महिलाओं की वफा पर क्‍यों उठ रहे हैं सवाल? शादी को लेकर सोशल मीडिया पर बन रहा मजाक समाज की किस सोच की ओर कर रहा है इशारा?

आज अगर कुछ महिलाओं के अपराध सामने आते हैं, तो क्या इसके आधार पर पूरी महिला जाति को कठघरे में खड़ा करना सही है? कुछ मामलों को देखकर सोशल मीडिया पर महिलाओं से शादी को लेकर जो मजाक और ताने चल रहे हैं, वे समाज की सोच पर कई गंभीर सवाल खड़े करते हैं।
delhi crime news women killed his husband and dump body in uttarakhand kotdwar

जब हम किसी औरत की कल्पना करते हैं, तो हमारे मन में ममता की मूरत, मासूम चेहरा और सादगी से भरी एक शांत छवि उभरती है। लेकिन आजकल जो खबरें सुर्खियों में छाई हुई हैं, उससे कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। कुछ चौंकाने वाले मामलों से ऐसा लग रहा है जैसे यह छवी बदल गई है। आज के समय में समाज में महिलाओं की जो तस्वीर बन रही है, वह चिंता का विषय है। कुछ हालिया घटनाओं के आधार पर यह धारणा बनाई जा रही है कि अब महिलाएं पुरुषों पर अत्याचार कर रही हैं। लेकिन क्या कुछ घटनाओं से महिलाओं पर इस तरह के सवाल उठाना ठीक है।

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि महिलाओं द्वारा, पुरुषों पर किए जा रहे अत्याचार की घटनाएं पूरी तरह से गलत हैं। लेकिन चंद मामलों के लिए पूरी महिला समाज पर मजाक बनाना भी ठीक नहीं समझा जाना चाहिए। एक तरफ जहां समाज में महिलाओं को लेकर अत्याचार की घटनाएं हो रही हैं, तो वहीं दूसरी तरफ महिला द्वारा अपने पति की हत्या करने जैसे क्राइम भी देखने को मिल रहे हैं।

इस समय समाज में सबसे ज्यादा जिस पर निशाना साधा जा रहा है, वह है शादी का रिश्ता। कुछ मामलों के आधार पर यह कहा जा रहा है कि अब महिलाएं इस रिश्ते का गलत फायदा उठा रही हैं और पुरुषों पर अत्याचार कर रही हैं। लेकिन एक सवाल यहां जरूरी है, यह सवाल पहले क्यों नहीं उठा, जब वर्षों तक महिलाएं शादी के नाम पर शोषण झेलती रहीं? आज भी महिलाओं के साथ ऐसे अत्याचार होते हैं, लेकिन यह मुद्दे बस 2 दिन के लिए उठाए जाते हैं, लेकिन फिर मामला दब जाता है। लेकिन क्या कुछ महिलाओं के अपराध पूरे महिला समाज की छवि को बिगाड़ने के लिए काफी हैं?

उत्तराखंड के कोटद्वार में क्या हुआ?

दरअसल, एक बार फिर एक और राजा रघुवंशी कांड जैसी घटना ने इस मुद्दे को और भी गहन सोच में डाल दिया है। मामला उत्तराखंड के कोटद्वार का है, जहां 5 जून को पहाड़ियों में एक लावारिस शव मिला। जब इस मामले की गहन जांच हुई, तो पता चला कि पत्नी ने प्रेमी संग मिलकर अपने पति को मौत के घाट उतार दिया। जिस पत्नी के साथ रविंद्र ने दूसरी शादी करके घर बसाया था, वही अब इस खौफनाक प्लान की मास्टरमाइंड निकली थी। रीना नां की महिला ने केवल अपने पति को मारा ही नहीं था, बल्कि वह उसका शव लेकर जगह-जगह घूमती रही थी। इसके बाद उसने उत्तराखंड के कोटद्वार में अपने पति का शव फेंका और वहां से वापस आ गई।

