जरा इमैजिन कीजिए, आपने ऑनलाइन कोई शानदार सा कुर्ता या ड्रेस ऑर्डर की है और धीरे-धीरे उसकी डिलीवरी डेट नजदीक आ रही है। मन में वो सुगबुगाहट हो रही है। आखिर में आपके पास वो कपड़ा आ जाता है और पैकेट खोलते ही जो खुशी महसूस होती है उसकी तो बात ही अलग है। इस दौरान कपड़ा ट्राई करते समय आपको कुछ ऐसा दिखता है जिससे आपकी खुशी दोगुनी हो जाती है। कपड़ा तो परफेक्ट फिट है ही, लेकिन उसके साथ ही पॉकेट्स भी दी गई हैं। कैसा लगा ये ख्याल जहां आपके फेवरेट कपड़े में पॉकेट आ गई है?
इस कहानी से शुरुआत इसलिए थी क्योंकि महिलाओं के कपड़ों में पॉकेट की जरूरत को अभी तक नजरअंदाज ही किया गया है और जब भी कोई ऐसा कपड़ा हमारे हाथ लग जाता है जिसमें पॉकेट हों (नाम मात्र के पॉकेट नहीं बल्कि वाकई फंक्शनल पॉकेट्स जिसमें आप सामान रख पाएं) तो यकीनन बहुत अच्छा लगता है। कहने को तो ड्रेस, कुर्ते, जीन्स आदि में हमारे लिए पॉकेट्स आने लगे हैं, लेकिन या तो वो इतने छोटे होते हैं कि उनका होना और न होना बराबर है या फिर वो इतने पतले कपड़े के बने होते हैं कि लगे जैसे सारी कंजूसी इसी जगह पर कर ली गई है।
फंक्शनल पॉकेट्स का होना हमारे लिए किसी वरदान से कम नहीं होता है और शर्ट्स, जीन्स, कुर्ते, ड्रेसेज सभी में पॉकेट्स को लेकर हम थोड़ा तरसते हैं।
इसके कई कारण हैं और कुछ कारणों से तो हम सहमत भी हो सकते हैं। सबसे पहला कारण है महिलाओं और पुरुषों के शरीर की बनावट में अंतर। दरअसल, फ्रंट पॉकेट्स में पुरुष अधिकतर कागज और पेन आदि रखते हैं और उनके पॉकेट्स थोड़े फूल जाते हैं। ऐसे में महिलाओं के साथ अगर यही हो तो अचानक ही लोगों का ध्यान उनके ब्रेस्ट्स की तरफ जा सकता है। वैसे ऐसा होना तो नहीं चाहिए, लेकिन इसी कारण को सबसे अहम माना जाता है महिलाओं की शर्ट्स में पॉकेट्स न होने के लिए। जिनकी शर्ट में पॉकेट्स होती भी हैं उन्हें भी सिर्फ नाम के लिए ही रखा जाता है।
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फैशन डिजाइनर्स ने कई बार पॉकेट वाली शर्ट्स को मार्केट में उतारा है, लेकिन पेरिस फैशन वीक से लेकर सरोजनी नगर के मार्केट तक महिलाओं के फ्रंट पॉकेट्स का इस्तेमाल ज्यादा नहीं हो पाता है।
दूसरा कारण ये है कि महिलाओं को बहुत सारा सामान अपने साथ ले जाने की आदत होती है और ऐसे में फ्रंट पॉकेट्स काफी नहीं होंगे। ऐसे में महिलाओं के शर्ट्स में या तो छोटे पॉकेट्स दिए जाते हैं या फिर नहीं दिए जाते।
तीसरे कारण को हम विक्टोरियन जमाने से जोड़ सकते हैं। विक्टोरियन जमाने में महिलाओं को कॉर्सेट्स पहनना होता था और उस दौर में महिलाओं के कपड़ों को इस तरह से बनाया जाता था कि उनका शेप बहुत अच्छा आए। उस जमाने में महिलाएं अपना सामान स्कर्ट्स के साथ बंधी एक पोटली में रखा करती थीं और पुरुषों के लिए पॉकेट वॉच की जगह उनकी पॉकेट्स में बनाई जाती थी। वहीं से पुरुषों और महिलाओं की पॉकेट्स के फैशन में बदलाव होने लगा।
क्या आपने महिलाओं के लिए मिलने वाली जींस, जेगिंग्स, पैंट्स आदि देखी हैं? या ड्रेसेज और कुर्तों को ही ले लीजिए क्या उनमें पॉकेट्स की कमी आपको महसूस नहीं हुई है? चलिए ठीक है एक हद तक हम शर्ट्स में पॉकेट न होने की बात मान भी लें तो भी क्या जीन्स, ड्रेसेज, कुर्ते आदि में पॉकेट की कमी को नजरअंदाज किया जा सकता है?
