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कोहिनूर हीरा असल में किसका था और यह भारत से बाहर कैसे गया? जानिए इसकी रोचक कहानी

जब दुनिया के सबसे बेशकीमती हीरों की बात आती है, तो कोहिनूर का नाम भी शामिल होता है। कोहिनूर को लेकर अभी भी विवाद बना हुआ है और भारत समेत कई देश इसके लेकर दावा कर रहे हैं। 
Editorial
Updated:- 2025-03-17, 15:19 IST

दुनिया के सबसे मशहूर और विवादित रत्नों में से एक कोहिनूर हीरा भी है, जो अपने भव्य आकार, अद्वितीय चमक और विवादास्पद अतीत के कारण सदियों से चर्चा का विषय बना रहा है। इस बेशकीमती हीरे ने कई राजवंशों का उत्थान-पतन देखा और इसे पाने के लिए युद्ध भी लड़े गए हैं। कोहिनूर को सत्ता और शक्ति का प्रतीक माना जाता था और यही कारण है कि इसे बार-बार लूटा गया। आज, कोहिनूर हीरा ब्रिटेन की महारानी के राजमुकुट का हिस्सा है, लेकिन इसके स्वामित्व को लेकर विवाद अभी भी बरकरार है। भारत, पाकिस्तान, ईरान और अफगानिस्तान जैसे कई देश इस रत्न पर अपना दावा जताते हैं, जबकि ब्रिटेन इसे कानूनी रूप से अपने अधिकार में होने का तर्क देता है। आज हम इस आर्टिकल में काहिनूर के असली मालिक और कैसे यह ब्रिटेन तक पहुंचा, इस बारे में बताने वाले हैं। 

कोहिनूर पर पहली बार किसका अधिकार था?

कोहिनूर फारसी भाषा का शब्द है जिसका मतलब प्रकाश का पर्वत होता है। इसकी सटीक उत्पत्ति के कोई ठोक सबूत नहीं है, लेकिन इतिहासकारों का मानना है कि यह हीरा भारत के आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले की कोल्लूर खदान में मिला था। यह खदान मध्यकालीन भारत की सबसे समृद्ध हीरा खदानों में से एक थी। काकतीय राजवंश (1175-1325) के शासनकाल में, यह हीरा संभवतः एक हिंदू देवी की मूर्ति में स्थापित किया गया था। कुछ विद्वानों के अनुसार, इसे भगवान विष्णु या शिव की मूर्ति की आंख के रूप में सजाया गया था।

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खिलजी वंश का आक्रमण और कोहिनूर की लूट

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इतिहासकारों के मुताबिक, 1310 में दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी सेना के साथ मिलकर काकतीय साम्राज्य पर हमला किया था। इस हमले में खिलजी की सेना ने सबकुछ लूट लिया था और माना जाता है कि कोहिनूर हीरा भी उन्होंने अपने कब्जे में कर लिया था। कोहिनूर को लेकर दिल्ली चले गए थे। 

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मुगल साम्राज्य में कोहिनूर

मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर ने अपने संस्मरणों में चमकदार हीरे का उल्लेख किया है, जिसे इतिहासकार कोहिनूर मानते हैं। मुगलकाल के दौरान कोहिनूर को मुगलों ने राजकीय खजाने का हिस्सा बना लिया था। 

शाहजहां और मयूर सिंहासन

अपने शासनकाल में शाहजहां ने कोहिनूर हीरे को अपने भव्य मयूर सिंहासन में जड़वा दिया था। यह सिंहासन मुगल दरबार के शान और शक्ति का प्रतीक माना जाता था। 

नादिर शाह का आक्रमण 

करीब 200 सालों तक मुगलों ने कोहिनूर को अपने पास रखा था, लेकिन 1739 में फारसी शासक नादिर शाह ने भारत पर आक्रमण कर दिया और उसने दिल्ली की सत्ता पर कब्जा कर लिया था। उसने मुगल खजाने को लूट लिया था, जिसमें मयूर सिंहासन भी शामिल था। पहली बार जब नादिर शाह ने इस बेशकीमती हीरे को देखा, तो उसकी चमक से हैरान रह गया था। उसने इसे कोह-ए-नूर कहा था। 