रिपोर्ट्स के अनुसार दिल्ली के रहने वाले रविंद्र के पास करोड़ों की प्रॉपर्टी थी। लेकिन पिछले कुछ सालों पहले इसने अपना दिल्ली का घर बेचकर मुरादाबाद में आलीशान मकान खड़ा किया। उसकी दूसरी पत्नी रीना फिजियोथेरेपिस्ट थी और उसी घर में एक दुकान खोलकर अपना खुद का बिजनेस चला रही थी। फिजियोथेरेपी सेंटर खोलने के बाद उसकी मुलाकात परितोष सेहुई। अपने ही पेशेंट पर रीना का दिल आ गया और दोनों ने मिलकर रविंद्र को मौत के घाट उतार दिया। रीना और परितोष के बीच संबंध गहरे हो गए थे और कुछ ही महीनों में रविंद्र को रास्ते से हटाने की योजना बना डाली थी।

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रविंद्र को मारने के बाद दोनों उसका शव उत्तराखंड के कोटद्वार में फेंक आए और नोएडा में आकर गाड़ी छोड़ दी। लेकिन पुलिस ने सीसीटीवी की मदद से दोनों आरोपियों को पता लगा लिया और उन्हें हिरासत में ले लिया। इसके पहले सोनम और राजा रघुवंशी केस ने भी सोशल मीडिया पर खूब सुर्खियां बटोरी थीं। एक महिला द्वारा अपने प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या करने की खबर को लेकर सोशल मीडिया पर तरह-तरह के मजाक और मीम्स बनाए गए। लेकिन क्या ऐसे मामलों की वजह से हर महिला के चरित्र पर सवाल उठाना सही है?

क्या इन घटनाओं को महिलाओं की स्वतंत्रता से जोड़कर देखना सही है?

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लोग इस तरह की घटनाओं को महिलाओं की स्वतंत्रता से जोड़कर देखने लगे हैं- जैसे महिला को आजादी देना ही अपराध हो गया हो। महिलाओं द्वारा किए जा रहे अपराध पूरी तरह से गलत हैं। लेकिन आज भी हो रहे महिला प्रताड़न जैसे दहेज के लिए हत्या, घरेलू हिंसा और मानसिक प्रताड़ना जैसे अत्याचार हो रहे हैं। ऐसे में इस गंभीर मामले को मजाक बनाकर देखना भी गलत है। सवाल बहुत हैं, लेकिन जवाब कोई नहीं देता। क्योंकि यह सोच ही कुछ ऐसी है, जिसे बदलना इतना आसान नहीं। कोई भीमहिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधको पुरुषों के प्रति होने वाले अपराध के बराबर नहीं मान सकता, लेकिन हां इसे आज के समय में मजाक बनाकर जरूर देखा जा रहा है।

मानवीय संवेदनाओं को तार-तार करने वाले किसी भी मुद्दे को HerZindagi कभी स्वीकार नहीं करता। चाहे अपराध किसी के साथ भी हो- पुरुष, महिला, बच्चा या बुजुर्ग- अपराध, अपराध होता है। उसे किसी के जेंडर के आधार पर हल्का या गंभीर नहीं समझा जा सकता। लेकिन दुख की बात यह है कि जब भी कोई गंभीर मामला सामने आता है, महिलाएं सबसे पहले निशाने पर आ जाती हैं। समाज का एक बड़ा हिस्सा क्राइम पर बात करने की बजाय महिला की भूमिका पर सवाल उठाने लगता है।

जो चीज़ें आजकल सोशल मीडिया पर चल रही हैं, अगर हम उनका सकारात्मक पहलू देखें, तो एक उम्मीद दिखाई देती है कि जितना इन मुद्दों को प्रमोट किया जा रहा है, शायद उसी का असर हो कि भविष्य में इस तरह की घटनाएं रुक जाएं, थम जाएं। लेकिन सवाल यह भी उठता है कि जब किसी महिला को जिंदा जलाया जाता है, जब वह दहेज या घरेलू हिंसा की शिकार होती है, तब सोशल मीडिया पर ऐसे मीम्स, मजाक या जोरदार विरोध क्यों नहीं दिखता? तब क्यों समाज इस तरह एकजुट होकर न्याय की मांग नहीं करता? इस तरह की घटनाओं को लेकर चाहे पुरुष हों या महिलाएं, विरोध होना चाहिए। समाज को समझना होगा कि किसी के दर्द पर मीम्स बनाना, पूरे मुद्दे की गंभीरता को हल्का कर देता है।

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image credit- freepik

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