मा की पूजा करने का विधान है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि इसी दिन भगवान श्री राम विजय प्राप्त करके वापस अयोध्या लौटे थे। इसलिए यह विजय पर्व का प्रतीक भी है।
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कैसे मनाया जाता है गुड़ी पड़वा
गुड़ी पड़वा के दिन इस दिन लोग घरों की साफ-सफाई करते हैं और घर के मुख्य द्वार पर रंगोली बनाते हैं। इस दिन मुख्य द्वार पर आम के पत्तों से बना हुआ बंधनवार भी लगाया जाता है। इस ख़ास दिन में महिलाएं अपने घर के बाहर गुड़ी लगाती हैं। ऐसी मान्यता है कि गुड़ी की पूजा करने से घर में सुख समृद्धि आती है। इस दिन कई अलग तरह के पकवान बनाने का विधान है लेकिन मुख्य रूप से इस दिन महाराष्ट्रियन व्यंजन पूरन पोली (पूरन पोली रेसिपी)बनाई जाती है जिसे पूरा परिवार मिलजुलकर खाता है। कुछ जगहों में गुड़ी पड़वा के दिन नीम की पत्तियों को खाने की परंपरा भी है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन नीम की पत्तियों का सेवन करने से कई बीमारियों से मुक्ति मिलती है।
इस प्रकार मराठी समुदाय ही नहीं बल्कि दुनिया के अलग स्थानों में यह पर्व बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है और मिलजुलकर लोग नए साल का स्वागत करते हैं। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व ज्योतिष से जुड़े इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।
Image Credit: freepik
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