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अफगान शासकों के हाथों में कोहिनूर

1747 में नादिर शाह की हत्या कर दी गई थी और कोहिनूर उनके उत्तराधिकारी अहमद शाह अब्दाली के पास चला गया, जो आधुनिक अफगानिस्तान के संस्थापक माने जाते हैं। बाद में, यह हीरा अफगान शासकों के बीच हस्तांतरित होता रहा। 

कोहिनूर हीरा भारत वापस आया 

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18वीं सदी के अंत तक, भारत में महाराजा रणजीत सिंह का राज्य था और 1813 में अफगान शासक शाह शुजा दुर्रानी अफगानिस्तान से सत्ता खोने के बाद भारत के पंजाब में आकर बस गया था। शाह शुजा को महाराजा रणजीत सिंह का समर्थन चाहिए था, इसलिए उसने कोहिनूर हीरा महाराज को सौंप दिया था। 

महाराज रणजीत सिंह ने अंतिम इच्छा जताते हुए कहा था कि उनकी मृत्यु के बाद यह हीरा ओडिशा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर को दान कर दिया जाए। लेकिन, उनकी यह आखिरी इच्छा पूरी नहीं हो सकी और कोहिनूर हीरा सिख साम्राज्य के खजाने में ही रहा।

कैसे कोहिनूर भारत से बाहर गया?

1839 में महाराज रणजीत सिंह की मृ्त्यु के बाद, सिख साम्राज्य कमजोर होने लगा। इसके बाद गद्दी पर खड़क सिंह बैठे, लेकिन ज्यादा दिनों तक शासन नहीं कर सके। 11 महीने बाद, उनकी अचानक मृत्यु हो गई। इसके बाद, उनके बेटे नौ निहाल सिंह ने सत्ता संभाली, लेकिन पिता के अंतिम संस्कार के कुछ ही घंटों के बाद उनकी भी मृत्यु हो गई। फिर, शेर सिंह को सत्ता सौंपी गई और उन्हें भी गोली मार दी गई।

1843 में, रणजीत सिंह के सबसे छोटे बेटे, दुलीप सिंह को केवल 5 साल की उम्र में राजा बनाया गया। उस समय उनकी मां जिंद कौर राज्य के सभी फैसले लेती थीं। सिख साम्राज्य में राजनीतिक अस्थिरता कारण, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने 2 एंग्लो-सिख युद्धों के बाद 1849 में पंजाब पर पूरी तरह कब्जा कर लिया। 29 मार्च 1849 को लाहौर संधि के तहत, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने कोहिनूर हीरा कब्जे में कर लिया और इसे ब्रिटेन की महारानी विक्टोरियो को गिफ्ट कर दिया। कई इतिहासकार मानते हैं कि कोहिनूर हीरे को जबरदस्ती छीना गया था। 

कोहिनूर की इंग्लैंड यात्रा

1850 में कोहिनूर को इंग्लैंड भेजा गया था, जहां महारानी विक्टोरिया को सौंप दिया गया था। हालांकि, महारानी को हीरे में चमक कम लग रही थी। हीरे की चमक को बढ़ाने के लिए इसे 186 कैरेट से घटाकर 105.6 कैरेट कर दिया गया था। कटाई के बाद हीरा चमकने लगा, लेकिन असली कोहिनूर हीरे की पहचान कम हो गई। 

ब्रिटिश क्राउन का हिस्सा

वर्तमान में कोहिनूर डायमंड ब्रिटेन के शाही मुकुट में जड़ा हुआ है और इसे लंदन के टावर में प्रदर्शित किया जाता है। इस हीरे को क्वीन एलेक्जेंड्रा, क्वीन मैरी और क्वीन मदर जैसी कई ब्रिटिश रानियों द्वारा पहना जा चुका है। ब्रिटिश शाही परिवार दावा करता है कि कोहिनूर को कानूनी रूप से पाया गया था, लेकिन इतिहास के मुताबिक, कोहिनूर को लेकर लूट और संघर्ष हुआ था। आज भारत समेत कई देश इस हीरे की वापसी की मांग कर रहे हैं, लेकिन ब्रिटिश सरकार ऐतिहासिक समझौते का हवाला देते हुए इसे लौटाने से इनकार कर रही है।

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