जीन्स और पैंट्स में पॉकेट की जरूरत तो वर्किंग क्लास महिलाओं की जरूरत है, लेकिन फिर ऐसा क्यों नहीं होता कि उनके लिए भी वैसी ही डीप पॉकेट्स बनाई जाएं? इसे भी महिलाओं के फिगर से जोड़ा जाता है और माना जाता है कि अगर महिलाएं अपनी जीन्स में ज्यादा चीज़ें रखेंगी तो उनका फिगर बेडौल लगेगा।
अगर इन पॉकेट्स के इतिहास की बात की जाए तो हमें फिर से विक्टोरियन जमाने में जाना होगा। 1800 में कॉर्सेट्स के चलन को खत्म करने के साथ ही 1891 में रेशनल ड्रेस सोसाइटी का गठन हुआ था। लंदन में बनी ये सोसाइटी विक्टोरियन जमाने में ड्रेस रिफॉर्म लेकर आई थी। इसके गठन के बाद कॉर्सेट्स लगभग गायब हो गए और महिलाओं के लिए भी आरामदायक कपड़े जैसे ट्राउजर आदि बनने लगे जिसमें पॉकेट्स होती थीं, लेकिन जब भी महिलाएं पॉकेट्स में सामान रखा करती थीं तो उनका शेप खराब लगता था (उस समय की सोच के हिसाब से)।
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इसके बाद 1920 के दशक में फैशन डिजाइनर कोको शनेल ने पहली बार महिलाओं के जैकेट्स में भी पॉकेट्स सिलना शुरू किया। 1970 के दशक तक महिलाओं के कपड़े बहुत ज्यादा आधुनिक हो गए थे और उनके आराम से लेकर जरूरत तक सभी चीज़ों को ध्यान में रखा जाता था, लेकिन इसके बाद शुरू हुआ फैशन रिफॉर्म और महिलाओं के फिगर पर ज्यादा फोकस किया जाने लगा। 1990 तक भी महिलाओं की पैंट्स में कुछ हद तक फंक्शनल पॉकेट्स दिए जाते थे। आप उस वक्त की एक्ट्रेसेस की जीन्स ही देख लें तो पाएंगे कि वो आज के फैशन से कितनी अलग है, लेकिन जैसे-जैसे महिलाओं के फिगर को महत्व दिया जाने लगा वैसे-वैसे पैंट्स में पॉकेट्स गायब होते चले गए।
अगर मेरी राय मानी जाए तो पॉकेट्स की जरूरत यकीनन होती है और इसे किसी भी हाल में नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। मुझे यही लगता है कि महिलाओं को भी पॉकेट पैरिटी मिलनी चाहिए। अब मान लीजिए मेरा कभी बड़ा हैंडबैग ले जाने का मन नहीं है तो मैं भी पुरुषों की तरह सिर्फ फोन और एक छोटा वॉलेट जेब में रखकर जा सकती हूं ना।
ये फ्रीडम आपके लिए कितना अहम है और महिलाओं के कपड़ों में पॉकेट की जरूरत के बारे में आपके क्या ख्याल हैं, ये हमें हरजिंदगी के सोशल मीडिया पेज पर जरूर बताएं। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।
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