अपनी दादी-नानी से आपने बाल विवाह की कहानियां खूब सुनी होंगी। अखबारों और टीवी में भी बाल विवाह से जुड़ी कई घटनाओं के बारे देखा सुना होगा। मगर बिहार राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री रहीं और देश की बड़ी राजनीतिक पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की पत्नी राबड़ी देवी ने इस प्रथा को असल जीवन में जिया है। आज राबड़ी और लालू प्रसाद यादव की शादी की 45 सालगिरह के मौके पर राबड़ी देवी के त्याग, समर्पण और पति लालू के साथ उनके सुखमय जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में आज हम बात करेंगे।
अरेंज मैरिज होने के बाद भी आईं कई मुश्किलें
राबड़ी देवी का जन्म 1956 में हुआ था। 14 वर्ष की उम्र में राबड़ी के पिता को उनकी शादी की चिंता सताने लगी थी। उस जमाने में बाल विवाह का प्रचन था। आर्थिक रूप से समर्थ राबड़ी देवी के परिवार को अपनी लाडली बेटी के लिए एक ऐसे घर की तलाश थी जहां उसे पूरी सुख सुविधा मिले। मगर राबड़ी के पिता के विचार इस मामले में अलग थे। उन्हें राबड़ी के लिए 25 वर्ष के नौजवान लालू प्रसाद यादव पसंद आए। उम्र में 11 वर्ष का फासला जान कर राबड़ी के घरवाले इस शादी के लिए तैयार नहीं हुए। राबड़ी के रिश्तेदारों ने तो यह तक कह दिया कि बेटी कभी सुखी नहीं रहेगी। मगर राबड़ी के पिता अपने फैसले पर अटल थे।
पिता के कहने पर की थी शादी
लालू प्रसाद यादव के घर की आर्थिक स्थिति राबड़ी के घर से काफी खराब थी। मगर इसके बावजूद राबड़ी के पिता उन्हें से बेटी की शादी करना चाहते थे। बात दरअसल यह थी कि उस जमाने में ज्यादा पढ़े लिखे लड़के नहीं मिलते थे। लड़कियों तो पढ़ाने का रिवाज ही नहीं थी। ऐसे में राबड़ी के पिता चाहते थे कि राबड़ी की शादी ऐसे लड़के से हो जो पढ़ा लिखा समझदार हो और लालू प्रसाद यादव में उन्हें यह सारे गुण दिखाई दिए।
राबड़ी ने किए कई एडजस्टमेंट
पक्की ईटों के मकान में रहने वाली की शादी लालू प्रसाद यादव से 1 जून 1973 में हुई थी, बहु बन कर जब राबड़ी ने लालू के घर कदम रखा तो फूस की झोपड़ी देख वह घबरा गईं कि कैसे जिंदगी भर रह पाएंगी। मगर पिता की दी सीख और उनके दिए संस्कारों ने राबड़ी को उस घर में एडजस्टमेंट करने की ताकत दी। मगर एडजस्टमेंट की कहानी यहीं समाप्त नहीं हुई। पति का झुकाव राजनीति में देख राबड़ी को एक बार फिर डर लगा मगर लालू प्रसाद के साथ कदम से कदम मिला कर चलना और बुरे वक्त में भी साहस से आगे बढ़ना राबड़ी ने कभी नहीं छोड़ा।
लालू के लिए लकी रहीं राबड़ी
राबड़ी दवी हमेशा लालू के लिए लकी रहीं। राबड़ी से नाता जुड़ते ही लालू को पहली सफलता के रूप में पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के चुनाव में जीत मिली और उन्हें अध्यक्ष चुन लिया गया। छात्र राजनीति के जरिए ही लालू प्रसाद लोक नायक जयप्रकाश नारायण के संपर्क में आए। एमरजेंसी के जमाने में इंदिरा गांधी के विरोध में वह भी शामिल हुए। जयप्रकाश नारायण के कहने पर ही लालू ने जनता पार्टी ज्वाइन की थी। 1977 में महज 29 साल की आयु में लालू सांसद चुने गए। इन सब घटनाओं के दौरान अगर कोई उनके साथ था तो वो राबड़ी देवी थीं। राबड़ी ने लालू को हमेशा परिवार की जिम्मेदारियों के बोझ से आजाद रखा और केवल राजनीति में दिल लगाने को कहा। लालू ने भी राबड़ी का खूब सम्मान किया और हर स्पीच हर इंटरव्यू में राबड़ी को अपना सच्च साथी बताया।
घर के साथ राज्य की जिम्मेदारी भी संभाली
जुलाई 1997 में सीबीआई द्वारा चारा घोटाले में लालू प्रसाद यादव के खिलाफ जब चार्जशीट दायर की गई तो लालू प्रसाद यादव ने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा। इस मुश्किल घड़ी में राबड़ी ने लालू की कुर्सी संभाली और बिहार की पहली महिला मुख्यमंत्री की शपथ ली। इस वक्त राबड़ी ने घर, बच्चों और खुद अपने को भी संभाला और साथ में राज्य की प्रजा को भी नजरअंदाज नहीं किया।
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