तमिलनाडु एक ऐसा राज्य है, जो अपनी आध्यात्मिकता और प्राचीन मंदिरों के लिए जाना जाता है। इस राज्य के तटीय शहर महाबलीपुरम में एक बेहद ही अनोखा शोर मंदिर स्थित है। यह एक ऐसा मंदिर है, जिसे प्राचीन भारतीय वास्तुकला के बेहतरीन नमूने के रूप में जाना जाता है। यह मंदिर द्रविड़ वास्तुकला के सबसे पुराने उदाहरणों में से एक है और इसे यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट के रूप में जाना जाता है।
यह एक ऐसा मंदिर है, जिसमें भगवान शिव को समर्पित दो मंदिर और भगवान विष्णु को समर्पित एक मंदिर है। मंदिर की कलात्मकता से लेकर इसका ऐतिहासिक महत्व इसे घूमने लायक बेहतरीन मंदिरों में से एक बनाता है। इसके अलावा भी इस मंदिर से जुड़ी ऐसी कई बातें हैं, जो हर किसी को जाननी चाहिए। जब आप इस मंदिर के बारे में और ज्यादा जानते चले जाते हैं, तो आपकी यहां आने की इच्छा और भी ज्यादा प्रबल होती चली जाती है। तो चलिए आज इस लेख में हम आपको महाबलीपुरम में स्थित शोर मंदिर से जुड़ी कुछ बेहद ही अमेजिंग बातों के बारे में बता रहे हैं-
अगर आप प्राचीन वास्तुकला को करीब से देखना चाहते हैं तो आपको शोर मंदिर जरूर देखना चाहिए। यह अपनी द्रविड़ आर्किटेक्चर स्टाइल के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर अपनी जटिल नक्काशी और विशेष पिरामिड संरचना के लिए जाना जाता है। मंदिर की जटिल नक्काशी पल्लव बिल्डरों की बेहतरीन शिल्प कौशल का प्रमाण है। यह महाबलीपुरम के स्मारकों के समूह का एक हिस्सा है, जो यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट है। इस मंदिर का निर्माण ग्रेनाइट से किया गया है।
शोर मंदिर का अपना एक अलग ऐतिहासिक महत्व भी है। इस मंदिर का निर्माण 7वीं शताब्दी ई. में पल्लव राजवंश के शासनकाल के दौरान हुआा था। इस मंदिर की सबसे विशेष बात यह है कि यह दक्षिण भारत के सबसे पुराने संरचनात्मक मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण राजा नरसिंहवर्मन द्वितीय ने करवाया था, जिन्हें राजसिंह के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर को साल 1984 में यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया गया था।
शोर मंदिर की एक विशिष्ट बात यह है कि इस मंदिर परिसर में तीन मंदिर हैं, जिसमें दो मंदिर शिव को और एक भगवान विष्णु को समर्पित है। एक ही मंदिर परिसर में इस तरह की त्रिपक्षीय व्यवस्था असामान्य है और यह इस क्षेत्र में धार्मिक प्रथाओं के मिश्रण को दर्शाती है। मंदिरों में एक पिरामिडनुमा संरचना है जिसमें एक मीनार जैसा शिखर है। केंद्रीय मंदिर में एक विशाल शिवलिंग है, जबकि छोटे मंदिर अन्य देवताओं को समर्पित हैं।
भारत के अलग-अलग मंदिरों के नाम उस मंदिर में पूजे जाने वाले इष्ट के नाम पर रखे जाते हैं, लेकिन शोर मंदिर का नाम बेहद ही विशिष्ट है और इसके पीछे एक खास वजह है। दरअसल, मंदिर का नाम बंगाल की खाड़ी के निकट होने के कारण रखा गया है। यह मंदिर सदियों से समुद्री हवाओं और लहरों के कारण क्षरण का शिकार रहा है। लेकिन फिर भी इस मंदिर को अपेक्षाकृत अच्छी तरह से संरक्षित किया गया है। जिसकी वजह से बड़ी संख्या में टूरिस्ट यहां पर आते हैं।
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Image Credit- travelure,tamilnadutourism, wikimedia
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